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शिव खेरा कौन थे? Shiv Khera Very Short Biography In Hindi
शिव खेरा की जिंदगी संघर्षो से भरी हुई है और यह उनकी लेखनी में भी दिखाई देती है। शिव खेरा के पिता के पास कोयला खदान थी जो बाद में सरकार के अधीन हो गई और उसके बाद उनके परिवार की स्थिति बेहद खराब हो गयी।
शिव खेरा ने छोटे-छोटे काम करके अपनी जिंदगी की शुरुवात की। उन्होंने शेल्स का काम किया। वह बहुत ही मुश्किल कार्य था और उनके ऊपर उनके बॉस का दबाव रहता था। इस सबसे उन्होंने अपने जीवन में कई अनुभव प्राप्त किए और उसे अपनी किताब में उतारा।
You Can Win आप क्या-क्या सीख सकते है?
आप जब भी कोई किताब पढ़ते है तो उसमे आप बहुत कुछ सीखते है और जब बात हो You Can Win Book की तो आप उस किताब से बहुत ही ज्यादा सीख सकते है। चलिए अब जानते है You Can Win से आप क्या सीख सकते है।
1- Learning
2- Consistent Focus
3- Bread And Butter
4- Internal Motivation
5- Keep Your Self Busy
Learning
सबसे पहले आपको लर्निग सीखना चाहिए। आप अच्छी-अच्छी किताबे पढ़िए, इससे आपको बहुत कुछ सीखने को मिलेगा। आप एक ही तरह की किताब मत पढ़िए, अलग-अलग तरह की किताबे पढ़े, इससे आपको और भी बहुत कुछ सीखने को मिलेगा।
Consistent Focus
आप जो भी लक्ष्य चुने उसे पूरा ही करे। अगर, आप अपने लक्ष्य से भटकेंगे तो निश्चित ही असफल होंगे, लक्ष्य को पूरा करने की कोशिस करे।
Bread And Butter
इसका मतलब यह है कि आप जैसा दूसरे के साथ करते है आपके साथ भी वैसा ही होता है। इसीलिए आप किसी के साथ गलत ना करे, आपके साथ भी गलत नहीं होगा।
Internal Motivation
यह आपके लिए सबसे अधिक आवश्यक है कि आप आंतरिक रूप से Motivate हो, जब आप Motivate होंगे तो आप किसी भी काम को आसानी से पूरा कर सकते है।
Keep Your Self Busy
यह सबसे जरूरी है कि आप खुद को व्यस्त रखे, क्योंकि कहा गया है खाली दिमाग शैतान का घर। आप खुद को व्यस्त रखेंगे तो मस्त रहेंगे।
दिव्य ज्ञान सिर्फ पढ़ने के लिए

महान आत्माओ का अनुसरण – श्री कृष्ण कह रहे है प्राचीन काल में समस्त मुक्तात्माओ ने मेरी दिव्य प्रकृति को जान करके ही कर्म किया, अतः तुम्हे चाहिए कि उनके पद चिन्हो का अनुसरण करते हुए अपने कर्तव्य का पालन करो।
उपरोक्त शब्द का तात्पर्य – मनुष्य की दो श्रेणियाँ होती है। कुछ के मन में दूषित विचारो की लंबी श्रृंखला की भरमार रहती है और कुछ भौतिक दृष्टि से स्वतंत्र रहते है। कृष्ण भावनामृत इन दोनों श्रेणियों के मनुष्यो के लिए समना रूप से ही लाभदायक है। जिनके मन में दूषित विचार भरे हुए है। उन्हें चाहिए कि भक्ति के अनुष्ठानो का पालन करते हुए क्रमिक शुद्धिकरण के लिए कृष्ण भावनामृत को अवश्य ग्रहण करे।
मुर्ख व्यक्ति या कृष्ण भावनामृत में नवदीक्षित व्यक्ति प्रायः कृष्ण भावनामृत का पूरा ज्ञान प्राप्त किए बिना ही कार्य से विरत होना चाहते है और जिनके मन पहले ही ऐसी अशुद्धियों से स्वच्छ हो चुके है वे उसी कृष्ण भावनामृत के सागर में गोते लगाते हुए अग्रसर होते रहे, जिससे अन्य लोग भी उनके आदर्श कार्यो में निमग्न होने का अनुसरण करते हुए जीवन क्षेत्र में आध्यात्मिक लाभ उठा सके।
किन्तु भगवान ने युद्ध क्षेत्र के कार्य से विमुख होने की अर्जुन की इच्छा का तनिक भी समर्थन नहीं किया है। यहां आवश्यकता इस बात की है कि यह ज्ञात और ज्ञान होना आवश्यक है कि कैसे और किस तरह से कार्य किया जाना चाहिए।
कृष्ण भावनामृत के कार्य से विमुख होकर एकांत में बैठकर कृष्ण भावनामृत का प्रदर्शन करना, कृष्ण के लिए कार्यरत होने की अपेक्षा कम ही महत्वपूर्ण है। यहां पर अर्जुन को सलाह दी जा रही है कि वह भगवान के अन्य पूर्ण के शिष्यों यथा सूर्यदेव विवस्वान के पद चिन्हो का अनुसरण करते हुए कृष्ण भावनामृत में कार्य संपन्न करे।
अतः भगवान उसे सूर्यदेव के कार्यो को संपन्न करने के लिए आदेशित करते है जिसे सूर्यदेव ने उनसे लाखो वर्ष पूर्व सीखा था। यहां पर भगवान कृष्ण के ऐसे सारे शिष्यों का उल्लेख पूर्ववर्ती मुक्त पुरुषो के रूप में हुआ है, जो कृष्ण द्वारा नियत कर्मो की सम्पन्नता हेतु लगे हुए थे।
16- यहां भगवान कर्म और अकर्म की व्याख्या करते है – हे अर्जुन सुनो ! कर्म क्या है और अकर्म क्या है। इसे निश्चित रूप से समझने में बुद्धिमान मनुष्य भी मोहग्रस्त होकर भ्रमित हो जाते है। अतः मैं तुम्हे समझाता हूँ कि कर्म क्या है जिसे समझकर तुम सारे अशुभ से मुक्त हो जाओगे।
उपरोक्त शब्दों का तात्पर्य – कृष्ण भावनामृत में कर्म करने के लिए मनुष्य को उन प्रामाणिक पुरुषो के नेतृत्व का अनुगमन करना होता है जो गुरु परंपरा के निर्वाहक हो, जैसा कि पहले बताया जा चुका है। कृष्ण भावनामृत में जो कर्म किया जाता है वह पूर्ववर्ती प्रामाणिक भक्तो के आदर्श के अनुसार होना चाहिए। इसे पहले ही बताया जा चुका है। ऐसे कर्म क्यों स्वतंत्र नहीं होने चाहिए इसे आगे बताया जाएगा।
कृष्ण भावनामृत पद्धति का उपदेश सर्वप्रथम सूर्यदेव को दिया गया। इन्होने अपने पुत्र मनु को कृष्ण भावनामृत में उपदेशित किया। मनु ने इस उपदेश को अपने पुत्र इक्ष्वाकु से कहा और यह पद्धति तब से इस पृथ्वी पर “गुरु-शिष्य” परंपरा के रूप में प्रसारित हो रही है।
कहा जाता है, अपूर्ण प्रायोगिक ज्ञान के द्वारा धर्म पथ का निर्णय नहीं किया जा सकता। वस्तुतः धर्म तो भगवान के द्वारा ही निश्चित होता है। अतः परंपरा के पूर्ववर्ती अधिकारियो के पद चिन्हो का ही अनुसरण करना चाहिए, अन्यथा बुद्धिमान पुरुष भी कृष्ण भावनामृत के आदर्श कर्म के विषय में मोहदशा को प्राप्त हो जाते है।
अपूर्ण चिंतन के द्वारा कोई किसी धार्मिक सिद्धांत का निर्माण नहीं कर सकता है। इसलिए भगवान ने स्वयं ही अर्जुन को कृष्ण भावनामृत का उपदेश देने का निश्चय किया। अर्जुन को साक्षात् भगवान के द्वारा शिक्षा दी गई थी। अतः जो भी अर्जुन के पद चिन्हो पर चलने का प्रयास करेगा वह कभी मोहग्रस्त नहीं होगा।
मनुष्य को चाहिए कि ब्रह्मा, शिव, नारद, मनु, चारो कुमार, कपिल इत्यादि जैसे महान अधिकारियो के पदचिन्हो का अनुसरण करे। केवल मानसिक चिंतन द्वारा यह निर्धारित नहीं हो सकता कि धर्म या आत्म साक्षात्कार क्या है।
अतः भगवान अपने भक्तो पर अहैतुकी कृपावश स्वयं ही अर्जुन को बता रहे है कि कर्म क्या है और अकर्म क्या है। केवल कृष्ण भावनामृत में किया गया कर्म ही मनुष्य को भव बंधन के जाल को काटने में समर्थ है।
अर्जुन कहता है – हे भगवान ! कृपा करके विस्तार पूर्वक मुझे अपने उन दैवी ऐश्वर्याो को बताए, जिनके द्वारा आप इन समस्त लोको में व्याप्त है।
उपरोक्त शब्दों का तात्पर्य – इस श्लोक में ऐसा लगता है कि अर्जुन भगवान संबंधी अपने ज्ञान से पहले से संतुष्ट है। उसे कृष्ण संबंधी किसी भी प्रकार का संसय नहीं है तो भी वह कृष्ण से अपनी सर्वव्यापकता की व्याख्या करने के लिए अनुरोध करता है।
कृष्ण कृपा से अर्जुन को व्यक्तिगत अनुभव, बुद्धि तथा ज्ञान और मनुष्य इन साधनो से जो कुछ भी प्राप्त हो सकता है, उसने कृष्ण को भगवान के रूप में समझ रखा है।
सामान्यजन तथा विशेषरूप से निर्विशेवड़ी भगवान की सर्वव्यापकता के बिषय में अधिक ही विचारशील रहते है। हमे जानना चाहिए कि अर्जुन सामान्य जनो के हित के लिए ही भगवान से उनकी सर्वव्यापकता के बिषय में पूछ रहा है। अतः अर्जुन श्री कृष्ण से पूछता है है कि वह किस प्रकार से अपनी विभिन्न शक्तियों के द्वारा सर्वव्यापी रूप से विद्यमान रहते है।
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