नमस्कार मित्रों, इस पोस्ट में हम आपको Yogasan Chitra Sahit Naam Aur Labh Pdf देने जा रहे हैं, आप नीचे की लिंक से Yogasan Chitra Sahit Naam Aur Labh Pdf Download कर सकते हैं और आप यहां से नित्य बोले जाने वाले श्लोक Pdf कर सकते हैं।
Yogasan Chitr Sahit Naam Aur Labh Pdf
पुस्तक का नाम | Yogasan Chitr Sahit Naam Aur Labh Pdf |
पुस्तक के लेखक | आयुष मंत्रालय |
भाषा | हिंदी |
फॉर्मेट | |
श्रेणी | आयुर्वेद |
साइज | 2 MB |
पृष्ठ | 26 |




सिर्फ पढ़ने के लिए
सुग्रीव समेत वानरों को मूर्छित करके फिर वह अपरिमित बल की सीमा कुम्भकर्ण ने वानर राज सुग्रीव को कांख में दबाकर चला।
चौपाई का अर्थ-
शिव जी कहते है – हे उमा! श्री रघुनाथ जी उसी प्रकार से नर लीला कर रहे है जैसे गरुड़ सर्पो के समूह मिलकर खेलता हो। जो पलक के इशारे मात्र से बिना परिश्रम के काल को भी निवाला बना लेता है उसे कही ऐसी लड़ाई शोभा देती है?
भगवान इसके द्वारा जगत को पवित्र करने वाली वह कीर्ति फैलाएंगे। जिसका गुणगान करके मनुष्य भवसागर से तर जायेंगे। मूर्छा जाने पर तब मारुती हनुमान जी जागे और फिर वह सुग्रीव को ढूंढने लगे।
सुग्रीव की भी मूर्छा दूर हुई तब वह मुर्दे के जैसा ही होकर कांख से नीचे गिर पड़े, कुम्भकर्ण ने उन्हें मृतक समझा। उन्होंने कुम्भकर्ण के नाक,कान करके गरजते हुए आकाश की ओर चले तब कुम्भकर्ण ने जाना।
उसने सुग्रीव का पैर पकड़कर उन्हें पृथ्वी पर पछाड़ दिया। फिर सुग्रीव ने बहुत ही फुर्ती से उठकर उसको पहुंचाया और तब बलवान सुग्रीव प्रभु के पास आये और बोले – कृपानिधान प्रभु की जय हो, जय हो, जय हो।
नाक,कान हुआ ऐसा मन में जानकर उसे बड़ी ग्लानि हुई और वह क्रोध करके लौटा। एक तो उसकी आकृति भी भयंकर थी और फिर नाक, कान रहने पर और भयानक लगने लगा। उसे देखते ही वानरों की सेना में भय व्याप्त हो गया।
66- दोहा का अर्थ-
रघुवंशमणि की जय हो, जय हो, जय हो, ऐसा कहते हुए वानर हूह करके दौड़े और सभी मिलकर एकसाथ उसके ऊपर पहाड़ और वृक्षों के समूह छोड़े।
चौपाई का अर्थ-
रण के उत्साह में कुम्भकर्ण विरुद्ध होकर उनके सामने इस प्रकार चला मानो काल ही क्रोधित होकर आ रहा हो। वह कोटि-कोटि वानरों को पकड़कर एक साथ लगा। वह उसके मुंह में इस तरह प्रविष्ट होने लगे मानो पर्वत की गुफा में टिड्डियां समा रही हो।
कोटि वानरों को पकड़कर उसने शरीर से दिया। कोटि वानरों को हाथ से ही मसल दिया और उन्हें धूल में मिला दिया। भालू और वानरों का समूह उसके नाक, कान और मुंह की राह से निकलर भाग रहे है।
रण के मद में मत्त राक्षस कुम्भकर्ण इस प्रकार से गर्वित हुआ मानो विधाता ने उसको सारा विश्व अर्पण कर दिया हो और वह उसे कर जायेगा। सब योद्धा भाग खड़े हुए, वह लौटाए पर भी नहीं लौटते। आँखों से उन्हें सूझ नहीं पड़ता और पुकारने पर भी नहीं।
कुम्भकर्ण ने वानर सेना को तितर-वितर कर दिया। यह सुनकर राक्षस सेना भी दौड़ पड़ी। श्री राम जी ने देखा कि अपनी सेना व्याकुल है और नाना प्रकार की शत्रु की सेना आ गयी है।
67- दोहा का अर्थ-
तब कमल नयन श्री राम जी बोले – हे सुग्रीव! हे विभीषण! और हे लक्ष्मण! सुनो, तुम सेना को संभालना। मैं इसके बल और सेना को देखता हूँ।
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