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Yogasan Aur Pranayam Pdf


प्राणायाम इन हिंदी Pdf Download
सिर्फ पढ़ने के लिए
3- स्वप्न में भी किसी को दोष नहीं है, मेरा अभाग्य ही अथाह समुद्र है। मैंने अपने पाप का परिणाम समझे बिना ही व्यर्थ ही कटु वचन कहकर माता को दुःख दिया।
4- मैं अपने हृदय में सब तरफ देखकर हार गया मेरी भलाई का कोई साधन नहीं दीखता है, एक प्रकार का निश्चय ही मेरा भला है। वह यह कि गुरु महाराज सर्व समर्थ है और सीता राम जी मेरे स्वामी है। इसलिए ही परिणाम मुझे अच्छा जान पड़ता है।
261- दोहा का अर्थ-
साधुओ की सभा में गुरु जी और स्वामी के समीप इस पवित्र तीर्थ में मैं सत्य भाव से कहता हूँ। यह प्रेम है या प्रपंच, या छल-कपट? झूठ है या सच? इसे सर्वज्ञ मुनि वशिष्ठ जी और अन्तर्यामी रघुनाथ जी जानते है।
चौपाई का अर्थ-
1- प्रेम के प्रण को पूरा करते हुए पिता जी का जाना और माता की कुबुद्धि दोनों का यह सारा संसार साक्षी है। माताओ की व्याकुलता देखी नहीं जाती है। अवधपुरी के सभी नर-नारी दुःसह ताप से जूझ रहे है।
3- मैं ही इस सारे अनर्थ का मूल हूँ। यह सुन और समझकर मैंने सब दुःख सहा है। श्री रघुनाथ जी, लक्ष्मण और सीता जी के साथ मुनियो के जैसा वेश बनाकर नंगे पैर और पैदल ही वन को चले गए।
यह सुनकर शंकर जी साक्षी है कि मेरे प्राण क्यों नहीं निकले? फिर निषाद राज का प्रेम देखकर भी इस हृदय में घाव नहीं हुआ यह नहीं फटा।
4- अब यहां आकर सब आँखों से देख लिया, यह जड़ जीव को तो जीवित रहते हुए सब कुछ सहना पड़ेगा। जिसको देखकर रास्ते में पड़ने वाले भयानक जानवर भी भाग खड़े हो जायेंगे।
262- दोहा का अर्थ-
वह ही रघुनंदन लक्ष्मण सीता जिसको शत्रु की भांति जान पड़े, उस कैकेयी के पुत्र मुझको छोड़कर दैव यह दुःसह दुःख और किसे सहायेगा?
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