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Who is Shudra in Hindi Pdf Download
पुस्तक का नाम | Who is Shudra in Hindi Pdf |
पुस्तक के लेखक | Dr. B. R. Ambedkar |
भाषा | हिंदी |
श्रेणी | इतिहास |
पृष्ठ | 201 |
फॉर्मेट | |
साइज | 26.9 MB |





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सिर्फ पढ़ने के लिये
प्रताप और नरेश दोनों वापस कम्पनी में आ गए थे। उसी समय प्रताप ने विंदकी में रघुराज को फोन मिलाया दूसरी तरफ से रघुराज ने नमस्कार करते हुए कहा प्रताप भाई सब कुशल तो है ना। नरेश और विवेक दोनों अपनी कसौटी पर खरे उतरे है क्या नहीं?
प्रताप भारती दूसरी तरफ से बोले दोनों ही लड़के अपनी जिम्मेदारी भली प्रकार से निभा रहे है लेकिन हम लोगो की जिम्मेदारी भी बनती है कि नहीं? रघुराज बोले सभी बच्चे तो आपकी प्रेरणा से ही प्रत्येक कार्य में लगे हुए है और उनकी सामाजिक जिम्मेदारी आपको ही पूर्ण करना है।
ठीक है प्रताप बोले। अगर भगवान ने कृपा बनाये रखी तो सबकी जिम्मेदारी पूर्ण हो जाएगी। फिर प्रताप ने सारा कार्य रघुराज को समझा दिया और बोले राजीव प्रजापति को जाकर सारी बातें समझा देना और आप भी सुधीर और विवेक के लिए तैयारी कर लेना।
मैं एक साथ ही सभी लोगो को उचित दायित्व देकर मुक्त हो जाना चाहता हूँ ताकी कोई समाज में हमे स्वार्थी न कह सके। दूसरी तरफ से रघुराज बोले आपको जो उचित लगे वैसा ही करो हम लोग सहयोग देने के लिए तैयार है।
सरिता और रोशन दोनों बड़े हो गए थे। सरिता की एक ही सहेली थी। उसका नाम अंजली दास था। उसके माता-पिता बंगाल से आकर यहां आगरा में रहने लगे थे और यही के होकर रह गए थे। अंजली के पिता का नाम रंजन दास था। पहले मोटर मैकेनिक का कार्य करते थे।
लेकिन समय के साथ ही अब उनका व्यवसाय बड़ा हो गया था और उनका लड़का धीरज था जो पढ़-लिखकर अपने पिता के व्यवसाय को आधुनिक स्वरुप देकर उसे संभाल रहा था। अंजली ने अपनी कला को ही अपना व्यवसाय बना लिया था और उसकी बनाई हुई चित्रकला को लोग बहुत अच्छी कीमत देकर खरीद लेते थे।
अंजली और सरिता की पढ़ाई दसवीं तक एक साथ हुई थी उसके बाद दोनों के रास्ते अलग हो गए थे। लेकिन दोनों के बीच सदैव ही बात और व्यवहार बना हुआ था।
अंजली के माता पिता वाराणसी में रहते थे। वही से अंजली ने अपनी कला में जान और ऊँची उड़न देने की शुरुवात किया था और इस समय वह अपनी कला में पराकाष्ठा पर थी।
वह अपनी चित्रकला को चार महीने से पहले नहीं तैयार करती थी लेकिन कला पारखी लोगो के लिए यह चार महीना बहुत कष्टकर लगता था परन्तु अंजली अपनी कला की गुणवत्ता के साथ कोई समझौता नहीं करती थी और यही एक कारण था कि उसकी बनाई हुई कला सबसे मंहगी और मुंहमांगी कीमत पर लोग खरीद लेते थे।
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