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Vishkanya Novel Pdf Download
पुस्तक का नाम | Vishkanya Novel Pdf |
पुस्तक के लेखक | ओम प्रकाश शर्मा |
भाषा | हिंदी |
साइज | 6.7 Mb |
पृष्ठ | 81 |
श्रेणी | Novel |
फॉर्मेट |






सिर्फ पढ़ने के लिये
फिर कृपालु श्री राम जी ने निषाद राज को बुला लिया और उसे भूषण वस्त्र प्रदान किए फिर कहा – अब तुम भी घर जाओ वहां मेरा स्मरण करते रहना और मन, वचन, कर्म से धर्म के अनुसार चलना। तुम मेरे मित्र हो और भरत के समान भाई हो। अयोध्या में सदा आते-जाते रहना। यह वचन सुनते ही उसे भारी सुख प्राप्त हुआ। नयन में आनंद का जल भरकर वह चरण में गिर पड़ा।
फिर भगवान के चरण कमल हृदय में रखकर वह घर आया और उसने आकर परिजनों को प्रभु का विनम्र स्वभाव सुनाया। श्री रघुनाथ जी का यह चरित्र देखकर अवधपुर वासी बार-बार कहते है कि सुख की राशि श्री राम जी धन्य है।
श्री राम जी के राज्य पर प्रतिष्ठित होने पर तीनो लोक हर्षित हो गए। उनके सारे शोक समाप्त हो गए। कोई किसी से बैर नहीं करता। श्री राम जी के प्रताप से सबका आंतरिक भेद-भाव विषमता मिट गई।
दोहा का अर्थ-
सब लोग अपने वर्ण और आश्रम के अनुकूल धर्म में तत्पर हुए सदा वेदमार्ग पर चलते है और सुख प्राप्त करते है। उन्हें किसी बात का भय नहीं है किसी बात का शोक नहीं है। न ही कोई रोग सताता है।
चौपाई का अर्थ-
रामराज्य में दैहिक, दैविक और भौतिक ताप किसी को नहीं व्यापते। सब मनुष्य परस्पर प्रेम करते है और वेद में बताई हुई नीति, मर्यादा में तत्पर रहकर अपने धर्म का पालन करते है।
धर्म अपने चारो चरण – सत्य, शौच, दया और दान से जगत में परिपूर्ण हो रहा है। स्वप्न में भी कही पाप नहीं है। पुरुष और स्त्री सभी रामभक्ति के परायण है और सभी परम गति मोक्ष के अधिकारी है।
छोटी अवस्था में मृत्यु नहीं होती, न किसी को कोई पीड़ा होती है। सबके शरीर सुंदर और निरोग है। न कोई दरिद्र है, न दुखी है, और न ही दीन है।
न कोई मुर्ख है और न तो कोई शुभ लक्षणों से हीन है। सभी दम्भ रहित है, धर्म परायण है और पुण्यात्मा है। पुरुष और स्त्री सभी चतुर और गुणवान है। सभी गुणों का आदर करने वाले पंडित तथा ज्ञानी है। सभी कृतज्ञ है, कपट चतुराई किसी में नहीं है।
दोहा का अर्थ-
काकभुशुण्डि जी कहते है कि – हे पक्षीराज गरुण जी! सुनिए, श्री राम के राज्य में जड़, चेतन सारे जगत में काल, कर्म, स्वभाव और गुणों से उत्पन्न हुए दुःख के बंधन में कोई नहीं है।
चौपाई का अर्थ-
अयोध्या में श्री रघुनाथ जी सात समुद्रो की मंखला वाणी पृथ्वी के एकमात्र राजा है। जिनके एक रोम में ही अनेक ब्रह्माण्ड है, उनके लिए सात द्वीपों की यह प्रभुता कोई भी नहीं है।
बल्कि प्रभु की महिमा को समझ लेने पर तो यह कहने में बहुत हीनता होती है। परन्तु हे गरुण जी! जिन्होंने यह महिमा जान ली है वह भी फिर इस लीला में बहुत प्रेम मानते है।
क्योंकि उस महिमा को जानने का फल यह लीला ही है। इन्द्रियों का दमन करने वाले श्रेष्ठ मुनि ऐसा कहते है। राम राज्य की सुख सम्पदा का वर्णन शेष जी और सरस्वती जी भी नहीं कर सकते है।
सभी नर-नारी उदार है, सभी परोपकारी है और सभी ब्राह्मण के सेवक है। सभी पुरुष मात्र एक पत्नीव्रती है। इसी प्रकार स्त्रियां भी मन, वचन और कर्म से पति का हित करने वाली है।
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