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सिर्फ पढ़ने के लिए
आप भी इसके साथ रहोगे तो यह आपको भी पहचानने लगेगा। कार्तिक चुनमुन से बोला – अच्छा चुनमुन यह बताओ तुमने इसका नाम कालू क्यों रखा है? कार्तिक को चुनमुन से बात करने में आनंद प्राप्त हो रहा था। चुनमुन बोली – आप इतना भी नहीं समझते है।
यह काला है इसलिए ही हम इसे कालू कहकर बुलाते है। कालू, लालू, भूरा गांव में सभी लोग ऐसे ही नाम रखते है। चुनमुन की बातें सुनकर कार्तिक हंसने लगा। बिना किसी उपमा का प्रयोग किए ही बहुत आसानी से छोटे बच्चे अपनी बात कह देते है।
शहहरि क्षेत्र में पश्चिमी सभ्यता की तरफ सभी लोग भागते है जबकि देहात के गांवो में अभी तक भारतीय सभ्यता जीवित है। चुनमुन कार्तिक से बातें करती जा रही थी। उसी समय उसकी माँ प्रभा ने उसे डांटते हुए कहा – क्यों इतना बक-बक कर रही है?
चुनमुन डांट पड़ते ही चुप हो गयी। माकन बनाने के लिए सभी काम करने वाले आ गए थे। मकान बनाने का कार्य शुरू हो गया था और बहुत अच्छे ढंग से चल रहा था। रामचरन ठेकेदार भी अपने आधीन काम करने वालो का सहयोग कर रहा था।
उसके लिए समय से पहले ही दोनों मकान तैयार करने की चुनौती थी। विरजू दोनों मकान का देख-रेख स्वयं ही कर रहा था ताकी कही भी कमी न रहने पावे। विरजू ने एक आदमी रख लिया था जो उसकी गाय का देखभाल करता और खेती का भी सारा कार्य करता था।
उसे हर महीने पांच हजार रुपये पराग की तरफ से दिए जाते थे। पराग ने फोन पर अपने मामा के लड़के केशरी को बता दिए थे कि इस समय कार्तिक गांव में है और आप उसे जाकर कुछ दिन के लिए अपने पास ले आइये। केशरी पराग की बात समझ गए थे।
केशरी ने अपनी मोटर साइकल उठाई और कीरतपुर के लिए चल पड़े। कीरतपुर में बहुत तेज गति से पराग के मकान का निर्माण कार्य चल रहा था। एक पेड़ की छाया में विरजू के साथ कार्तिक बैठकर सारे कार्य का अवलोकन कर रहा था। उसी पल केशरी वहां पहुँच गए थे।
उन्होंने कहा कि लोचन खेड़ा गांव से आया हूँ तो विरजू चारपाई से उठकर खड़ा हो गया और बोला – शायद आप पराग भाई के मामा के लड़के है। केशरी ने ‘हां’ कहा और चारपाई पर बैठ गए। कार्तिक उन्हें प्रणाम करने के बाद विरजू के मंडई नुमा घर में गया और विरजू की औरत प्रभा से बोला – चची जलपान की व्यवस्था करो।
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