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अति आनंद और प्रेम के साथ उमंग में भरकर वह भगवान के चरण कमल को धोने लगा। सब देवता फूल बरसाते हुए सिहाने लगे कि आज इसके समान पुण्य की राशि कोई भी नहीं है।
101- दोहा का अर्थ-
प्रभु श्री राम के चरणों को धोकर और अपने परिवार के साथ उस चरणोदक को पीकर पहले उस महान पुण्य के द्वारा पहले अपने पितरो को भवसार से पार उतारकर फिर आनंद के साथ श्री राम जी को गंगा जी के पार ले गया।
चौपाई का अर्थ-
1- निषाद राज और लक्ष्मण जी सहित श्री सीता जी और श्री राम जी नाव से उतरकर गंगा जी की रेत (बालू) में खड़े हो गए। तब केवट ने उतरकर दंडवत किया उसको दंडवत करते देखकर प्रभु श्री राम जी को संकोच हुआ कि इसे कुछ नहीं दिया।
2- पति के हृदय की जानने वाली सीता जी आनंद भरे मन से अपनी रत्न जड़ित अंगूठी को ऊँगली से उतारा तब कृपालु श्री राम जी ने केवट से कहा, नाव की उतराई लो तो केवट ने व्याकुल होकर श्री राम जी के चरण पकड़ लिए।
3- उसने कहा – हे नाथ! आज मैंने सब कुछ प्राप्त कर लिया, मेरे दोष दुःख और दरिद्रता की आग आज बुझ गयी। मैंने बहुत समय तक मजदूरी किया लेकिन आज विधाता ने बहुत अच्छी और भरपूर मजदूरी दिया है।
4- हे नाथ! हे दीन दयाल! मुझे अब कुछ नहीं चाहिए, केवल आपकी कृपा चाहिए। लौटते समय आप मुझे जो कुछ भी दे देंगे, वह प्रसाद मैं अपने सिर के ऊपर रख लूंगा।
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