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Vinay Patrika Pdf / विनय पत्रिका गीता प्रेस Pdf



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सिर्फ पढ़ने के लिये
जिस विधाता ने तुमको सुंदरता दी, उसने तुम्हारे लिए वर बावला कैसे बनाया? जो फल कल्पवृक्ष में लगना चाहिए वह जबरन बबूल में लग रहा है।
96- दोहा का अर्थ-
हिमाचल की (स्त्री) मैना को दुखी देखकर सारी स्त्रियां व्याकुल हो गयी। मैना अपने कन्या के स्नेह को याद करके विलाप करती, रोती और कहती थी।
चौपाई का अर्थ-
1- मैंने नारद का क्या बिगाड़ा था, जिन्होंने मेरा बसता हुआ घर उजाड़ दिया और जिन्होंने पार्वती को ऐसा उपदेश दिया कि जिसने बावले वर के लिए तप किया।
2- सचमुच उनके अंदर न किसी का मोह है, न माया, न उनके धन है, न घर है और न स्त्री ही है, वे सबसे उदासीन है। इसलिए वह दूसरो का घर उजाड़ देते है। उन्हें किसी का लाज और डर नहीं है भला बाँझ स्त्री प्रसव की पीड़ा समझ सकती है?
3- माता को विकल देखकर पार्वती जी विवेक युक्त कोमल वाणी बोली – हे माता! जो विधाता रच देते है, वह टलता नहीं, ऐसा विचारकर तुम सोच मत करो।
4- जो मेरे भाग्य में बावला पति ही लिखा है तो किसी को क्यों दोष लगाया जाय? हे माता! क्या विधाता के अंक तुमसे मिट सकते है? वृथा ही कलंक का टीका मत लो।
दोहा का अर्थ-
स्वर्ण वर्ण का प्रकाशमय पीतांबर बिजली को जलाने वाला था, पेट पर सुंदर तीन रेखाएं थी, नाभि ऐसी मनोहर थी, मानो यमुना के लहरों को छीन लेती हो।
चौपाई का अर्थ-
1- जिनमे मुनियो के मन रूपी भौरे बसते है, भगवान के उन चरण कमलो का वर्णन नहीं किया जा सकता है। भगवान के बाये भाग में सदा अनुकूल रहने वाली शोभा की राशि जगत की मूल कारण स्वरूपा आदि शक्ति श्री जानकी जी सुशोभित थी।
2- जिनके अंश से गुणों की खान अगणित लक्ष्मी, पार्वती और ब्रह्माणी, उत्पन्न होती है तथा जिनकी भौह के इशारे से ही जगत की रचना हो जाती है। वही भगवान की स्वरूपा शक्ति श्री सीता जी श्री राम जी के बायीं ओर स्थित है।
3- शोभा के समुद्र श्री हरि के रूप को देखकर मनु-सतरूपा अपने नेत्र पट को रोके हुए एकटक देखते ही रह गए। उस अनुपम रूप को आदर सहित देखते हुए अघाते न थे।
4- आनंद के अधिक वश में होने से उनकी अपने देह की सुधि नहीं रह गयी। वह हाथो से भगवान के चरण पकड़कर दंड की भांति भूमि पर गिर पड़े।
148- दोहा का अर्थ-
फिर कृपानिधान बोले – मुझे अत्यंत प्रसन्न जानकर और बड़ा भारी दानी मानकर, जो मन को भाये वही वर मांग लो।
चौपाई का अर्थ-
1- प्रभु के वचन सुनकर दोनों हाथ जोड़कर और धीरज धरकर राजा ने कोमल वाणी कही – हे नाथ! अब आपके चरण कमलो को देखकर मेरी सारी मनः कामना पूरी हो गई।
2- फिर भी मन में एक बड़ी लालसा है, उसका पूरा होना सहज भी है और कठिन भी, इसलिए उसे कहते नहीं बनता। हे स्वामी! आपके लिए तो उसका करना बहुत सहज है, पर मुझे अपनी दीनता के कारण वह अत्यंत कठिन मालूम होता है।
3- जैसे कोई कल्पवृक्ष को पाकर भी अधिक द्रव्य मांगने में संकोच करता है क्योंकि वह उसके प्रभाव को नहीं जानता है, वैसे से मेरे मन में संसय हो रहा है।
4- हे स्वामी आप अन्तर्यामी है, इसलिए आप उसे जानते ही है। मेरा वह मनोरथ पूरा कीजिए। भगवान ने कहा – हे राजन! संकोच छोड़कर मुझसे मांगो। तुम्हे न दे सकूँ ऐसा मेरे पास कुछ भी नहीं है।
149- दोहा का अर्थ-
राजा ने कहा – हे दानिशिरोमणि! हे कृपानिधान! हे नाथ! मैं अपने मन का सच्चा भाव कहता हूँ कि मैं आपके समान पुत्र चाहता हूँ। प्रभु से भला क्या छिपाना।
चौपाई का अर्थ-
1- राजा की प्रीति देखकर और उनके अमूल्य वचन सुनकर करुणानिधान भगवान बोले – ऐसा ही हो। हे राजन! मैं अपने समान दूसरा कहां जाकर खोजूं। अतः स्वयं ही आकर तुम्हारा पुत्र बनूंगा।
2- सतरूपा जी को हाथ जोड़े देखकर भगवान ने कहा – हे देवी! तुम्हारी जो इच्छा हो सो वर मांग लो। सतरूपा ने कहा – हे नाथ! चतुर राजा ने जो वर माँगा है, हे कृपालु! वह मुझे बहुत ही प्रिय लगा।
3- परन्तु हे प्रभु! बहुत ढिठाई हो रही है। यद्यपि हे भक्तो का हित करने वाले! यह ढिठाई भी आपको अच्छी लगती है। आप ब्रह्मा आदि के पिता जगत के स्वामी और सबके हृदय के भीतर की जानने वाले है ब्रह्म है।
4- ऐसा समझने पर संदेह मन में होता है फिर भी प्रभु ने जो कहा वही सत्य प्रमाण है। हे नाथ! आपके जो निज जन है और वे जो अलौकिक, अखंड सुख पाते है और जिस परम गति को प्राप्त होते है।
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