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Vigyan Bhairav Tantra Pdf Free Download
प्रस्तुत कृति मेँ मेरी दृष्टि मूलं ग्रन्थ ओर उसकी टीकाओं के अनुवाद तक ही सीमित रही दै । अतः ग्रन्थ के अन्य उपयोगी पक्षों पर विष प्रकाश नहीं डााजासकाहै। यद्यपिरमैने प्रतिपाद्य विषय को टीका के अतिरिक्त भार- तीय दर्शन के अन्य ग्रन्थों से भी तुलना करने का प्रयत्न कियाद, किन्तु फिर भी सम्पूण ग्रन्थ में जये हुए पारिभाषिक शब्दों की तुलनात्मक व्याख्या नहीं कीजासकी दै, जो दर्शन-ग्रन्थ कै लिए आवश्यक है ।
इस सम्बन्ध मेँ आगे कभी विस्तृत अध्ययनके साथ कायं किया जा सकेगा। प्रस्तुत कृति में योग-साधनाओं से सम्बन्धित “करंकिणी’, (क्रोधना’, “भैरवी’, ‘केलिहाना’ ओर “वेचरी’ आदि मुद्राओं तथा जन्माग्र, मूल, “कन्द, “नाभिः, “हृदयः, “कण्ठ”, “तालु”, “भ्रू मध्य”, “ललाट, श्रह्यरंघ्र’, “शक्ति” ओर ‘व्यापिनी’– द्वादश चक्रों काभी उल्लेख हुआ है, उनमेंसे ७ चक्रोंको चित्र द्वारा भी स्पष्ट करने का प्रयत्न कियादै।
इस ग्रन्थ को पाठकों के सामने प्रस्तुत करते हृए॒ सभी पूर्वाचार्य ओर श्रद्धेयचरण गुरुदेव प्रो० डं रामचन्द्र द्विवेदी, अधिष्ठाता कलासंकाय, अध्यन्न संस्कृत विभाग, राजस्थान विदवविद्याल्य क प्रति हादिक आभार व्यक्तं करना अपना पुनीत कर्तव्य समक्लता हँ । वस्तुतः आप ही मेरे साहित्यानुज्ञीलन के मुख्य प्रेरणा-वेनद्र रहै दै।
इस ग्रन्थ का अनुवाद कायं सन् १९७२ ई० में सम्पन्न हुआ था । मूल ग्रन्थ तथा उस पर प्राप टीकाओं की हिन्दी व्याख्या, शिवोपाध्याय की विढ़ति तथा सेमीक्षात्मक टिष्पणियों के साथ प्रकाशना्थे सन् १९७६ ई०्के उत्तराद्धं मे चौखम्बा सुरभारती प्रकाशन को दिया गया था।
उनकी अधिक व्यस्तता के कारण इसका प्रकाशन १५ ( पन्द्रह ) वषो बाद संभव हो सका है! इस बीच इस ग्रन्थ पर विस्तृत सामग्री उपलब्ध हो रही दहै, तथापि इसका हिन्दी भाषा मे यह प्रथम अनुवाद दहै। यहीकारणदै कि इसमे आये हए तंत्र, योग व त्रिक दर्शन के पारिभाषिक शब्दों की विस्तृत व्याख्या नहींहो सकी है । द्वितीय संस्करण में इस कार्यकोपूराक्पाजा सकेगा ।
पराक्कथन समाप्त करने से पूर्वं मँ अपना परिवार, प्रातःस्मरणीय श्रद्धेय पिताश्री श्रीओकारलाल जी आंजना को नहीं भुला सकता । मेरा जीवन- सर्वस्व उन्हीं के श्रीचरणोंकीकृपाका प्रतिफल मात्रदै। साधदटी सहधर्म- चारिणी सौ० सीतादेवी आंजना का हृदय से स्मरण कर रहा हूं, जिन्होने मृज्ञे भगवती सरस्वती की आराधना में संयोजित किया है ओर स्वयं पारिवारिक दायित्वं का निरवहन कियाहै।
इ्लोकानुक्रमणिका तथा शब्दानुक्रमणिका तैयार करने मेँ सहायता करने वाली पुव्रीद्रय पूनम रानी एवं सुस्मिता ५ के उज्ज्वल भविष्य की कामना करता हूं। अन्त में व्यवस्थापक, चौखम्बा सुरभारती प्रकाशन कै प्रति भी कृतज्ञता द॑ करना अपना कर्तव्य समन्ता हूं, जिन्होंने यह ग्रंथ प्रकाशित कर हिन्दू- संसृति एवं साहित्य के प्रति अपने सहज अनुराग का परिचय दियादहै।
स्वलन ओर च्रुटियां तो मनुष्य के स्वभावमें लगी हुई है । हमारे तुच्छ | प्रयासकाक्या मूल्यहोगा? यह तो नीर-क्षीर-विवेक से संपन्न पंडित्त-प्रवर ही निश्चित कर सकंगे। “हेम्नः संलक्ष्यते ह्यग्नौ विशुद्धिः इयामिकापि वा ।’
अभीतो मै अपनी असमर्थता की प्रतीति से अभिभूतहो रहाहं– “क्व सूर्यप्रभवो वंशः क्व॒ चाल्पविषया मतिः । तितीरषदस्तरं मोहादुडुपेनास्मि सागरम् ॥ अथवा कृतवाग्द्रारे वंशेऽस्मिन् पूरवमूरिभिः। | मणौ वज्रसमृत्कीर्णे सूत्रस्येवास्ति मे गतिः॥
विद्रद्वशं वदः
बापलाल आज्जना
Vigyan Bhairav Tantra Pdf Download
पुस्तक का नाम | Vigyan Bhairav Tantra Pdf |
पुस्तक के लेखक | क्षेमराज आचार्य |
भाषा | हिंदी |
साइज | 32.4 Mb |
पृष्ठ | 213 |
श्रेणी | स्वास्थ्य |
फॉर्मेट |
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