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Vedant Darshan Pdf Hindi Download
पुस्तक का नाम | Vedant Darshan Pdf Hindi |
पुस्तक के लेखक | वेदव्यास |
भाषा | हिंदी |
साइज | 15.8 Mb |
पृष्ठ | 420 |
फॉर्मेट | |
श्रेणी | धार्मिक |
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वेदांत दर्शन Pdf के बारे में
ज्ञान योग वह श्रोत जो ज्ञान प्राप्ति की दिशा में जागृत करता है वही वेदांत है। जो वेद ग्रंथो और वैदिक साहित्य का सार (तत्व) समझे जाते है उसे उपनिषद कहा जाता है और यह वेदांत के प्रमुख श्रोत होते है। वेदांत की तीन शाखाये है अद्वैत, विशिष्ट अद्वैत, द्वैत और यही तीनो शाखाये सबसे ज्यादा प्रचलित है।
उपनिषद वैदिक साहित्य का अंतिम भाग होने से ही वेदांत कहा जाता है। आदिशंकराचार्य, रामानुज और मध्वाचार्य की तीनो शाखाओ का प्रवर्तक माना जाता है। आधुनिक काल के वेदान्तियों में रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानंद, अरविन्द घोष, महर्षि रमण इत्यादि लोगो का नाम अग्रणी है। यह प्रमुख लोग अद्वैत वेदांत की शाखा का प्रतिनिधित्व करते है।
अद्वैत के बाद में ब्रह्म के निर्गुण रूप की विवेचना प्राप्त होती है और इसके प्रवर्तक आदि शंकराचार्य है। रामानुज और मध्वाचार्य ने द्वैतवाद में ईश्वर के सगणू रूप को निरूपित किया है। जिस मत को क्रमशः विशिष्ठा द्वैत एवं द्वैत कहा जाता है। इसके प्रवर्तक रामानुज और मध्वाचार्य है।
अद्वैतवाद में शंकराचार्य ने प्रस्थानत्रयी अर्थात उपनिषद, ब्रह्मसूत्र तथा गीता पर लिखे गए भाष्यो के माध्यम से अपने मत का प्रतिपादन तथा समर्थन किया है। रामानुज द्वारा स्थापित मत को विशिष्ठा द्वैत कहा जाता है। शंकराचार्य के पश्चात इनके मत को भी बहुत प्रधानता प्राप्त हुई है।
सिर्फ पढ़ने के लिये
उसे सुनकर मैं पुत्रशोक से पीड़ित हो गया और अत्यंत व्यग्र हो व्यथित चित्त से बड़ी चिंता करने लगा। फिर मैंने भक्ति भाव से भगवान विष्णु का स्मरण किया। इससे मुझे समयोचित ज्ञान प्राप्त हुआ। तदनन्तर देवताओ और मुनियो के साथ मैं विष्णुलोक में गया और वहां भगवान विष्णु को नमस्कार एवं नाना प्रकार के स्तोत्रों द्वारा उनकी स्तुति करके उनसे अपना दुःख निवेदन किया।
मैंने कहा – देव! जिस तरह भी यज्ञ पूर्ण हो यजमान जीवित हो और समस्त देवता तथा मुनि सुखी हो जाय वैसा उपाय कीजिए। देवदेव! रमानाथ! देवसुखदायक विष्णो! हम देवता और मुनि निश्चय ही आपकी शरण में आये है। मुझ ब्रह्मा की यह बात सुनकर भगवान लक्ष्मीपति विष्णु जिनका मन सदा शिव में लगा रहता है और जिनके हृदय में कभी दीनता नहीं आती शिव का स्मरण करके इस प्रकार बोले।
देवताओ! परम समर्थ तेजस्वी पुरुष से कोई अपराध बन जाय तो भी उसके बदले में अपराध करने वाले मनुष्यो के लिए वह अपराध मंगलकारी नहीं हो सकता। विधातः! समस्त देवता परमेश्वर शिव के अपराधी है क्योंकि उन्होंने भगवान शंभु को यज्ञ का भाग नहीं दिया।
अब तुम सब लोग शुद्ध हृदय से शीघ्र ही प्रसन्न होने वाले उन भगवान शिव के पैर पकड़कर उन्हें प्रसन्न करो। उनसे क्षमा मांगो। जिन भहगवां के कुपित होने पर यह सारा जगत नष्ट हो जाता है तथा जिनके शासन से लोकपालो सहित यज्ञ का जीवन शीघ्र ही समाप्त हो जाता है।
वे भगवान महादेव इस समय अपनी प्राण वल्लभा सती से बिछुड़ गए है तथा अत्यंत दुरात्मा दक्ष ने अपने दुर्वचन से उनके हृदय को पहले ही घायल कर दिया है अतः तुम लोग शीघ्र ही जाकर उनसे अपने अपराधों के लिए क्षमा मांगो। विधे! उन्हें शांत करने का केवल यही सबसे बड़ा उपाय है।
मैं समझता हूँ ऐसा करने से भगवान शंकर को संतोष होगा। यह मैंने सच्ची बात कही है। ब्रह्मन! मैं भी तुम सब लोगो के साथ शिव के निवास स्थान पर चलूँगा और उनसे क्षमा मागूंगा। देवता आदि सहित मुझ ब्रह्मा को इस प्रकार आदेश देकर श्रीहरि ने देवगणो के साथ कैलास पर्वत पर जाने का विचार किया।
तदनन्तर देवता मुनि और प्रजापति आदि जिनके स्वरुप ही है वे श्रीहरि उनको साथ ले अपने बैकुंठ धाम से भगवान शिव के शुभ निवास गिरिश्रेष्ठ कैलास को गए। कैलास भगवान शिव को सदा ही अत्यंत प्रिय है। मनुष्यो से भिन्न किन्नर, अप्सराये और योगसिद्ध महात्मा पुरुष उसका भलीभांति सेवन करते है तथा वह पर्वत बहुत ही ऊँचा है।
उसके निकट रुद्रदेव के भिन्न कुबेर की अलका नामक महादिव्य एवं रमणीय पुरी है जिसे सब देवताओ ने देखा। उस पुरी के पास ही सौगंधिक वन भी देवताओ की दृष्टि में आया जो सब परकै वृक्षों से हरा-भरा एवं दिव्य था। उसके भीतर सर्वत्र सुगंध फैलाने वाले सौगंधिक नामक कमल खिले हुए थे।
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