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Vat Savitri Vrat Katha Pdf Hindi Download
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वट सावित्री व्रत कथा Pdf
वट सावित्री और उसकी कथा का सुहागिन स्त्रियों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। इस कथा में सावित्री और उसके पति सत्यवान का वर्णन किया गया है। वट सावित्री के व्रत से सुहागिन स्त्रियों का सुहाग अक्षय रहता है तथा सुहागिन स्त्रियों के पति की आयु दीर्घ होती है।
मान्यताओं के अनुसार सावित्री ने भी अपने पति के प्राण को इसी दिन यमराज से वापस प्राप्त किया था। यह कथा इस प्रकार है – अश्वपति नाम के एक राजा थे। वह बहुत धार्मिक प्रवृत्ति के थे। दैवयोग से बहुत दिनों के बाद उन्हें एक कन्या रत्न की प्राप्ति हुई। उस कन्या का नाम सावित्री रखा गया।
वह कन्या द्वितीया के चन्द्रमा की भांति बढ़ने लगी। सावित्री रूपवती होने के साथ ही बहुत गुणवती थी। राजा अश्वपति को उसके विवाह की चिंता होने लगी। सावित्री अपने पिता की आज्ञा से स्वयं ही अपने योग्य वर की तलाश में निकल पड़ी। कई दिन बीतने के पश्चात सावित्री की तलाश सत्यवान के ऊपर जाकर पूर्ण हुई।
सत्यवान द्युमत्सेन नामक राजा का पुत्र था। विरोधी राजाओ ने उनका राज्य छीन लिया था। अतः राजा और रानी जो कि अंधे हो चुके थे अपने पुत्र सत्यवान के साथ जंगल में निवास करने लगे। सत्यवान जंगल से लकड़ियां तोड़कर बेचता और उससे प्राप्त हुई आय से अपने माता-पिता के साथ ही अपनी उदर पूर्ति करता था।
सत्यवान को देखने के बाद सावित्री घर लौट आयी तथा अपने पिता से कहा कि वह सत्यवान के साथ ही विवाह करना चाहती है। उसी समय अश्वपति के दरबार में नारद मुनि का आगमन हुआ उन्होंने कहा – राजन! आपकी यह कन्या जिससे विवाह करने जा रही है वह बालक अल्पायु है।
उसकी आयु कुछ दिन के लिए ही शेष है अतः सावित्री का उसके साथ विवाह करना उचित नहीं है। नारद मुनि की यह बात सुनकर सावित्री जिद पर अड़ गयी कि उसे हर हालात में सत्यवान से ही विवाह करना है। सावित्री की जिद से हारकर राजा अश्वपति ने सत्यवान के साथ उसका विवाह कर दिया।
सावित्री ने राज वैभव का त्याग कर दिया तथा सत्यवान और उसके अंधे माता-पिता की सेवा करने के लिए वन में रहने लगी। सत्यवान का अंत समय निकट आ गया था। सावित्री उसे एक पल के लिए भी अकेला नहीं छोड़ती थी। एक दिन सावित्री ने भी जिद करके सत्यवान के साथ जंगल में चली गयी।
सत्यवान लकड़ी तोड़ने के लिए पेड़ पर चढ़ गया। अचानक उसे भयंकर सरदर्द हुआ वह नीचे उतर आया तथा जमीन पर लेट गया। सावित्री ने उसका सिर गोद में रख लिया। उसी समय यमराज ने आकर सत्यवान का प्राण हर लिया। सावित्री को पहले ही ज्ञात था कि तीसरे दिन सत्यवान की मौत होने वाली है।
उसने तीन दिन पहले से ही अन्न जल त्याग कर दिया था। सावित्री ने यमराज से अपने पति के प्राण लौटाने की प्रार्थना किया और उनके पीछे-पीछे चलने लगी। कुछ दूर चलने के बाद यमराज ने देखा कि सावित्री उनके पीछे आ रही है। तब उन्होंने सावित्री से कहा कि मैं तुम्हारे साहस और पति निष्ठा से प्रसन्न हूँ तुम मुझसे सत्यवान के प्राण को छोड़कर कोई दूसरा वरदान मांग लो और वापस लौट जाओ।
सावित्री ने कहा – महाराज! हमारे सास-ससुर का अंधापन समाप्त होकर उनका खोया हुआ राज्य पुनः प्राप्त हो जाय। यमराज ने तथास्तु कहा और चल दिए। कुछ दूर जाने के पश्चात उन्होंने पुनः पीछे मुड़कर देखा कि सावित्री फिर उनके पीछे आ रही है।
तब यमराज ने कहा – पुत्री! मृत्यु इस सृष्टि का अटल नियम है तुम मुझसे एक वरदान और ले लो पर यहां से लौट जाओ। सावित्री बोली – कि हमारे पिता पुत्रहीन है उन्हें पुत्र की प्राप्ति हो जाय। यमराज ने तथास्तु कहा फिर आगे बढ़ चले। कुछ दूर फिर आगे आने के बाद यमराज ने पीछे मुड़कर देखा कि सावित्री उनके पीछे चली आ रही है।
यमराज रुककर बोले – पुत्री! तुम ब्यर्थ ही कष्ट कर रही हो मैं सत्यवान के प्राण को मुक्त करने में समर्थ नहीं हूँ। सावित्री बोली – मै अपने पति के प्राण के बिना वापस नहीं जा सकती हूँ। यम ने कहा – तुम मुझसे एक वरदान और मांग लो पर यहां से वापस लौट जाओ।
सावित्री ने कहा – यदि आप मुझपर प्रसन्न है तो मुझे सौ पुत्रो का वरदान दीजिए। यमराज ने तथास्तु कह दिया फिर जाने लगे तब सावित्री बोली – महाराज! आपने मुझे सौ पुत्रो का वरदान दिया है और हमारे पति के प्राण को अपने साथ लिए जा रहे है तब आपका यह वरदान कैसे सफल होगा। यमराज ने हारकर सत्यवान के प्राण को मुक्त कर दिया तथा सावित्री को अखंड सौभाग्य प्रदान कर वहां से चले गए।
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