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वास्तु शास्त्र बहुत ही पुराना शास्त्र है। इसके माध्यम से घर के वास्तु को ठीक किया जाता है। घर का वास्तु ठीक नहीं रहने पर या यूँ कहे कि वास्तु के अनुसार घर नहीं बनने पर कई तरह की परेशानिया घर में आती है। वही अगर घर की बनावट वास्तु के अनुसार रहे तो घर में बहुत बरकत होती है।
वास्तु के बारे में बहुत से लोग जानते है लेकिन इसकी सही जानकारी लोगो को नहीं रहती है, इसके लिए अच्छी Vastu Book की आवश्यकता होती है। आपको इस पोस्ट में Best Vastu Book Pdf मिल जाएगी।
सिर्फ पढ़ने के लिए
इच्छाओ से रहित-ममता का त्याग – श्री कृष्ण कहते है – जिस व्यक्ति ने इन्द्रिय तृप्ति की समस्त इच्छाओ का परित्याग कर दिया है जो इच्छाओ से रहित है और जिसने सारी ममता त्याग दी है तथा अहंकार से रहित है वही व्यक्ति शांति को प्राप्त कर सकता है।
उपरोक्त शब्दों का तात्पर्य – भौतिक दृष्टि से इच्छा शून्य व्यक्ति जानता है कि प्रत्येक व्यक्ति कृष्ण की है (ईशावास्यमिदं सर्वम) अतः वह किसी वस्तु पर अपना स्वामित्व घोषित नहीं करता है। यह दिव्यज्ञान आत्म-साक्षातकार पर आधारित है अर्थात इस ज्ञान पर कि प्रत्येक जीव कृष्ण का ही अंश स्वरुप है और जीव की शाश्वत स्थिति कभी न तो कृष्ण के तुल्य हो सकती है न तो कृष्ण से बढ़कर हो सकती है।
निस्पृह होने का अर्थ है – इन्द्रिय तृप्ति के लिए कुछ भी इच्छा न करना। दूसरे शब्दों में कृष्ण भावनाभावित होने की इच्छा ही वास्तव में इच्छा शून्यता या निस्पृहता है। इस शरीर को मिथ्या ही आत्मा माने बिना तथा संसार की किसी वस्तु में कल्पित स्वामित्व रखे बिना ही श्री कृष्ण के नित्य दास के रूप में अपनी यथार्थ स्थिति को जान लेना ही कृष्ण भावनामृत की सिद्ध अवस्था है।
अर्जुन आत्म-तुष्टि के लिए ही युद्ध नहीं करना चाहता था किन्तु जब वह पूर्णरूप से कृष्ण भावनाभावित हो गया तो उसने युद्ध किया क्योंकि कृष्ण चाहते थे कि वह युद्ध करे। उसे अपने लिए युद्ध करने की कोई इच्छा नहीं थी किन्तु वही अर्जुन कृष्ण के लिए अपनी सम्पूर्ण शक्ति लगाकर युद्ध किया।
जो ऐसी सिद्ध अवस्था में शांत होता है वह जानता है कि कृष्ण ही प्रत्येक वस्तु के स्वामी है। वह प्रत्येक वस्तु का उपयोग कृष्ण की तुष्टि के लिए ही करता है। वास्तविक इच्छा शून्यता कृष्ण की तुष्टि के लिए इच्छा है यह इच्छाओ को नष्ट करने का कोई कृतिम प्रयास नहीं है। जीव कभी भी इच्छा शून्य या इन्द्रिय शून्य नहीं हो सकता है किन्तु उसे अपनी इच्छाओ की गुणवत्ता बदलनी होती है। इस प्रकार से वह कृष्ण भावनामृत का ज्ञान ही वास्तविक शांति का मूल सिद्धांत है।
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