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Vardha hindi shabdkosh pdf / वर्धा हिंदी शब्दकोष pdf

नमस्कार मित्रों, इस पोस्ट में हम आपको Vardha hindi shabdkosh pdf देने जा रहे हैं, आप नीचे की लिंक से Vardha hindi shabdkosh pdf Download कर सकते हैं और यहां से Parmal Raso Pdf Hindi कर सकते हैं।

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Vardha hindi shabdkosh pdf

 

 

पुस्तक का नाम  Vardha hindi shabdkosh pdf
पुस्तक के लेखक  राम प्रकाश सक्सेना 
भाषा  हिंदी 
फॉर्मेट  Pdf 
साइज  28.5 Mb 
पृष्ठ  3185 
श्रेणी  साहित्य 

 

 

 

वर्धा हिंदी शब्दकोष pdf Download

 

 

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सिर्फ पढ़ने के लिये 

 

 

गोत्र, कुल  और नाम से रहित स्वतंत्र परमेश्वर है। साथ ही अपने भक्तो  के प्रति बड़े दयालु है। भक्तो  की इच्छा से ही ये निर्गुण और सगुण हो जाते है। निराकार होते हुए भी सुंदर शरीर धारण कर लेते है और अनामा होकर भी बहुत से नाम वाले हो जाते है।

 

 

 

ये गोत्रहीन होकर भी उत्तम गोत्र वाले है कुलहीन होकर भी कुलीन है पार्वती की तपस्या से ही ये आज तुम्हारे जामाता बन गए है इसमें संशय नहीं है। गिरिश्रेष्ठ! इन लीलाविहारी परमेश्वर ने चराचर जगत को मोह में डाल रखा है। कोई कितना ही बुद्धिमान क्यों हो वह भगवान शिव को अच्छी तरह नहीं जानता।

 

 

 

ब्रह्मा जी कहते है – मुने! ऐसा कहकर शिव की इच्छा से कार्य कराने वाले तुझ ज्ञानी देवर्षि शैलराज को अपनी वाणी से हर्ष प्रदान करते हुए इस प्रकार उत्तर दिया। नारद जी बोले – शिवा को जन्म देने वाले तात महाशैल! मेरी बात सुनो और उसे सुनकर अपनी पुत्री शंकर जी के हाथ में दे दो।

 

 

 

लीलापूर्वक रूप धारण करने वाले सगुण महेश्वर का गोत्र और कुल नाद ही है इस बात को अच्छी तरह समझ लो। शिव नादमय है और नाद शिवमय है यह सर्वथा सच्ची बात है। नाद और शिव इन दोनों में कोई अंतर नहीं है। शैलेन्द्र! सृष्टि के समय सबसे पहले शिव से ही नाद प्रकट हुआ था। अतः वह सबसे उत्कृष्ट है।

 

 

 

हिमालय! इसीलिए मन ही मन सर्वेश्वर शंकर के द्वारा प्रेरित हो मैंने आज अभी वीणा बजाना आरंभ किया था। ब्रह्मा जी कहते है – मुने! तुम्हारी यह बात सुनकर गिरिराज हिमालय को संतोष प्राप्त हुआ और उनके मन का सारा विस्मय जाता रहा। तदनन्तर श्री विष्णु आदि देवता तथा मुनि सब के सब विस्मय रहित हो नारद को साधुवाद देने लगे।

 

 

 

महेश्वर की गंभीरता जानकर सभी विद्वान आश्चर्य चकित हो बड़ी प्रसन्नता के साथ परस्पर बोले – अहो! जिनकी आज्ञा से इस विशाल जगत का प्राकट्य हुआ है जो परात्पर, आत्मबोध स्वरुप, स्वतंत्र लीला करने वाले तथा उत्तम भाव से ही जानने योग्य है उन त्रिलोक नाथ भगवान शंभु का आज हम लोगो ने भली भांति दर्शन किया है।

 

 

 

तदनन्तर हिमालय ने विधि के द्वारा प्रेरित हो भगवान शिव को अपनी कन्या का दान कर दिया। कन्यादान करते समय वे बोले – परमेश्वर! मैं अपनी यह कन्या आपको देता हूँ। आप इसे अपनी पत्नी बनाने के लिए ग्रहण करे। सर्वेश्वर! इस कन्यादान से आप संतुष्ट हो।

 

 

 

इस मंत्र का उच्चारण करके हिमालय ने अपनी पुत्री त्रिलोक जननी पार्वती  को उन महान देवता रूद्र के हाथ में दे दिया। इस प्रकार शिवा का हाथ शिव के हाथ में रखकर शैलराज मन ही मन बड़े प्रसन्न हुए। उस समय वे अपने मनोरथ के महासागर को पार कर गए थे।

 

 

 

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