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Vande Mataram Pdf / वंदे मातरम Pdf
Vande Mataram Meaning in Hindi Pdf

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Vande Mataram in Hindi
वन्दे मातरम् सुजलां सुफलां मलयजशीतलाम् शस्यशामलां मातरम् ।
शुभ्रज्योत्स्नापुलकितयामिनीं फुल्लकुसुमितद्रुमदलशोभिनीं सुहासिनीं सुमधुर भाषिणीं सुखदां वरदां मातरम् ।। १ ।।
वन्दे मातरम् ।
संत कोटि-कोटि-कण्ठ-कल-कल-निनाद-कराले कोटि-कोटि-भुजैर्धृत-खरकरवाले, अबला केन मा एत बले ।
बहुबलधारिणीं नमामि तारिणीं रिपुदलवारिणीं मातरम् ।। २ ।।
वन्दे मातरम् ।
तुमि विद्या, तुमि धर्म तुमि हृदि, तुमि मर्म त्वं हि प्राणा: शरीरे बाहुते तुमि मा शक्ति, हृदये तुमि मा भक्ति, तोमारई प्रतिमा गडि मन्दिरे-मन्दिरे मातरम् ।। ३ ।।
वन्दे मातरम् ।
त्वं हि दुर्गा दशप्रहरणधारिणी कमला कमलदलविहारिणी वाणी विद्यादायिनी, नमामि त्वाम् नमामि कमलां अमलां अतुलां सुजलां सुफलां मातरम् ।। ४ ।।
वन्दे मातरम् ।
श्यामलां सरलां सुस्मितां भूषितां धरणीं भरणीं मातरम् ।। ५ ।।
वन्दे मातरम् ।।
सिर्फ पढ़ने के लिये
दोहा का अर्थ-
उन्होंने अनगिनत अनुपम सती, ब्रह्माणी और लक्ष्मी देखी। जिस-जिस रूप में ब्रह्मा आदि देवता थे। उसी के अनुकूल रूप में (उनकी) ए सब (शक्तियां) भी थी।
चौपाई का अर्थ-
1- सती जी ने जहां तहां जितने रघुनाथ जी देखे, शक्तियों सहित वहां उतने ही सारे देवताओ को भी देखा। संसार में जो चराचर जीव है, वे भी अनेक प्रकार से सब देखे।
2- (उन्होंने देखा कि) अनेको धारण करके देवता प्रभु श्री रामचंद्र जी की पूजा कर रहे है। परन्तु श्री राम जी का दूसरा रूप कही नहीं देखा सीता सहित श्री रघुनाथ जी बहुत से देखे, परन्तु उनके वेश अनेक नहीं थे।
3- सब जगह वही रघुनाथ जी वही लक्ष्मण वही सीता जी सती ऐसा देखकर बहुत ही डर गई। उनका हृदय कांपने लगा और देह की सारी सुध बुध जाती रही। वे आंख मूंदकर मार्ग में बैठ गई।
4- फिर आंख खोलकर देखा, तो वहां दक्ष कुमारी (सती जी) को कुछ भी न दीख पड़ा। तब वे बार-बार श्री राम जी के चरणों में सिर नवाकर वहां चली जहां शिव जी थे।
55- दोहा का अर्थ-
जब पास पहुंची तब श्री शिव जी ने हंसकर कुशल प्रश्न करके कहा कि तुमने राम जी की किस प्रकार परीक्षा ली, सारी बात सच-सच कहो।
चौपाई का अर्थ-
1- सती जी ने श्री रघुनाथ जी के प्रभाव को समझकर डर के मारे शिव जी से छिपाव किया और कहा – हे स्वामिन ! मैंने कुछ भी परीक्षा नहीं ली (वहां जाकर) आपकी तरह प्रणाम किया।
2- आपने जो कहा वह झूठ नहीं हो सकता, मेरे मन में यह बड़ा (पूरा) विश्वास है। तब शिव जी ने ध्यान करके देखा और सती जी ने जो चरित्र किया था सब जान लिया।
3- फिर श्री राम जी की माया से सिर नवाया, जिसने प्रेरणा करके सती से झूठ भी कहला दिया। सुजान शिव जी ने मन में विचार किया कि हरि की इच्छा रूपी भावी प्रबल है।
4- सती जी ने सीता जी का वेश धारण किया यह जानकर शिव जी के हृदय में बड़ा विषाद हुआ। उन्होंने सोचा कि यदि मैं अब सती से प्रीति करता हूँ तो भक्ति मार्ग लुप्त हो जाता है और बड़ा अन्याय होता है।
56- दोहा का अर्थ-
सती परम पवित्र है, इसलिए इन्हे छोड़ते भी नहीं बनता और प्रेम करने में बड़ा पाप है। प्रकट करके महादेव जी कुछ भी नहीं कहते, परन्तु उनके हृदय में बड़ा संताप है।
चौपाई का अर्थ-
1- तब शिव जी ने प्रभु श्री राम जी के चरण कमलो में सिर नवाया और श्री राम जी का स्मरण करते ही उनके मन में यह आया कि सती के इस शरीर से मेरी (पति-पत्नी रूप में) भेंट नहीं हो सकती और शिव जी ने अपने मन में यह संकल्प कर लिया।
2- स्थिर बुद्धि शंकर जी ऐसा विचार कर श्री रघुनाथ जी का स्मरण करते हुए अपने घर कैलास को चले। चलते समय सुंदर आकाशवाणी हुई कि हे महेश ! आप की जय हो। आपने भक्ति अच्छी दृढ़ता के साथ पालन किया।
3- आप को छोड़कर दूसरा कौन ऐसी प्रतिज्ञा कर सकता है? आप श्री राम जी के भक्त है, समर्थ है, और भगवान है। इस आकाशवाणी को सुनकर सती जी के मन में चिंता हुई और उन्होंने सकुचाते हुए शिव जी से पूछा।
4- हे कृपालु! कहिए आपने कौन सी प्रतिज्ञा की है? हे प्रभो! आप सत्य के धाम और दीनदयाल है यद्यपि सती जी ने बहुत प्रकार से पूछा, परन्तु त्रिपुरारी शिव जी ने कुछ न कहा।
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