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Valmiki Ramayan Hindi Gita Press PDF
पुस्तक का नाम | Valmiki Ramayan Hindi Gita Press PDF |
पुस्तक की भाषा | हिंदी |
पुस्तक के लेखक | गीता प्रेस |
श्रेणी | धार्मिक |
कुल पृष्ठ | 2026 |
साइज | 46.54 MB |
फॉर्मेट | Valmiki Ramayan Pdf |








वाल्मीकीय रामायण का हिन्दू धर्म में महत्वपूर्ण स्थान है। यह रामायण संस्कृत साहित्य का एक अनमोल अद्वितीय आरंभिक महाकाव्य है। जो अनुष्टुप छंदों में रचित है। इसमें श्री राम के चरित्र का उत्तम एवं वृद्ध विवरण काव्य रूप में मूर्त रूप लिया।
इस रामायण की यह अद्वितीय विशेषता है कि इसकी रचना आदि कवि ने श्री राम के अवतरित होने के पूर्व ही लिख दिया था और यह महाकाव्य की अद्भुत विशेषता है कि आदि कवि वाल्मीकि ने इस संस्कृत महाकाव्य में जैसा-जैसा वर्णन किया हुआ है। श्री राम के अवतरित होने के उपरांत वैसा ही घटित होता चला गया है।
महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित होने के कारण ही इसे वाल्मीकीय रामायण के रूप में इस महाकाव्य की ख्याति हुई। वर्तमान में श्री राम के चरित्र पर आधारित जितने भी ग्रंथ उपलब्ध है। उन सबका मूल महर्षि वाल्मीकि कृत वाल्मीकीय रामायण ही है।
वाल्मीकीय रामायण के जनक महर्षि वाल्मीकि को आदि कवि माना जाता है और इसलिए यह महाकाव्य आदिकाव्य माना गया है। यह महाकाव्य भारतीय संस्कृत के महत्वपूर्ण आयामों को दर्शाता है और भारतीय मूल्य को परिलक्षित करने कारण ही यह साहित्य रूप में अक्षयनिधि है। इस महाकाव्य के 7 काण्ड है जो निम्नलिखित है।
1. बालकाण्ड Balkand
रामायण का आरंभ इसी काण्ड से ही होता है। इसमें श्री राम और उनके तीनों भाइयों के जन्म के साथ-साथ श्री राम के अनुपम और अद्भुत लीला का वर्णन है। इसके साथ हीविश्वामित्र ऋषि के आश्रम की रक्षा करते हुए तड़का इत्यादि का वध करने के उपरांत उनकी शिक्षा तथा सीता के साथ पाणिग्रहण तक की आकर्षक और सुंदर ढंग से वर्णित किया गया है।
2. अयोध्याकाण्ड ramayan pdf
इस काण्ड में कैकेई की दासी मंथरा द्वारा उकसाने पर कैकेई के द्वारा महाराज दशरथ से दो वरदान मांगना। 1. भरत के लिए राजगद्दी और दूसरा राम के लिए 14 वर्ष का वनवास।
भरत के द्वारा राम को अयोध्या वापस लाने का प्रयास करना फिर विफल होने पर राम की पादुका लेकर वापस अयोध्या आकर पादुका सिंहासन पर आरूढ़ करके स्वयं नंदीग्राम में निवास करने की कथा का यथार्थ वर्णन किया गया है।
3. अरण्य काण्ड ramayan pdf
इस काण्ड में कैकेई वचन के द्वारा राम सीता लक्ष्मण का वन गमन और दंडक वन के पंचवटी में रावण की बहन शूर्पणखा द्वारा राम और लक्ष्मण से प्रणय निवेदन करना फिर लक्ष्मण द्वारा शूर्पणखा को नाक विहीन करना तदुपरांत रावण द्वारा सीता के हरण की कहानी वर्णित है।
4. किष्किंधा काण्ड Ramayan Pdf in Hindi
इस काण्ड में राम और लक्ष्मण, सीता की खोज में किष्किंधा नगरी पहुँच जाते है। वहां उनकी मुलाकातहनुमान से होती है। हनुमान के द्वारा सुग्रीव और राम की मित्रता करायी जाती है। तत्पश्चात सुग्रीव के भाई बालि का वध, सुग्रीव की सेना का सीता की खोज के लिए प्रस्थान करना वर्णित है।
5. सुन्दर काण्ड Ramayan in Hindi Pdf
इस काण्ड में हनुमान सीता की खोज में लंका पहुँचते है। विभीषण द्वारा सीता के पास पहुंचकर अपना परिचय रामदूत के रूप में देना उसके उपरांत लंका दहन करने के पश्चात राम के पास लौटने के दृश्य का वर्णन है।
6. युद्ध काण्ड या लंका काण्ड ( रामायण कथा हिंदी में लिखित pdf )
जैसा कि यह काण्ड अपने नाम के अनुरूप ही है। इस काण्ड में सभी असुरों के साथ ही रावण, मेघनाद, कुंभकर्ण का वध करने के उपरांत सीता को रावण की कैद से आजाद कराकर लाना फिर सभी वानरी सेना के साथ अयोध्या वापस लौटना अयोध्या में दीपावली जैसा उत्सव का प्रादुर्भाव होना है।
7. उत्तर काण्ड ramayan book pdf in hindi
इस काण्ड में राम सीता लक्ष्मण के साथ-साथ सभी वानरी सेना अयोध्या आई। राम का सभी से एक साथ भेंट करना। भरत के साथ गुरु वशिष्ठ से भेंट तीनों माताओं का आशीर्वाद लेना तदुपरांत राम का राज्याभिषेक का सजीव वर्णन किया गया है।
वाल्मीकि रामायण के रहस्य Valmiki Ramayan Hindi Gita Press PDF
रामायण में 1000 श्लोक आने के बाद के प्रथम अक्षर से गायत्री मंत्र बनता है। पाठक गणो गायत्री मंत्र में कुल 24 अक्षर है और वाल्मीकि रामायण में 24000 श्लोक है। रामायण के प्रत्येक 1000 श्लोक के बाद आने वाले प्रथम अक्षर से गायत्री मंत्र बनता है।
1. भगवान राम की बहन ‘शांता’ – आप में से बहुत कम ही लोगो को पता होगा कि भगवान श्री राम की एक बहन भी थी। वह चारो भाइयो “राम, लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न” से बड़ी थी।
कहा जाता है कि एक बार अंगदेश के राजा रोमपद और रानी वर्षिणी भेट करने के लिए अयोध्या आए और बात ही बात में दुखी होकर राजा रोमपद ने कहा, “हमारी कोई संतान नहीं है।”
वे बहुत ही दुखी थे। तब राजा दशरथ ने कहा, “मैं अपनी बेटी शांता को आपको संतान के रूप में दूंगा।”
यह सुनकर राजा रोमपद और रानी वर्षिणी बहुत खुश हुए और एक संतान के रूप में शांता का लालन-पालन किया। एक दिन की बात है राजा रोमपद अपनी पुत्री से बात कर रहे थे और तभी एक साधु आए और भिक्षा मांगी।
लेकिन राजा रोमपद उनकी बात को सुन नहीं पाए और उनकी तरफ ध्यान नहीं दिया। इससे साधु बहुत क्रोधित हुए और राज्य छोड़कर चले गए।
साधु भगवान इंद्र के परम भक्त थे। इस घटना से इंद्र देव बहुत क्रोधित हुए और उन्होंने राज्य में वर्षा रोक दी। इससे चिंतित राजा ऋष्यश्रृंग ऋषि के पास गए और उनसे इसका उपाय पूछा तो ऋषि ने कहा कि भगवान इंद्र को प्रसन्न करने के लिए यज्ञ करना होगा।
उसके बाद यज्ञ हुआ और राज्य में खूब वर्षा हुई। इसके बाद ऋष्यश्रृंग ऋषि का शांता से विवाह हो गया। बाद में ऋष्यश्रृंग ऋषि ने ही राजा दशरथ के लिए पुत्र कामेष्टि का यज्ञ करवाया। आज भी यह स्थान अयोध्या में 39 कि. मी. दूर स्थित है।
रामायण में श्री राम सहित चारो भाई किसके अवतार थे?
भगवान श्री राम के बारे में लोगो को जानकारी है कि वे भगवान विष्णु के अवतार थे और लक्ष्मण जी शेषनाग के अवतार थे। परन्तु भरत और शत्रुघ्न किसके अवतार थे।
यह बहुत कम लोगो को पता है तो आपको हम बता रहे है कि भरत और शत्रुघ्न क्रमशः सुदर्शन चक्र और शैल नामक शंख के अवतार थे। सुदर्शन चक्र और शैल शंख को भगवान विष्णु ही धारण करते है।
सीता जी के स्वयंवर में भगवान श्री राम ने किस धनुष को तोड़ा था ?
आप लोग जानते ही है कि भगवान श्री राम और सीता जी का विवाह स्वयंवर के माध्यम से हुआ था और धनुष तोड़ने की शर्त थी। जिसे भगवान श्री राम ने तोड़ दिया था। आज हम आपको बता रहे है कि वह धनुष भगवान शिव का धनुष “पिनाक” था। यहां आपको यह बात भी जाननी बहुत जरुरी है कि लक्ष्मण रेखा का वर्णन वाल्मीकि रामायण में नहीं है।
गीता सार सिर्फ पढ़ने के लिए
श्री कृष्ण कहते है जिस प्रकार कछुआ अपने अंगो को संकुचित करके खोल के भीतर कर लेता है। उसी तरह जो मनुष्य अपनी इन्द्रियों को इन्द्रिय विषयो से खींच लेता है वह पूर्ण चेतना में दृढ़ता पूर्वक स्थिर होता है।
उपरोक्त शब्दों का तात्पर्य – शास्त्रों में अनेक आदेश है उनमे से कुछ ‘करो’ तथा कुछ ‘न करो’ से संबंधित है। जब तक कोई इन ‘करो या न करो’ का पालन नहीं कर पाता और पर संयम नहीं बरतता है तब तक उसका कृष्ण भावनामृत में स्थिर हो पाना असंभव है।
किसी योगी, भक्त या आत्म सिद्ध व्यक्ति की कसौटी यह है कि वह अपनी योजना के अनुसार इन्द्रियों को वश में कर सके किन्तु अधिकांश व्यक्ति के दास बने रहते है और कहने पर ही चलते है। यह इस प्रश्न का उत्तर है कि योगी किस प्रकार से स्थित होता है।
यहां पर सर्वश्रेष्ठ उदाहरण कछुए का है – जो किसी भी समय अपने अंगो को समेट सकता है और विशिष्ट उद्देश्य के लिए उन्हें प्रकट कर सकता है। इसी प्रकार कृष्ण भावना भावित व्यक्तियों की भी केवल भगवान की विशिष्ट सेवा के लिए काम आती है अन्यथा उनका संकोच कर लिया जाता है।
यहां इन्द्रियों की तुलना विषैले सर्पो से की गई है। वह अत्यंत स्वतंत्रता पूर्वक तथा बिना किसी नियंत्रण के कर्म में प्रवृत्त होना चाहती है। योगी या भक्त को इन इन्द्रिय विषय रूपी सर्पो को वश में करने के लिए एक सपेरे की भांति अत्यंत प्रबल होना चाहिए।
वह उन्हें कभी भी कार्य करने की छूट नहीं देता है। अर्जुन को उपदेश दिया जा रहा है वह अपनी इन्द्रियों को आत्मसंतुष्टि में न करके भगवान की सेवा में लगाए। अपने को सदैव ही भगवान की सेवा में लगाए रखना कूर्म द्वारा प्रस्तुत दृष्टान्त के अनुरूप ही है जो स्वयं अपनी इन्द्रियों को समेटे रखता है।
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