नमस्कार मित्रों, इस पोस्ट में हम आपको Tantrik jadi Buti In Hindi Pdf देने जा रहे हैं, आप नीचे की लिंक से Tantrik jadi Buti In Hindi Pdf Download कर सकते हैं और आप यहां से रहस्यमयी प्राचीन तंत्र विद्या PDF भी पढ़ सकते हैं।
Tantrik jadi Buti In Hindi Pdf / तांत्रिक जड़ी बूटी इन हिंदी पीडीएफ



सिर्फ पढ़ने के लिए
4- भरत जी ने आगे आकर उनका स्वागत किया और समयानुकूल उन्हें अच्छे आसन दिए। तिरहुत राज जनक जी कहने लगे – हे तात! भरत, तुमको तो श्री राम जी का स्वभाव तो मालूम ही है।
292- दोहा का अर्थ-
श्री राम जी सत्यव्रती और धर्म परायण है, सबका शील और स्नेह रखने वाले है। इसलिए वह संकोच वश संकट सह रहे है। अब तुम जो आज्ञा दो, वह उनसे कहा जाय।
चौपाई का अर्थ-
1- भरत जी यह सुनकर पुलकित शरीर से नेत्र में जल भरकर बहुत धीरज रखकर बोले – हे प्रभो! आप हमारे पिता के समान प्रिय और पूज्य है और कुलगुरु वशिष्ठ जी के समान हितैषी तो माता-पिता भी नहीं है।
2- विश्वामित्र जी आदि मुनियो और मंत्रियों का समाज है और आज के दिन ज्ञान के सागर आप भी उपस्थित है। हे स्वामी! मुझे अपना बालक, सेवक और आज्ञानुसार चलने वाला समझकर शिक्षा दीजिए।
3- इस समाज और पुण्य स्थल में आप जैसे ज्ञानी और पूज्य का पूछना। इसपर मैं यदि मौन रहता हूँ तो मलिन समझा जाऊंगा और बोलना पागलपन होगा तथापि मैं छोटा मुंह बड़ी बात कहता हूँ। हे तात! विधाता को प्रतिकूल जानकर क्षमा कीजियेगा।
4- वेद शास्त्र और पुराणों में प्रसिद्ध है और जगत जानता है कि सेवा धर्म बड़ा कठिन होता है। स्वामी के प्रति कर्तव्य पालन में और स्वार्थ में विरोध है।
दोनों का एक साथ कभी एक साथ निर्वाह नहीं हो सकता है। बैर अंधा होता है और प्रेम को ज्ञान नहीं रहता है। मैं स्वार्थ वश कहूं या भूल वश दोनों में भूल होने का भय है।
293- दोहा का अर्थ-
अतएव मुझे पराधीन जानकर मुझसे न पूछकर श्री राम जी के रुख, रुचि, धर्म और सत्य के व्रत को रखते हुए जो सबके सम्मत और सबके लिए हितकारी हो आप सबका प्रेम पहचानकर वही कीजिए।
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