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Swapna Shastra Pdf Download
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सिर्फ पढ़ने के लिये
आप ही सम्पूर्ण जगत के लिए वार्ता नामक वृत्ति है और आप ही धर्म स्वरूपा वेदत्रयी है। आप ही सम्पूर्ण भूतो में निद्रा बनकर रहती है। उनकी क्षुधा और तृप्ति भी आप ही है। आप ही तृष्णा, कांति, छबि, तुष्टि और सदा सम्पूर्ण आनंद को देने वाली है।
आप ही पुण्यकर्ताओ के यहां लक्ष्मी बनकर रहती है और आप ही पापियों के घर सदा ज्येष्ठा के रूप में वास करती है। आप ही सम्पूर्ण जगत की शांति है। आप ही धारण करने वाली धात्री एवं प्राणो का पोषण करने वाली शक्ति है। आप ही पांचो भूतो के सारतत्व को प्रकट करने वाली तत्व स्वरूपा है।
आप ही नीतिज्ञो की नीति तथा व्यवसायरूपिणी है। आप ही सामवेद की गीति है। आप ही ग्रंथि है। आप ही यजुर्मंत्रो की आहुति है। ऋग्वेद की मात्रा तथा अथर्ववेद की परम गति भी आप ही है। जो प्राणियों के नाक, कान नेत्र मुख भुजा वक्षःस्थल और हृदय में धृतिरुप से स्थित हो सदा ही उनके लिए सुख का विस्तार करती है।
जो निद्रा के रूप में संसार के लोगो को अत्यंत सुभग प्रतीत होती है वे देवी उमा जगत की स्थिति एवं पालन के लिए हम सब पर प्रसन्न हो। इस प्रकार जगज्जननी सती साध्वी महेश्वरी उमा की स्तुति करके अपने हृदय में विशुद्ध प्रेम लिए वे सब देवता उनके दर्शन की इच्छा से वहां खड़े हो गए।
ब्रह्मा जी कहते है – नारद! देवताओ के इस प्रकार स्तुति करने पर दुर्गम पीड़ा का नाश करने वाली जगज्जननी देवी दुर्गा उनके सामने प्रकट हुई। वे परम अद्भुत दिव्य रत्नमय रथ पर बैठी हुई थी। उस श्रेष्ठ रथ में घुँघुरु लगे हुए थे। उनके श्री विग्रह का एक-एक अंग करोडो सूर्यो से अधिक प्रकाशमान और रमणीय था।
ऐसे अवयवों से वे अत्यंत उद्भासित हो रही थी। सब ओर फैली हुई अपनी तेजोराशि की मध्य भाग में वे विराजमान थी। उनका रूप बहुत ही सुंदर था और उनकी छवि की कही तुलना नही थी। सदाशिव के साथ विलास करने वाली उन महामाया की किसी के साथ समानता नहीं थी।
शिवलोक में निवास करने वाली वे देवी त्रिविधि चिन्मय गुणों से युक्त थी। प्राकृत गुणों का आभाव होने से उन्हें निर्गुणा कहा जाता है। वे नित्यरूपा है। वे दुष्टो पर प्रचंड कोप करने के कारण चंडी कहलाती है। परन्तु स्वरुप से शिवा है। सबकी सम्पूर्ण पीड़ाओं का नाश करने वाली तथा सम्पूर्ण जगत की माता है।
वे ही प्रलयकाल में महानिद्रा होकर सबको अपने अंक में सुला लेती है तथा वे समस्त स्वजनों का संसार सागर से उद्धार कर देती है। शिवादेवी की तेजोराशि के प्रभाव से देवता उन्हें अच्छी तरह देख न सके। तब उनके दर्शन की अभिलाषा से देवताओ ने फिर उनका स्तवन किया।
तदनन्तर दर्शन की इच्छा रखने वाले विष्णु आदि सब देवता उन जगदंबा की कृपा पाकर वहां उनका सुस्पष्ट दर्शन कर सके। इसके बाद देवता बोले – अंबिके! महादेवी! हम सदा आपके दास है। आप प्रसन्नता पूर्वक हमारा निवेदन सुने। पहले आप दक्ष की पुत्री रूप से अवतीर्ण हो लोक में रूद्र देव की वल्लभा हुई थी।
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