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सुश्रुत संहिता के बारे में

इस संहिता में कुल 186 अध्याय है। 1120 रोगो 700 औषधीय पौधे खनिज श्रोत पर आधारित 64 प्रक्रियाओ जंतु श्रोतो पर आधारित 57 प्रक्रियाओ तथा 8 प्रकार की शल्य क्रियाओ का उल्लेख है।
सुश्रुत संहिता शल्य चिकित्सा एवं आयर्वेद का प्राचीन ग्रंथ है। इसको संस्कृत भाषा में लिपिबद्ध किया गया है। यह आयुर्वेद के तीन में अपना महत्वपूर्ण स्थान रखता है। इसका अरब की भाषा में ‘किताब ए ससुद’ नाम से अनुवाद किया गया है। इस महान ग्रंथ में रचनाकार ‘सुश्रुत’ है और इनका जन्म विश्व की प्राचीन नगरी ‘काशी’ में हुआ था।
शल्य शास्त्र को पृथ्वी पर लाने वाले आचार्य धन्वंतरि पहले व्यक्ति थे। आचार्य सुश्रुत ने गुरु के उपदेश को ग्रंथ रूप में लिपिबद्ध किया जो वर्तमान समय में भी ‘सुश्रुत संहिता’ के रूप में जाज्वल्य नक्षत्र की तरह चमक रहा है।
गीता सार सिर्फ पढ़ने के लिए
यहां पर अर्जुन श्री कृष्ण से कहता है – अब मैं अपनी कृपण दुर्बलता के कारण अपना कर्तव्य भूल गया हूँ और सारा धैर्य खो चुका हूँ। ऐसी अवस्था में मैं आपसे पूछ रहा हूँ कि जो मेरे लिए श्रेयस्कर हो उसे निश्चित रूप से बताए। अब मैं आपका शिष्य हूँ और आपका शरणागत हूँ। कृपया मुझे उपदेश दे।
उपरोक्त शब्दों का तात्पर्य – प्रामाणिक गुरु के पास जाना आवश्यक है क्योंकि यह प्राकृतिक नियम है कि भौतिक कार्य कलाप की प्रणाली ही प्रत्येक के लिए चिंता का कारण होती है। पग-पग पर ही उलझने प्राप्त होती है। इन सबका निवारण प्रामाणिक गुरु के निर्देशन से हो सकता है जो जीवन के उद्देश्य को पूरा करने के लिए समुचित पथ प्रकाशित कर सकता है। समस्त वैदिक ग्रन्थ हमे यह उपदेश देते है कि जीवन की अनचाही उलझनों से मुक्त होने के लिए प्रामाणिक गुरु के पास ही जाना चाहिए।
कोई भी नहीं चाहता है कि आग लगे, लेकिन वह फिर भी लगती है और हम अत्यधिक व्याकुल हो उठते है। अतः वैदिक वाग्ड़मय उपदेश अथवा वेद हमे उपदेश देता है कि जीवन की उलझनों को समझने तथा उसका समाधान करने के लिए हमे परंपरागत गुरु के पास जाना चाहिए। यह उलझने उस दावाग्नि के समान है जो बिना किसी के द्वारा लगाए ही भभक उठती है। इसी प्रकार विश्व की स्थिति ऐसी बन गई है कि न चाहते हुए भी जीवन की उलझने स्वतः ही प्रकट हो जाती है। जिस व्यक्ति का प्रामाणिक गुरु होता है वह सब कुछ जानता है अतः मनुष्य को भौतिक उलझनों में न रहकर गुरु के पास जाना चाहिए।
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