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Sunderkand in Sanskrit Pdf / सुंदरकांड संस्कृत में Pdf
पुस्तक का नाम | सुंदरकांड संस्कृत Pdf |
पुस्तक के लेखक | गोस्वामी तुलसीदास |
श्रेणी | धार्मिक |
भाषा | संस्कृत |
फॉर्मेट | |
साइज | 2 MB |
पृष्ठ | 130 |


Sunderkand in Kannada Pdf Download
ramcharit manas sunder kaand
सिर्फ पढ़ने के लिये
जो रघुनाथ जी के विरह रूपी मुझे बहुत बार घायल करके अब भी घायल कर रहा है और ऐसे दुःख में भी जो मेरे प्राणो को रखे हुए है वही विधाता उस रावण को जीवित किए हुए है दूसरा कोई नहीं।
कृपानिधान श्री राम जी की याद करके जानकी जी बहुत विलाप कर रही है। त्रिजटा ने कहा – हे राजकुमारी! सुनो, देवताओ का शत्रु रावण हृदय में लगते ही समाप्त हो जायेगा। परन्तु प्रभु उसके हृदय को घायल इसलिए नहीं करते है क्योंकि उसके हृदय में जानकी जी आप बसती है।
छंद का अर्थ-
वह यही सोचकर रह जाते है कि इसके हृदय में जानकी का निवास है जानकी के हृदय में मेरा निवास है और उदर में अनेको भुवन है।
अतः रावण के हृदय में लगते ही सब भुवन का नाश हो जायेगा। यह वचन सुनकर सीता जी के हृदय में अत्यंत हर्ष और विषाद हुआ देखकर त्रिजटा ने फिर कहा – हे सुंदरी! संदेह का त्याग कर दो अब सुनो शत्रु इस प्रकार से समाप्त होगा।
99- दोहा का अर्थ-
सिर के बार-बार नष्ट होने से जब वह व्याकुल हो जायेगा और उसके हृदय से तुम्हारा ध्यान छूट जायेगा तब अन्तर्यामी श्री राम जी आघात करेंगे।
चौपाई का अर्थ-
ऐसा कहते हुए और सीता को बहुत प्रकार से समझा कर फिर त्रिजटा अपने घर चली गई। श्री राम जी के स्वभाव का स्मरण करके जानकी जी अत्यंत व्यथित हो गई।
वह रात्रि और चन्द्रमा की बहुत प्रकार से निंदा करके कह रही है रात युग के समान बड़ी हो गयी है वह बीतती ही नहीं है। जानकी जी श्री राम जी के विरह में दुखी होकर मन में भारी विलाप कर रही है।
जब विरह से मन में दारुण दाह उत्पन्न हुआ तब उनका बायां नेत्र और बाहु फड़क उठे। शकुन समझकर उन्होंने मन में धैर्य धारण किया कि अब कृपालु श्री रघुवीर अवश्य ही मिलेंगे।
यहां आधी रात को रावण मूर्छा से जागा और अपने सारथी पर रुष्ठ होकर कहने लगा – अरे मुर्ख! तूने मुझे रणभूमि से अलग कर दिया। अरे मंदबुद्धि! तुझे धिक्कार है, धिक्कार है।
सारथी ने चरण पकड़कर बहुत प्रकार से रावण को समझाया। सबेरा होते ही वह रथ पर चढ़कर फिर दौड़ा। रावण को आया हुआ सुनकर वानरों की सेना में बड़ी खलबली मच गई। वह भारी योद्धा जहां-तहां से पर्वत और वृक्ष उखाड़कर क्रोध से दौड़े।
छंद का अर्थ-
विकट और विकराल भालू-वानर हाथो में पर्वत लेकर दौड़े। वह अत्यंत क्रोध करके प्रहार करते है। उनके प्रहार से राक्षस भाग चले। बलवान वानरों ने शत्रु की सेना को विचलित करके फिर रावण को घेर लिया। चारो ओर से प्रहार करके और आँखो से शरीर विदीर्ण करके वानरों ने उसे व्याकुल कर दिया।
दोहा का अर्थ-
वानरों को बहुत ही प्रबल देखकर रावण ने विचार किया और अंतर्ध्यान होकर क्षण भर में उसने माया फैलाई।
छंद का अर्थ-
उसने जब पाखंड रचा तब भयंकर जीव उत्पन्न हो गए और हाथो में धनु लिए प्रकट हुए। वह पकड़ो-पकड़ो का घोर शब्द करने लगी। चारो ओर यह ध्वनि भर गयी वह मुख फैलाकर दौड़ती है तब वानर भागने लगे।
वानर-भालू व्याकुल हो गए तब रावण बालू बरसाने लगा। वानरों को शिथिल करके रावण फिर गरजा। लक्ष्मण जी और सुग्रीव सहित सभी वीर अचेत हो गए।
हा राम! हा रघुनाथ! पुकारते हुए श्रेष्ठ योद्धा हाथ मलने लगे। इस प्रकार से सबका बल तोड़कर रावण ने फिर दूसरी माया रची। तब उसने बहुत से हनुमान प्रकट किए, जो पत्थर लेकर दौड़े। उन्होंने सब तरफ से श्री राम जी को घेर लिया।
वह पूंछ उठाकर पुकारने लगे पकड़ो जाने न पावे। उनके पूंछ दशो दिशाओ में शोभा दे रहे है और उनके बीच में कोशलराज श्री राम जी है।
छंद का अर्थ-
उनके बीच में कौशालराज का सुन्दर श्याम शरीर ऐसी शोभा प्राप्त कर रहा है मानो ऊँचे तमाल वृक्ष के लिए अनेक इंद्र धनु लगाई गयी हो। प्रभु को देखकर देवता हर्ष और विषाद युक्त हृदय से – ‘जय, जय, जय’ ऐसा बोलने लगे। तब रघुवीर जी ने क्रोध करके निमेष मात्र में ही रावण की सारी माया हर लिया।
छंद का अर्थ-
माया दूर हो जाने पर वानर-भालू हर्षित हुए और वृक्ष तथा पर्वत लेकर सब लौट पड़े। श्री राम जी ने समूह छोड़े जिससे रावण का शरीर नष्ट होकर पृथ्वी पर गिरने लगा। श्री राम जी और रावण का युद्ध यदि सैकड़ो शेष, सरस्वती, वेद और कवि अनेक कल्पो तक गाते रहे तो भी वह उसका वर्णन नहीं कर सकते है।
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