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सिर्फ पढ़ने के लिये
इंद्र आदि समस्त सुरेश्वर भागते हुए दसो दिशाओ में चले गए। जब लोकपाल चले गए और देवता भाग खड़े हुए तब वीरभद्र अपने गणो के साथ यज्ञशाला के नजदीक गए। उस समय वहां विद्यमान समस्त ऋषि अत्यंत भयभीत हो परमेश्वर श्रीहरि से रक्षा की प्रार्थना करने के लिए सहसा नतमस्तक हो शीघ्र बोले।
देवदेव! रमानाथ! सर्वेश्वर! महाप्रभो! आप दक्ष के यज्ञ की रक्षा कीजिए। आप ही यज्ञ है इसमें संशय नहीं है। यज्ञ आपका कर्म रूप और अंग है। आप यज्ञ के रक्षक है। अतः दक्ष यज्ञ की रक्ष कीजिए। आपके सिवा दूसरा कोई इसका रक्षक नहीं है।
ब्रह्मा जी कहते है – नारद! ऋषियों का यह वचन सुनकर मेरे सहित भगवान विष्णु वीरभद्र के साथ युद्ध करने की इच्छा से चले। श्रीहरि को युद्ध के लिए उद्यत देख शत्रुमर्दन वीरभद्र जो प्रमथगणो से घिरे हुए थे कड़े शब्दों में भगवान विष्णु को डांटने लगे।
ब्रह्मा जी कहते है – नारद! वीरभद्र की यह बात सुनकर बुद्धिमान देवेश्वर विष्णु वहां प्रसन्नता पूर्वक हँसते हुए बोले – वीरभद्र! आज तुम्हारे सामने जो कुछ कहता हूँ उसे सुनो। मैं भगवान शंकर का सेवक हूँ तुम मुझे रुद्रदेव से विमुख न कहो। दक्ष अज्ञानी है। कर्मकांड में ही इसकी निष्ठा है।
इसने मूढ़ता वश पहले मुझसे बारंबार अपने यज्ञ में चलने के लिए प्रार्थना की थी। मैं भक्त के अधीन ठहरा इसलिए चला आया। भगवान महेश्वर भी भक्त के अधीन रहते है। तात! दक्ष मेरा भक्त है। इसलिए मुझे यहां आना पड़ा है। रूद्र के क्रोध से उत्पन्न हुए वीर! तुम रूद्र तेज स्वरुप हो उत्तम प्रताप के आश्रय हो मेरी प्रतिज्ञा सुनो।
मैं तुम्हे आगे बढ़ने से रोकता हूँ और तुम मुझे रोको। परिणाम वही होगा जो होने वाला है। मैं पराक्रम करूँगा। ब्रह्मा जी कहते है – महाप्रभो! मैंने आपके भाव की परीक्षा के लिए कड़ी बाते कही थी। इस समय यथार्थ बात कहता हूँ। सावधान होकर सुनो। हरे! जैसे शिव है, वैसे आप है।
जैसे आप है, वैसे शिव है। ऐसा वेद कहते है और वेदो का यह कथन शिव की आज्ञा के अनुसार ही है। रमानाथ! भगवान शिव की आज्ञा से हम सब लोग उनके सेवक ही है तथापि मैंने जो बात कही है वह इस वाद-विवाद के अवसर के अनुरूप ही है।
आप मेरी हर बात को आपके प्रति आदर के भाव से ही कही गयी समझिये। ब्रह्मा जी कहते है – वीरभद्र का यह वचन सुनकर भगवान श्रीहरि हंस पड़े और उसके लिए हितकर वचन बोले – महावीर! तुम मेरे साथ निःशंक होकर युद्ध करो। तुम्हारे अस्त्रों से शरीर के भर जाने पर ही मैं अपने आश्रम को जाऊंगा।
ब्रह्मा जी कहते है – ऐसा कहकर भगवान विष्णु शांत हो गए और युद्ध के लिए कमर कसकर डट गए। महाबली वीरभद्र भी अपने गणो के साथ युद्ध के लिए तैयार हो गए। नारद! तदनन्तर भगवान विष्णु और वीरभद्र में घोर युद्ध हुआ। अंत में वीरभद्र ने विष्णु के चक्र को स्तंभित कर दिया तथा धनु के तीन टुकड़े कर डाले।
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