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Shukra Stotra Path Pdf / शुक्र स्त्रोत पाठ पीडीएफ
पुस्तक का नाम | शुक्र स्त्रोत Pdf |
पुस्तक के लेखक | गीता प्रेस |
पुस्तक की भाषा | हिंदी, संस्कृत |
साइज | 0.48 Mb |
कुल पृष्ठ | 4 |
श्रेणी | धार्मिक |
फॉर्मेट |
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शुक्र स्तोत्र के बारे में
मित्रो शुक्र ग्रह को वैभव का राजा कहा जाता है, अगर आप अपने जीवन में गरीबी से परेशान है तो आपको शुक्र ग्रह को अवश्य ही प्रसन्न करना चाहिए।
अगर शुक्र प्रसन्न हो गए तो आपके भाग्य खुल सकते है। आप इसके लिए शुक्र स्तोत्र का पाठ कर सकते है ऊपर की लिंक से डाउनलोड कर सकते है और पढ़ भी सकते है।
शुक्र स्तोत्र पढ़ने की विधि
1- मन को स्वच्छ रखे, किसी भी प्रकार की गलत भावना मन में नहीं होनी चाहिए।
2- घर और मंदिर को स्वच्छ रखे।
3- कवच के पाठ के समय सफेद या बादामी वस्त्र धारण करे।
4- इसके उपरांत शुक्र देव का ध्यान करे।
5- इसके बाद स्तोत्र का पाठ करे।
6- पाठ के बाद सफेद रंग का भोग लगाए।
शुक्र स्तोत्र के फायदे
1- शुक्र स्तोत्र के पाठ से धन-वैभव की आवक बढ़ती है।
2- मान-सम्मान बढ़ता है।
3- घर में खुशहाली रहती है।
Shukra Stotra in Hindi
नमस्ते भार्गव श्रेष्ठ देव दानव पूजित ।
वृष्टिरोधप्रकर्त्रे च वृष्टिकर्त्रे नमो नम: ।।1।।
देवयानीपितस्तुभ्यं वेदवेदांगपारग: ।
परेण तपसा शुद्ध शंकरो लोकशंकर: ।।2।।
प्राप्तो विद्यां जीवनाख्यां तस्मै शुक्रात्मने नम: ।
नमस्तस्मै भगवते भृगुपुत्राय वेधसे ।।3।।
तारामण्डलमध्यस्थ स्वभासा भसिताम्बर: ।
यस्योदये जगत्सर्वं मंगलार्हं भवेदिह ।।4।।
अस्तं याते ह्यरिष्टं स्यात्तस्मै मंगलरूपिणे ।
त्रिपुरावासिनो दैत्यान शिवबाणप्रपीडितान ।।5।।
विद्यया जीवयच्छुक्रो नमस्ते भृगुनन्दन ।
ययातिगुरवे तुभ्यं नमस्ते कविनन्दन ।6।।
बलिराज्यप्रदो जीवस्तस्मै जीवात्मने नम: ।
भार्गवाय नमस्तुभ्यं पूर्वं गीर्वाणवन्दितम ।।7।।
जीवपुत्राय यो विद्यां प्रादात्तस्मै नमोनम: ।
नम: शुक्राय काव्याय भृगुपुत्राय धीमहि ।।8।।
नम: कारणरूपाय नमस्ते कारणात्मने ।
स्तवराजमिदं पुण्य़ं भार्गवस्य महात्मन: ।।9।।
य: पठेच्छुणुयाद वापि लभते वांछित फलम ।
पुत्रकामो लभेत्पुत्रान श्रीकामो लभते श्रियम ।।10।।
राज्यकामो लभेद्राज्यं स्त्रीकाम: स्त्रियमुत्तमाम ।
भृगुवारे प्रयत्नेन पठितव्यं सामहितै: ।।11।।
अन्यवारे तु होरायां पूजयेद भृगुनन्दनम ।
रोगार्तो मुच्यते रोगाद भयार्तो मुच्यते भयात ।।12।।
यद्यत्प्रार्थयते वस्तु तत्तत्प्राप्नोति सर्वदा ।
प्रात: काले प्रकर्तव्या भृगुपूजा प्रयत्नत: ।।13।।
सर्वपापविनिर्मुक्त: प्राप्नुयाच्छिवसन्निधि: ।।14।।
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