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Shiva Samhita Hindi PDF Free
शिव संहिता Pdf के बारे में
शिव संहिता का संबंध योग से है और इसकी रचना संस्कृत में हुई है। इसमें शिव जी ने पार्वती जी को योग के विषय में विस्तार पूर्वक बताया है।
यह ग्रंथ योग से संबंध रखने वाले तीन मुख्य ग्रंथों में से एक है। इसमें पांच अध्याय है और पांचवे अध्याय में श्लोको की संख्या 200 से अधिक है।
प्रथम अध्याय में अद्वेत वेदांत को सार रूप में दिखाया गया है। दूसरे अध्याय में नाड़ी जाल के वर्णन है और 15 लाख मुख्य नाड़ियों के साथ ही अन्य साढ़े तीन लाख नाड़ियों की विवेचना की गयी है।
चौथे अध्याय में चार प्रहर के लिए प्राणायाम के विषय में ज्ञात होता है। पांचवे अध्याय में सात चक्रों के बारे में विशेष रूप से वर्णित है। वस्तुतः शिव संहिता क्रिया योग का महत्वपूर्ण ग्रंथ है जो आज कल अध्ययन का विषय है।
शिव संहिता में गुरु की महिमा और उनके बारे में विस्तृत रूप से चर्चा की गयी है क्योंकि किसी कार्य या ज्ञान को जानने-समझने के लिए गुरु की अनिवार्यता होती है। इसमें आसन, मुद्रा, योग तथा तंत्र से प्राप्त होने वाली सिद्धियों का उल्लेख किया गया है।
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शिव संहिता के लिए किसी परिचय की आवश्यकता नहीं पड़ती है क्योंकि संसार में शायद ही ऐसा कोई व्यक्ति हो जो साधारण रूप में जानता न हो और संहिता का संबंध शिव से है अर्थात सर्व साधारण के लिए शिव द्वारा बनाये गए नियम जिससे सर्व साधारण जन का कल्याण होता है।
(सर्व साधारण की समझ से शिव भगवान है पर उन्हें पूर्ण रूप से जानने और समझने में कोई भी सक्षम नहीं हो सकता है) शिव संहिता में ज्ञान और योग के अभ्यास को समान रूप से महत्व दिया गया है। इसमें तांत्रिक संकल्पना के साथ मंत्र की उपयोगिता पर पूर्ण रूप से प्रकाश डाला गया है।
इसमें कुण्डिलिनी को जागृत करने के लिए कामबीज, शक्तिबीज तथा वाग्बीज इन तीनो मंत्रो की व्याख्या भी किया गया है। शिव संहिता में चार प्रकार के योग की व्याख्या भी मिलती है। 1- मंत्र योग, 2- हठ योग, 3- राज योग, 4- लय योग। इन चारो को महायोग कहा जाता है।
शिव संहिता में चार प्रकार के साधको का वर्णन किया गया है। 1- मृदु साधक, 2- मध्य साधक, 3- अधिमात्र साधक, 4- अधिमात्रतम साधक। इन साधको के लक्षण के बारे में विस्तार से बताया गया है जिससे साधक स्वयं का मूल्यांकन कर सकता है कि वह किस श्रेणी के साधक में आता है।
शिव संहिता में योगाभ्यास के मार्ग में साधक बाधक तत्वों पर व्याख्या की गयी है तथा बाधक तत्वों का योग विघ्न स्वीकार करते हुए इनकी चर्चा तृतीय तथा पंचम पटल में की गयी है और साधक बाधक विघ्न को तीन वर्णो में विभाजित किया गया है।
1- भोग रूप विघ्न, 2- ज्ञान रूप विघ्न, 3- धर्म रूप विघ्न। इन बातो को ध्यान में रखना चाहिए शिव की अपनी कुछ मान्यताये है उन मान्यताओं के अनुकूल ही धर्म रूप विघ्न अथवा ज्ञान रूप विघ्नो के विषय में कहा गया है। योग विघ्नो से दूर रहने पर ही योगानुकूल स्थिति का निर्माण होता है। पंचम पटल में योग विघ्नो की चर्चा के अनन्तर योग साधक तत्वों की चर्चा नहीं की गयी है।
शिव पार्वती की कहानी
एक बार भगवान शंकर और पार्वती जा रहे थे। पार्वती को अपने पीहर जाना था। भगवान शंकर ने पार्वती से पूछा, “छः महीने के रास्ते से चला पसंद करोगी या बारह महीने के रास्ते से चलना पसंद करोगी ?”
तब पार्वती ने कहा, “बारह महीने के रास्ते से चलिए।”
भगवान शंकर ने कहा, “कि बारह महीने का रास्ता मृत्यु लोक से होकर जाएगा। लेकिन इतना याद रखना कि तुम किसी भी बात के लिए जिद मत करना।
तब पार्वती ने हां कहा और दोनों लोग बारह महीने के रास्ते से चलने लगे। रास्ते में एक गांव दिखा तब पार्वती ने शंकर जी से कहा, “चलो देखते है यहां क्या हो रहा है ?”
तब शंकर जी ने कहा, “मैंने तुमसे पहले ही कहा था कि जिद मत करना।”
लेकिन पार्वती की जिद के आगे शंकर जी हार गए और उन्हें उस गांव में जाना ही पड़ा। गांव में एकदम शांति छाई हुई थी। तब पार्वती ने एक औरत से पूछा, “यहां इतना सन्नाटा क्यूं है ?”
वह औरत बोली, “इस गांव के मुखिया की औरत मां बनने वाली है। उसे बच्चा पैदा होने वाला है। वह दर्द से कराह रही है, इसलिए इतना सन्नाटा है।”
तब पार्वती शिव से बोली, “मां बनने में इतना दर्द होता है ?”
तब महादेव ने कहा, “यह मृत्यु लोक है यहां नाना प्रकार के दुःख और क्लेश होते है। तुम हमारे साथ चलो।”
महादेव और पार्वती फिर साथ चल दिए। रास्ते में एक गाय दर्द से परेशान थी। पार्वती ने शंकर जी से पूछा, “यह गाय इतना परेशान क्यूं है ?”
तब शंकर जी ने कहा, “यह गाय मां बनने वाली है।”
तब पार्वती ने कहा, “मां बनने में इतना कष्ट होता है ?”
तब शंकर जी ने कहा, “इस धरती पर कई तरह के कष्ट है अतः आगे चलो।”
शिव और पार्वती दोनों आगे बढ़ गए। आगे एक घोड़ी जमीन पर दर्द से छटपटा रही थी। पार्वती ने फिर शिव जी से पूछा, “यह घोड़ी इतना दर्द से क्यूं छटपटा रही है ?”
तब शिव जी ने उत्तर दिया, “यह मां बनने वाली है।”
तब पार्वती ने कहा, “क्या मां बनने में इतना कष्ट होता है ?”
शिव जी ने पार्वती से कहा, “मैंने तुमसे पहले ही कहा था कि इस मृत्यु लोक में तरह-तरह के कष्ट होते है।”
इस तरह भ्रमण करते हुए पहले वाले गांव में जा पहुंचे। वहां खूब ढोल नगाड़े बज रहे थे। तब पार्वती ने एक बूढ़ी औरत से पूछा, “यहां इतना उत्सव क्यो हो रहा है ?”
वह बूढ़ी औरत पार्वती से बोली, “इस गांव की मुखिया की औरत को लड़का पैदा हुआ है इसलिए यहां खुशिया मनाई जा रही है।”
तब शंकर और पार्वती आगे बढ़ गए। उन्हें वह गाय दिखी, वह गाय अपने बछड़े को प्यार से चाट रही थी। गाय को खुश देखकर शिव और पार्वती दोनों आगे चले तो उन्हें वह घोड़ी भी दिखी। वह घोड़ी अपने बच्चे को दौड़ना सिखा रही थी और अपने बच्चे के साथ बहुत ही खुश थी।
शिव ने तब पार्वती से कहा, “इस मृत्यु लोक में कही पर ख़ुशी और कही पर गम अवश्य ही रहता है।”
इस तरह भ्रमण करते हुए शिव और पार्वती हिमाचल के घर पहुंच गए। वहां शिव और पार्वती का खूब सत्कार हुआ। भांति-भांति के व्यंजन शिव जी के सामने परोसे गए।
शिव जी ने सब कुछ खा लिया पार्वती के लिए कुछ भी नहीं बचा था। तब पार्वती ने बथुए का साक खा कर पानी पी लिया। शिव जी ने पार्वती से पूछा, “तुमने क्या खाया ?”
तब पार्वती ने कहा, “जो आपने खाया वही मैंने खाया।”
इतना कहकर पार्वती सो गई। तब शिव जी ने ध्यान लगाकर देखा तो पार्वती का भेद खुल गया। जागने के बाद शिव ने पार्वती से कहा, “कि मुझे सब मालूम हो गया है। तुमने बथुए का साक खा कर पानी पिया है।”
तब पार्वती ने कहा, “आपने यह ठीक नहीं किया। आपको वचन देना होगा कि आज के बाद कोई भी इस तरह से औरत के अंतर्मन में झांककर नहीं देख सकेगा क्योंकि एक औरत को अपनी ससुराल और पीहर की मान मर्यादा का ध्यान रखना होता है।”
तब महादेव को अपनी भूल का अंदाजा लग गया था। तब महादेव ने कहा, “हे देवी, तुमने दोनों तरफ की मर्यादा का ध्यान रखा और हमे सचेत कर दिया। मैं तुम्हे आज यह वरदान देता हूँ कि कोई भी व्यक्ति औरत के अंतर्मन में नहीं देख सकेगा।”
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