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Shiv Puran PDF in Hindi Free
पुस्तक का नाम | शिव पुराण |
पुस्तक की भाषा | हिंदी |
पुस्तक के लेखक | गीता प्रेस |
श्रेणी | धार्मिक |
फॉर्मेट | |
कुल पृष्ठ | 845 |
साइज | 10 mb |
हिन्दू धर्म के 18 पुराणों में से एक है, शिव पुराण। इस पुराण में शिव के कल्याणकारी स्वरूप का विवेचन, उपासना, रहस्य महिमा का तात्विक विवरण है। यह पुराण संस्कृत भाषा में लिखा गया है।
शिव महिमा, लीला, कथाओं के अतिरिक्त अनेक ज्ञान प्रद आख्यान का वर्णन है। इस पुराण में इन्हे पंचदेवों में अग्रणी अनादि सिद्ध दाता परमेश्वर स्वीकार किया गया है। शिव जो सास्वत, चेतना स्वयंभू है और ब्रह्माण्ड के अधिपति आधार है।
शिव पुराण में शिव के भव्य स्वरूप का वर्णन है, जो अतुलनीय है। सभी पुराणों में शिव पुराण को अद्वितीय अप्रतिम एवं उच्च स्थान प्राप्त है। इसमें शिव जी के ज्योतिर्लिंगों और भक्तों के साथ भक्ति का और विविध अवतारों का अविस्मरणीय वर्णन किया गया है।
इस पुराण में प्रमुख रूप से शिव भक्ति और उनकी महिमा का विषद प्रसार किया गया है। शिव पुराण का संबंध शैव मत से जुड़ा है।
इस पुराण में शिव के जीवन चरित्र, उनके रहन-सहन, उनके विवाह और उनके पुत्रों की उत्पत्ति के विषय में जानकारी बताई गयी है।
ऐसी मान्यता है कि शिव बहुत ही भोले है और जल्द ही प्रसन्न होकर वांछित फल प्रदान करते है। इसलिए लोग इन्हे भोले शंकर भी कहते है।
शिव पुराण में शिव महिमा और शिव भक्ति का सविस्तार वर्णन है। भगवान शिव को सदैव लोकोपकार और सभी प्राणियों के हित में तत्पर बताया गया है, क्योंकि वह जगतपिता है और सदैव ही अपनी संतानों की भलाई चाहते है और इस भलाई के कार्य के लिए खुद ही तत्पर रहते है।
अन्य देवताओं की तरह इन्हे सुगंधित द्रव्य और फूलों तथा पकवानों की आवश्यकता नहीं पड़ती है। इनकी पूजा पद्धति बहुत ही सरल है, जिससे शिव जी बहुत जल्द प्रसन्न हो जाते है। त्रिदेवों में इन्हे संहार का देवता माना जाता है।
शिव तो औघड़ दानी है। इन्हे तो बस स्वच्छ नीर, धतूरा, विल्व पत्र से संतुष्टि मिल जाती है। इन्हे कोई विशेष आभूषणों की जरूरत नहीं पड़ती है। वे तो हमेशा अपने में ही लीन रहने वाले, जटाजूट, नागों का और रुद्राक्ष की मालाओं से ही सुशोभित रहते है।
इनके तन पर बाघंबर और चिता की भस्म शोभायमान रहते है। यह अपने एक हाथ में त्रिशूल धारण करके डमरू बजाते हुए अखिल ब्रह्माण्ड को अपनी पदताल और डमरू की गगन भेदी आवाज पर नृत्य करने के लिए मंत्रमुग्ध कर देते है। इसलिए ही इन्हे नटराज कहा जाता है।
भगवान शिव की पूजा कैसे करें
मंत्र लघु से लघुतर होते हुए भी इनका व्यापक और विस्तृत प्रभाव होता है। अगर इन्हे सही पद्धति से अभिमंत्रित किया जाय तब जिस प्रकार छोटे अंकुश से ही पिलवान विशाल हाथी को अपने आधीन रखता है। वैसे ही छोटे मंत्र से देवता प्रसन्न होकर साधक के वशीभूत हो जाते है।
महामृत्युंजय मंत्र के जाप से आरोग्य प्राप्त होने के साथ ही सिद्धि प्राप्त होती है। महामृत्युंजय मंत्र शिव जी का मंत्र है। इस मंत्र के प्रभाव से अकाल या असमय आने वाली मौत भी टल जाती है। शिव जी को भोलेनाथ कहा जाता है। लेकिन उनसे जुड़े हुए रहस्य बहुत ही गूढ़ होते है।
जिसका वर्णन शैव मत से संबंधित पुराण में किया गया है। शिव की पूजा या पुराण से अक्षय फल की प्राप्ति हेतु नियमों का पालन भी आवश्यक होता है।
1. भगवान शिव के प्रति श्रद्धा होना अनिवार्य है।
2. ब्रह्मचर्य रहकर ही पूजा या पुराण श्रवण करना चाहिए।
3. भूमि पर ही शयन करना चाहिए।
तांबे के पात्र में जल लेना, अर्पित किए जाने वाले वस्त्र, तांबे के लोटे में दुग्ध आक के फूल, बिल्व पत्र, चावल, अष्ठगंध, दीपक, रुई, तेल, फल, मिठाई, पंचामृत, नारियल, जनेऊ, पान के पत्ते के साथ ही दक्षिणा भी रख लेना चाहिए।
उसके बाद ही पूजा प्रारंभ करनी चाहिए क्योंकि सब सामाग्री इकट्ठा रखने के पश्चात पूजा के मध्य में उठना नहीं पड़ेगा और पूजा ढंग से संपन्न हो सकेगी।
शिव पुराण के सरल उपाय से समस्याओ का समाधान होना संभव
इस भौतिक और आधुनिक युग में सभी मनुष्य क्लेश युक्त होकर परेशान रहते है और उनकी सभी परेशानियों का हल शिव पुराण में सरल ढंग से वर्णित है। विश्वास के साथ कोई भी व्यक्ति शिव पुराण में वर्णित इन सरल उपायों से अपनी समस्याओ का समाधान प्राप्त कर सकता है।
महादेव अपने भक्तो की सहायता के लिए सदैव तत्पर रहते है इन्हे पंचदेवों में प्रधान कहा जाता है। शिव से संबंधित इन सरल उपायों को करने से मनुष्य अपने जीवन को सुखमय बना सकता है।
कर्ज से मुक्ति के और धनागम के लिए
साधक को जल में अक्षत (चावल) मिलाकर शिवलिंग का अभिषेक करने से धनागम का प्रवाह बना रहता है और कर्ज से मुक्ति प्राप्त होती है यह बाते शिव पुराण में वर्णित है।
पित्रगणों का आशीर्वाद
साधक को जल में यव (जौ) मिलाकर शिवलिंग पर अभिषेक करने से पित्रगणो का आशीर्वाद प्राप्त होता है तथा सुख की वृद्धि होती है। जल में गेंहू मिलाकर शिवलिंग पर चढ़ाने से घर परिवार के सदस्यों के बीच प्रेम बना रहता है। नकारात्मक शक्ति का शमन होकर सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है तथा कुल की वृद्धि होती है यह सब शिव पुराण में वर्णित है।
भौतिक सुखो की प्राप्ति के लिए
शिव पुराण में वर्णित है कि साधक को भौतिक सुखो की प्राप्ति के लिए काले तिल को जल में मिलाकर शिवलिंग का अभिषेक करने से भौतिक सुख की प्राप्ति होती है तथा सभी पापो का अंत होता है।
कार्य क्षेत्र में सफलता के लिए
शिव पुराण में उल्लेख है कि भगवान शिव को सफेद वस्त्र या जनेऊ अर्पित करने से लंबी आयु के साथ ही कार्य क्षेत्र में सफलता प्राप्त होती है।
शिव भगवान की एक अद्भुत लीला
मोहनलाल एक गरीब किसान था। वह अपने खेती के कार्य के साथ ही भगवान शिव का परम भक्त था और अपने खेती के कार्य से कुछ समय निकालकर भगवान शिव की भक्ति करता था।
मोहनलाल अपने दोनों कार्य के बीच में बहुत बढ़िया संतुलन बना रखा था। मोहनलाल के पास कोई भी संतान नहीं थी। धीरे-धीरे मोहनलाल की उम्र ढलती गई।
हर व्यक्ति की तरह उसे भी वृद्धा वस्था ने घेर लिया था। फिर भी वह किसी तरह दो प्राणियों के गुजारा के लायक खेती का कार्य कर लेता था।
एक बार दैवयोग से अत्यधिक वृष्टि के कारण सभी किसानो के साथ ही मोहनलाल की भी फसल बर्बाद हो गई। मोहनलाल एकदम हताश हो गया था।
लेकिन वह प्रतिदिन की तरह शिव की पूजा करने मंदिर जा रहा था। मोहनलाल की आर्थिक स्थिति बद से बदतर होती चली गई। लेकिन उसने शिव की पूजा का क्रम निरंतर ही जारी रखे हुए था।
एक बार पार्वती और शिव जी धरती पर भ्रमण करते हुए जा रहे थे। मोहनलाल एक पेड़ के नीचे निराश होकर अपने भरण-पोषण के लिए सोच रहा था क्योंकि वृद्ध होने के कारण अब उससे किसानी होना संभव नहीं था।
उसकी पत्नी लखिया ने ताने मारकर उसका जीना दूभर कर रखा था। पार्वती ने मोहनलाल को उदास अवस्था में पेड़ के नीचे बैठे हुए देखा तो उन्हें उस शिव भक्त पर दया आ गई।
उन्होंने भगवान शिव से कहा, “प्रभू, आपका यह भक्त अब वृद्ध हो गया है। इससे कृषि का कार्य होना अब संभव नहीं है। फिर भी यह आपकी भक्ति पूरी श्रद्धा के साथ करता है और अब आप इसके आर्थिक कष्टों का निवारण करिये।”
तभी शिव जी बोले, “देवी, तुमने तो हमारे मुख की बात ही छीन लिया। मैं भी अपने इस भक्त की आर्थिक दशा के निवारण हेतु सोच रहा था। लेकिन तुमने तो हमे प्रेम पूर्वक आदेश ही दे दिया है। जब शक्ति का आदेश है तो शिव मना कैसे करेंगे ?”
शिव जी ने आगे कहा, “देवी सुनो, मैंने ऐसी व्यवस्था कर दिया है कि आज मोहनलाल अपने खेत में जाकर जिस किसी को हाथ से छुएगा (मिट्टी, घास, कंकड़, पत्थर) वह सब स्वर्ण और हीरे जवाहरात में बदल जाएगे। जिससे हमारे भक्त की आर्थिक तंगी खत्म हो जाएगी क्योंकि वृद्ध होने के कारण उससे कृषि का कार्य होना संभव नहीं है और हां यह यह सिर्फ आधे घंटे के लिए चमत्कार होगा। आधे घंटे में मोहनलाल को जीवन-यापन करने लायक आर्थिक व्यवस्था हो जाएगी।”
शिव और पार्वती की बातें दो व्यापारी सुन रहे थे। वह दोनों व्यापारी तो थे ही उनके दिमाग में इस मौके से फायदा उठाने की इच्छा जग उठी थी।
एक दिन सुबह मोहनलाल अपने खेत में घूमने की इच्छा से गया तो उसे अपने द्वारा बनाए सुंदर खेत में तरह-तरह के घास-फूस और कंकड़-पत्थर देखकर बहुत दुःख हुआ।
मोहनलाल शक्ति हीन होते हुए भी खेत से घास-फूस और कंकड़-पत्थर को निकालकर एक जगह इकट्ठा करने लगा। वह इन बातों से सर्वथा अनभिज्ञ था कि उसके द्वारा इकट्ठा किए गए कंकड़-पत्थर और घास-फूस स्वर्ण और हीरे जवाहरात में बदल गए है।
इस कार्य में मोहनलाल की पत्नी लखिया भी साथ थी। लखिया के द्वारा सभी कंकड़-पत्थर घास-फूस वैसे ही रह गए थे जो मोहनलाल के द्वारा एकत्रित किए गए (हीरे जवाहरात व स्वर्ण) को ढकने का कार्य करने लगे।
खेत के बाहर दोनों व्यापारी यह दृश्य देख रहे थे। दोनों व्यापारी मोहनलाल से कहने लगे, “भाई क्या मैं यह घास-फूस अपने जानवरो को खिलाने के लिए लेकर जा सकता हूँ ?”
मोहनलाल ने कहा, “हां भइया, अवश्य ले जाओ क्योंकि हमारे पास तो जानवर नहीं है। मैं इन सब घास के ढेर का क्या करूँगा ?”
दोनों धूर्त व्यापारी मिलकर घास और कंकड़ पत्थर के साथ ही हीरे जवाहरात और स्वर्ण को भी बोरे में भर लिए। लेकिन शिव भक्त को चकमा देना आसान कार्य नहीं होता है क्योंकि शिव जी सदा ही अपने भक्त की भलाई के लिए तत्पर रहते है।
बोरे में घास-फूस और कंकड़-पत्थर भरते ही बड़े से शिवलिंग में बदल गए और दोनों व्यापारी के हाथ उस बोरे की रस्सी से बंध गए और ऐसे बंधे कि छुड़ाने से भी नहीं छूटने वाले थे।
लखिया और मोहनलाल दोनों अपने घर चले आए। लखिया अपनी गरीबी को कोशते हुए सो गई, जबकि मोहनलाल शिव अर्चना करने के लिए मंदिर चला गया क्योंकि शिव की पूजा का समय हो गया था।
काफी प्रयास के बाद भी दोनों धूर्त व्यापारियों के बंधे हुए हाथ नहीं खुले तब बोरे में शिवलिंग से आवाज आई, “अगर तुम दोनों ही एक-एक हजार स्वर्ण मुद्राए मोहनलाल को देने पर ही तुम्हारे हाथ खुल सकेंगे।”
दूसरे दिन भगवान भोलेनाथ पार्वती के साथ एक राहगीर के रूप में उधर से जा रहे थे। तब दोनों व्यापारी ने उनसे अपने घर वालो के पास यह संदेश कहलवा दिया कि एक-एक हजार स्वर्ण मुद्राए लेकर मोहनलाल के घर दे दो।
दोनों व्यापारी के घर से एक-एक हजार स्वर्ण मुद्रा लेकर उन दोनों के लड़के मोहनलाल के घर देकर व्यापारियों के पास आ गए तो देखा कि उन दोनों के हाथ स्वतः ही खुल चुके थे।
अब चारो ने मिलकर उन दोनों बोरियो को उठाया और घर पहुंचकर अपने-अपने बोरी को खोलकर देखा तो उसमे शिवलिंग था।
भगवान शिव की कृपा से दोनों व्यापारियों का धूर्त स्वभाव मिट गया था। दोनों के विचार निर्मल हो गए थे। दोनों व्यापारी शिवलिंग को अपने घर में स्थापित करके पूजा अर्चना करने लगे।
शिव कृपा से दोनों व्यापारियों के व्यापार में अति लाभ प्राप्त हुआ और मोहनलाल की आर्थिक स्थिति भी सुदृढ़ हो गई। भगवान शंकर ने मोहनलाल और दोनों व्यापारियों के ऊपर अपनी कृपा दृष्टि की वर्षात कर दिया। इसीलिए तो भक्त जन उन्हें औढ़र दानी कहते है।
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