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Sharad Purnima Katha Pdf
पुस्तक का नाम | Sharad Purnima katha Pdf |
भाषा | हिंदी |
फॉर्मेट | |
साइज | 0.60 Mb |
पृष्ठ | 4 |
श्रेणी | धार्मिक |
शरद पूर्णिमा व्रत कथा Pdf Download
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सिर्फ पढ़ने के लिये
ब्रह्मा जी कहते है – नारद! ऐसा कहकर मेनका ने अपनी बेटी शिव को सौप दी और उन दोनों के सामने ही उच्चस्वर में रोती हुई वह मूर्छित हो गयी। तब महादेव जी ने मेना को समझाकर सचेत किया और उनसे विदा ले देवताओ के साथ महान उत्सव पूर्वक यात्रा की।
वे सब देवता अपने स्वामी शिव तथा सेवकगणो के साथ चुपचाप कैलास पर्वत की ओर प्रस्थित हुए। वे मन ही मन शिव का चिंतन कर रहे थे। हिमाचलपुरी के बाहरी बगीचे में आकर शिव सहित सब देवता हर्ष और उत्साह के साथ रुक गए और शिवा के आगमन की प्रतीक्षा करने लगे।
मुनीश्वर! इस प्रकार देवताओ सहित शिव की श्रेष्ठ यात्रा का वर्णन किया गया। सब शिवा की यात्रा का वर्णन सुनो जो विरहव्यथा और आनंद दोनों से संयुक्त है। ब्रह्मा जी कहते है – नारद! तदनन्तर सप्तर्षियों ने हिमालय से कहा – गिरिराज! अब आप अपनी पुत्री पार्वतीदेवी की यात्रा का उचित प्रबंध करे।
मुनीश्वर! यह सुनकर पार्वती के भावी विरह का अनुभव करके गिरिराज कुछ काल तक अधिक प्रेम के कारण विवाद में डूबे रह गए। कुछ देर बाद सचेत हो शैलराज ने तथास्तु कहकर मेना को संदेश दिया। मुने! हिमवान का संदेश पाकर हर्ष और शोक के वशीभूत हुई मेना पार्वती को विदा करने के लिए उद्यत हुई।
शैलराज की प्यारी पत्नी मेना ने विधि पूर्वक वैदिक एवं लौकिक कुलाचार का पालन किया और उस समय नाना प्रकार के उत्सव मनाये। फिर उन्होंने नान प्रकार के रत्नजटित सुंदर वस्त्रों और बारह आभूषणों द्वारा राजोचित श्रृंगार करके पार्वती को वशीभूत किया।
तत्पश्चात मेना के मनोभाव को जानकर एक सती साध्वी ब्राह्मण पत्नी ने गिरिजा को उत्तम पातिव्रत्य की शिक्षा दी। ब्राह्मण पत्नी बोली – गिरिराज किशोरी! तुम प्रेम पूर्वक मेरा यह वचन सुनो। यह धर्म को बढ़ाने वाला, इहलोक और परलोक में भी आनंद देने वाला तथा श्रोताओ को भी सुख की प्राप्ति कराने वाला है।
संसार में पतिव्रता नारी ही धन्य है, दूसरी नहीं। वही विशेषरूप से पूजनीय है। पतिव्रता सब लोगो को पवित्र करने वाली और समस्त पाप राशि को नष्ट कर देने वाली है। शिवे! जो पति को परमेश्वर के समान मानकर प्रेम से उसकी सेवा करती है वह इस लोक में सम्पूर्ण भोगो का उपभोग करके अंत में कल्याणमयी गति को पाती है।
सावित्री, लोपामुद्रा, अरुंधति, शाण्डिली, शतरूपा, अनसूया, श्रद्धा, मेना और स्वाहा ये तथा और भी बहुत सी स्त्रियां साध्वी कही गयी है। यहां विस्तारभय से उनका नाम नहीं लिया गया। वे अपने पातिव्रत्य के बल से ही सब लोगो की पूजनीय तथा ब्रह्मा, विष्णु, शिव एवं मुनीश्वरो की भी माननीया हो गयी है।
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