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Shabar Mantra Bhag 7 Pdf / शाबर मंत्र भाग 7 पीडीएफ


सिर्फ पढ़ने के लिए
फिर मन को सावधान करके शंकर जी अत्यंत सुंदर कथा कहने लगे – हनुमान जी को उठाकर प्रभु ने हृदय से लगाया और उनका हाथ पकड़कर अत्यंत निकट बैठा लिया।
हे हनुमान! बताओ तो, रावण के द्वारा सुरक्षित लंका और उसके बहुत बांके किले को तुमने कैसे विध्वंस किया? हनुमान जी ने प्रभु को प्रसन्न जाना और वह अभिमान रहित वचन बोले।
बंदर का बस यही पुरुषार्थ है कि वह एक डाल से दूसरी डाल पर चला जाता है। मैं जो समुद्र लांघकर सोने के नगर को विध्वंस किया और निसाचर समूह को परलोक पहुंचाकर अशोक वन को उजाड़ दिया। यह सब तो हे रघुनाथ जी! आपका ही प्रताप है। हे नाथ! इसमें तो मेरी कुछ भी प्रभुता नहीं है।
33- दोहा का अर्थ-
हे प्रभु! जिस पर आप प्रसन्न हो जाए तो उसके लिए कुछ भी कार्य कठिन नहीं है। आपके प्रभाव से रुई बड़वानल को अवश्य ही खत्म कर सकती है तथा असंभव कार्य भी संभव हो जाता है।
चौपाई का अर्थ-
हे नाथ! मुझे अत्यंत सुख प्रदान करने वाली अपनी निश्चल भक्ति कृपा करके दीजिए। हनुमान जी की अत्यंत सरल वाणी सुनकर हे भवानी! तब प्रभु श्री राम जी ने ‘एवमस्तु’ कहा।
हे उमा! जिसने श्री राम जी का स्वभाव जान लिया उसे भजन छोड़कर दूसरी बात ही नहीं सुहाती है। यह ‘स्वामी-सेवक’ का संवाद जिसके हृदय में आ गया उसे ही रघुनाथ जी के चरणों की भक्ति की प्राप्ति हो जाती है।
प्रभु के वचन सुनकर वानरगण कहने लगे -कृपालु आनंद कंद श्री राम जी की जय हो, जय हो, जय हो! तब श्री रघुनाथ जी ने कपिराज सुग्रीव को बुलाया और कहा चलने की तैयारी करो।
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