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Science Fiction Novel in Hindi Pdf Download



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सिर्फ पढ़ने के लिये
प्रताप भारती ने रघुराज के साथ जाकर सरोज सेवा केंद्र का रजिस्ट्रेशन करा लिया था। अब उन्हें बंगलोर के लिए जाना करीब एक सौ आदमी मिल गए थे। बंगलोर जाने के लिए लेकिन 75 आदमियों की ही जरूरत थी सो चालीस आदमी दिनेश चाय वाले की दुकान पर एक सौ के लगभग आदमी एकत्र हो गए थे और सुखिया के साथ तीस आदमी थे।
रघुराज ने भरोसेमंद आदमियों का चयन करके बाकी आदमियों को अगली बार के लिए कह दिया था। वापस किए हुए आदमियों के चेहरे मायूस हो गए थे क्योंकि उनके हाथ से पच्चीस हजार रुपया फिसल गया था। प्रताप ने सभी आदमियों के साथ बंगलोर के लिए प्रस्थान कर दिया।
समय के साथ प्रताप की उम्र भी अधिक होती जा रही थी उन्हें एक ऐसे विश्वसनीय आदमी की आवश्यकता महसूस हो रही थी जो उनके व्यवसाय को अच्छी तरह से संभाल सके। प्रताप के सामने रघुराज के लड़के विवेक उसके साथी नरेश का चेहरा घूम रहा था।
लेकिन इस विषय में वह पहले विपिन और निशा से बात करना चाहते थे और प्रताप भारती ने निशा को फोन लगा दिया था। दूसरी तरफ से निशा बोली – हैलो, प्रणाम पिता जी! प्रताप भारती ने आशीर्वाद दिया और कुशल मंगल पूछने के बाद बोले निशा विपिन कहां है।
यही बैठे हुए है आज छुट्टी है इसलिए सरिता और रोशन भी यही घर में ही खेल रहे है। प्रताप भहारती बोले निशा अब हमारी उम्र बढ़ती जा रही है। इतना व्यापार है इसे संभालने के लिए किसी भले आदमी की जरूरत है और मेरी नजरो में तुम दोनों ही इस व्यापार को सही ढंग से संभाल सकते हो कोई जल्दबाजी नहीं है सोच समझकर हमे बता देना इतना कहकर प्रताप ने फोन रख दिया।
सुखिया के साथ आये हुए अन्य सभी लोग कम्पनी देखकर दंग रह गए। सब कार्य वहां स्वचालित मशीनों से हो रहा था। कपड़ा धुलाई से लेकर प्रेस करने तक सब कुछ स्वचालित मशीन से हो रहा था। केवल कपड़े की साइज और पैकिंग के लिए ही आदमियों की जरूरत थी।
कम्पनी में प्रत्येक आदमी को प्रत्येक कार्य करना पड़ता था यहां कोई जूनियर और सीनियर नहीं था। ऐसी व्यवस्था इसलिए थी कि अगर कोई कभी किसी कारण से नहीं आया तो भी सभी कार्य सुचारु रूप से चलता रहता था। सुखिया के साथ आये हुए सभी लोग एक महीने में ही सारा कार्य सीख गये थे।
मेहनत तो कुछ भी नहीं थी मेहनत के हिसाब से वेतन अधिक था। प्रताप भारती के साथ जो लोग आये हुए थे वह सभी पूर्ण रूप से संतुष्ट थे। सबको समय से वेतन मिलता था और भोजन तथा रहने की सारी व्यवस्था कम्पनी की तरफ से ही थी।
प्रताप की कम्पनी में कार्य करने वाले सभी कर्मचारी खुशहाल थे। सुखिया तो बहुत ही खुश था। सुखिया के साथ आये हुए लोग भी बहुत खुश थे। खुश क्यों न रहते इतना बढ़िया वेतन रहने और खाने की व्यवस्था जो थी? सरोज सेवा केंद्र के माध्यम से बंगलोर आये हुए आदमियो का और उनके परिवार वालो का जीवन बहुत ही आनंदपूर्ण था।
एक दिन सुखिया प्रताप से बोला – प्रताप भाई मुझे गांव से आये हुए एक साल हो गया अगर आप एक महीने की छुट्टी दे तो मैं गांव से घूमकर आ जाऊंगा। प्रताप तैयार हो गए उन्होंने सुखिया को पूरा एक साल का वेतन देकर विदा कर दिया।
सुखिया अपने घर आ गया था। सरोज सेवा केंद्र के माध्यम से उसके साथ ही घर में भी परिवर्तन आ गया था। सुखिया के पास उसके वेतन के तीन लाख रुपये थे वह अब अपनी लड़की की शादी के लिए सोचने लगा था। अब सुखिया को वापस बंगलोर जाना था।
उसकी जाने की इच्छा नहीं थी। लेकिन वह अपने परिवार की सहायता बंगलोर जाकर ही कर सकता था। यही नौकरी और स्वव्यवसाय में फर्क था। नौकरी पांच लाख की क्यों न रहे उसमे परिवार की जुदाई सहनी पड़ती है। सुखिया अपने साथ के लोगो के घर वालो से मिलता गया।
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