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Satyarth Prakash Pdf Hindi Download
पुस्तक का नाम | Satyarth Prakash Pdf Hindi |
पुस्तक के लेखक | दयानन्द सरस्वती |
फॉर्मेट | |
भाषा | हिंदी |
साइज | 12.3 Mb |
पृष्ठ | 448 |
श्रेणी | धार्मिक |
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सिर्फ पढ़ने के लिये
जगदंबे! पहले तो मुझे सौ पुत्र हो। उन सबकी बड़ी आयु हो। वे बल पराक्रम से युक्त रिद्धि-सिद्धि से सम्पन्न हो। उन पुत्रो के पश्चात मेरे एक पुत्री हो जो स्वरुप और गुणों से सुशोभित होने वाली हो वह दोनों कुलो को आनंद देने वाली तथा तीनो लोको में पूजित हो।
जगदंबिके! शिवे! आप ही देवताओ का कार्य सिद्ध करने के लिए मेरी पुत्री तथा रुद्रदेव की पत्नी होइए और तदनुसार लीला कीजिए। ब्रह्मा जी कहते है – नारद! मेनका की बात सुनकर प्रसन्न हृदया देवी उमा ने उनके मनोरथ को पूर्ण करने के लिए मुसकराकर कहा – पहले तुम्हे सौ बलवान पुत्र होंगे।
उनमे भी एक सबसे अधिक बलवान और प्रधान होगा जो सबसे पहले उत्पन्न होगा। तुम्हारी भक्ति से संतुष्ट हो मैं स्वयं तुम्हारे यहां पुत्री के रूप में अवतीर्ण होउंगी और समस्त देवताओ से सेवित हो उनका कार्य सिद्ध करुँगी। ऐसा कहकर जगद्धात्री परमेश्वरि कालिका शिवा मेनका के देखते-देखते वही अदृश्य हो गयी।
तात! महेश्वरी से अभीष्ट वर पाकर मेनका को अपार हर्ष हुआ। उनका तपस्या जनित सारा क्लेश नष्ट हो गया। मुने! फिर कालक्रम से मेना के गर्भ रहा और वह प्रतिदिन बढ़ने लगा। समयानुसार उसने एक उत्तम पुत्र को उत्पन्न किया जिसका नाम मैनाक था।
उसने समुद्र के साथ उत्तम मैत्री बांधी। वह अद्भुत पर्वत नागवधुओ के उपभोग का स्थल बना हुआ है। उसके समस्त अंग श्रेष्ठ है। हिमालय सौ पुत्रो में वह सबसे श्रेष्ठ और महान बल पराक्रम से सम्पन्न है। अपने से या अपने बाद प्रकट हुए समस्त पर्वतो में एकमात्र मैनाक ही पर्वतराज के पद पर प्रतिष्ठित है।
ब्रह्मा जी कहते है – नारद! तदनन्तर मेना और हिमाचल आदर पूर्वक देव कार्य की सिद्धि के लिए कन्याप्राप्ति के हेतु वहां जगज्जननी भगवती उमा का चिंतन करने लगे। जो प्रसन्न होने पर सम्पूर्ण अभीष्ट वस्तुओ को देने वाली है। वे महेश्वरी उमा अपने पूर्ण अंश से गिरिराज हिमवान के चित्त में प्रविष्ट हुई।
इससे उनके शरीर में अपूर्व एवं सुंदर प्रभा उतर आयी। वे आनंदमग्न हो अत्यंत प्रकाशित होने लगे। उस अद्भुत तेजोराशि से सम्पन्न महामना हिमालय अग्नि के समान अधृष्य हो गए थे। तत्पश्चात सुंदर कल्याणकारी समय में गिरिराज हिमालय ने अपनी प्रिया मेना के उदर में शिवा के उस परिपूर्ण अंश का आधान किया।
इस तरह गिरिराज की पत्नी मेना ने हिमवान के हृदय में विराजमान करुणानिधान देवी की कृपा से सुखदायक गर्भ धारण किया। सम्पूर्ण जगत की निवासभूता देवी के गर्भ में आने से गिरीप्रिया मेना सदा तेजोमंडल के बीच में स्थित होकर अधिक शोभा पाने लगी।
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