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Sanskrit Subhashit Sangrah Pdf
पुस्तक का नाम | Sanskrit Subhashit Sangrah Pdf |
पुस्तक के लेखक | सुखसागर |
फॉर्मेट | |
भाषा | हिंदी |
साइज | 4 Mb |
पृष्ठ | 220 |
श्रेणी | — |
संस्कृत सुभाषित संग्रह Pdf Download
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सिर्फ पढ़ने के लिये
जो पुरुष भगवान शिव और शिवा में मन लगाकर पवित्र हो प्रतिदिन इस प्रसंग को सुनता या दूसरों को सुनाता है वह शिवलोक प्राप्त कर लेता है। यह अद्भुत आख्यान कहा गया जो मंगल का आवास स्थान है। यह सम्पूर्ण विघ्नो को शांत करके समस्त रोगो का नाश करने वाला है।
इसके द्वारा स्वर्ग, यश, आयु तथा पुत्र और पौत्रो की प्राप्ति होती है। यह सम्पूर्ण कामनाओ को पूर्ण करता है। इस लोक में भोग देता है और परलोक में मोक्ष प्रदान करता है। इस शुभ प्रसंग को सुनने से अपमृत्यु का शमन होता है और परम शांति की प्राप्ति होती है।
यह समस्त दुःस्वप्नो का नाशक तथा बुद्धि एवं विवेक आदि का साधक है। अपने शुभ की इच्छा रखने वाले लोगो को शिव संबंधी सभी उत्सवों में प्रसन्नता के साथ प्रयत्नपूर्वक इसका पाठ करना चाहिए। यह भगवान शिव को संतोष प्रदान करने वाला है।
विशेषतः देवता आदि की प्रतिष्ठा के समय तथा शिव संबंधी सभी कार्यों के प्रसंग में प्रसन्नता पूर्वक इसका पाठ करना चाहिए। ऐसा करने से समस्त कार्य सिद्ध होते है। यह सत्य है, सत्य है। इसमें संशय नहीं है। वंदना करने से जिनका मन प्रसन्न हो जाता है।
जिन्हे प्रेम अत्यंत प्यारा है। जो प्रेम प्रदान करने वाले, पूर्णानन्दमय, भक्तो की अभिलाषा पूर्ण करने वाले, सम्पूर्ण ऐश्वर्यों के एकमात्र आवास स्थान और कल्याण स्वरुप है। सत्य जिनका श्री विग्रह है, जो सत्य मय है, जिनका ऐश्वर्य त्रिकाल बाधित है जो सत्यप्रिय एवं सत्य प्रदाता है।
ब्रह्मा और विष्णु जिनकी स्तुति करते है, स्वेच्छानुसार शरीर धारण करने वाले उन भगवान शंकर की मैं वंदना करता हूँ। श्री नारद जी ने पूछा – देवताओ का मंगल करने वाले देव! परमात्मा शिव तो सर्व समर्थ है। आत्माराम होकर भी उन्होंने जिस पुत्र की उत्पत्ति के लिए पार्वती के साथ विवाह किया था उनके वह पुत्र किस प्रकार उत्पन्न हुआ? तथा तारकासुर का वध कैसे हुआ?
ब्रह्मन! मुझपर कृपा करके यह सारा वृतांत पूर्ण रूप से वर्णन कीजिए। इसके उत्तर में ब्रह्मा जी ने कथा प्रसंग सुनाकर कुमार के गंगा से उतपन्न होने तथा कृत्तिका आदि छः स्त्रियों के द्वारा उनके पाले जाने। उन छहो की संतुष्टि के लिए छः मुख धारण करने और कृत्तिकाओं के द्वारा पाले जाने के कारण उनका ‘कार्तिकेय’ होने की बात कही।
तदनन्तर उनके शंकर गिरिजा की सेवा में लाये जाने की कथा सुनाई। फिर ब्रह्मा जी ने कहा – भगवान शंकर ने कुमार को गोद में बैठाकर अत्यंत स्नेह किया। देवताओ ने उन्हें नाना प्रकार के पदार्थ, विद्याये, शक्ति प्रदान किए। पार्वती के हृदय में प्रेम समाता नहीं था।
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