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Sampurna Gurucharitra Pdf
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सिर्फ पढ़ने के लिये
परमेश्वर महादेव जी ने प्रसन्न हो वेदमंत्र के उच्चारण पूर्वक गिरिजा के करकमलो को शीघ्र आपने हाथ में ले लिया। मुने! लोकाचार के पालन की आवश्यकता को दिखाते हुए उन भगवान शंकर ने पृथ्वी का स्पर्श करके इत्यादि रूप से काम संबंधी मंत्र का पाठ किया।
उस समय वहां सब ओर महान आनंद दायक महोत्सव होने लगा। पृथ्वी पर, अंतरिक्ष में तथा स्वर्ग में भी जय-जयकार का शब्द गूंजने लगा। सब लोग अत्यंत हर्ष से भरकर साधुवाद देने और नमस्कार करने लगे। गन्धर्वगण प्रेम पूर्वक गाने लगे और अप्सराये नाचने लगी।
हिमाचल के नगर के लोग भी अपने मन में परम आनंद का अनुभव करने लगे। उस समय महान उत्सव के साथ परम मंगल मनाया जाने लगा। मैं विष्णु इंद्र देवगण तथा सम्पूर्ण मुनि हर्ष से भर गए। हम सबके मुखारबिन्द प्रसन्नता से खिल उठे।
तदनन्तर शैलराज हिमालय ने अत्यंत प्रसन्न हो शिव के लिए कन्यादान की यथोचित प्रदान की। तत्पश्चात उनके बन्धुजनो ने भक्ति पूर्वक शिवा का पूजन करके नाना विधि विधान से भगवान शिव को उत्तम द्रव्य समर्पित किया। हिमालय ने दहेज में अनेक प्रकार के द्रव्य, रत्न, पात्र, एक लाख सुसज्जित गौए, एक लाख सजे सजाये घोड़े, करोड़ हाथी और उतने ही सुवर्णजटित रथ आदि वस्तुए दी।
इस प्रकार परमात्मा शिव को विधि पूर्वक अपनी पुत्री कल्याणमयी पार्वती का दान करके हिमालय कृतार्थ हो गए। इसके बाद शैलराज ने यजुर्वेद की माध्यंदिनि शाखा से वर्णित स्तोत्र के द्वारा दोनों हाथ जोड़ प्रसन्नता पूर्वक उत्तम वाणी में परमेश्वर शिव की स्तुति की।
तत्पश्चात वेदवेत्ता हिमाचल के आज्ञा देने पर मुनियो ने बड़े उत्साह के साथ शिवा के सिर पर अभिषेक किया और महादेव जी का नाम लेकर उस अभिषेक की विधि पूरी की। मुने! उस समय बड़ा आनंददायक महोत्सव हो रहा था। ब्रह्मा जी कहते है – नारद! तदनंतर मेरी आज्ञा पाकर महेश्वर ने ब्राह्मणो द्वारा अग्नि की स्थापना करवाई और पार्वती को अपने आगे बिठाकर वहां ऋग्वेद यजुर्वेद तथा सामवेद के मंत्रो द्वारा अग्नि में आहुतियां दी।
तात! उस समय काली के भाई मैनाक ने लावा की अंजलि देकर लोकाचार का आश्रय ले प्रसन्नता पूर्वक अग्निदेव की परिक्रमा की। नारद! तदनन्तर शिव की आज्ञा से मुनियो सहित मैंने शिवा शिव का विवाह का शेष कार्य प्रसन्नता पूर्वक पूरा किया। फिर उन दोनों दम्पति के मस्तक का अभिषेक हुआ।
ब्राह्मणो ने उन्हें आदर पूर्वक ध्रुव का दर्शन कराया। तत्पश्चात हृदयालंभन का कार्य हुआ। फिर बड़े उत्साह के साथ स्वस्तिवाचन किया गया। इसके पश्चात ब्राह्मणो की आज्ञा से शिव ने शिवा के सिर में सिंदूरदान किया। उस समय गिरिराजनंदिनी उमा की शोभा अद्भुत और अवर्णननीय हो गयी।
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