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मुल्ला नसरुद्दीन की चालाकी
वह एक मस्त मौला फ़क़ीर था। उसे लोग मुल्ला नसरुद्दीन के नाम से जानते थे। वह कभी भी अन्य लोगो की तरह ऊपर वाले की इबादत नहीं करता था।
इसलिए उसकी जमात वाले लोग उससे खफा रहते थे। एक दिन कुछ जमात वाले इकट्ठा होकर मुल्ला नसरुद्दीन से बोले, “मुल्ला जी आप कभी ऊपर वाले की बंदगी नही करते है। यह आपकी गन्दी आदत है। ऊपर वाला आपको माफ़ नही करेगा।”
मुल्ला नसरुद्दीन ने जमात के लोगो से कहा, “ऊपर वाले को किसी ने नहीं देखा। वह माफ़ करे या नहीं लेकिन तुम सब लोग अभी हमे माफ़ कर दो। मैं आज से ही ऊपर वाले की बंदगी किया करूँगा लेकिन अपने ढंग से और अपने वक्त पर।”
जमात वालो ने सोचा यह तो बंदगी करता ही नहीं था चलो अब बंदगी करने के लिए तैयार तो हुआ भले अपने ढंग से और अपने समय पर ही सही।
रात को 12 बजे थे। मुल्ला नसरुद्दीन ने ऊपर वाले की बंदगी करना शुरू कर दिया। वह अपने घर के छत पर जोर-जोर से चिल्ला रहा था, “हे ऊपर वाले मैं तेरी बंदगी कर रहा हूँ हमारे लिए एक सौ दीनार भेज दे। एक सौ दीनार से एक भी कम हुआ तो मैं नहीं लूंगा।”
इस तरह से मुल्ला नसरुद्दीन रोज ही रात के समय अपने घर की छत पर चिल्लाने लगा। उसके चिल्लाने से मुहल्ले वालो की नींद हराम हो गई थी।
एक दिन पांच की संख्या में जमात वाले आपस में मशविरा करने लगे कि कैसे भी हो मुल्ला का यह गला फाड़ शोर थमना चाहिए।
सभी पांचो जमाती सबसे मांगकर निन्यानवे दीनार इकट्ठा किए और जब मुल्ला नसरुद्दीन रात 12 बजे ऊपर वाले की बंदगी करते हुए चिल्ला रहा था, “कि हे ऊपर वाले मैं तेरी बंदगी पूरी संजीदगी के साथ कर रहा हूँ क्या हमारे लिए तेरे पास सौ दीनार नहीं है क्या मुझे एक सौ दीनार नहीं दे सकता लेकिन अगर एक सौ दीनार से एक भी दीनार कम हुआ तो मैं उसे नहीं लूंगा।”
तभी जमात वालो ने निन्यानवे दीनार की एक पोटली बनाकर मुल्ला नसरुद्दीन के घर छत पर फेक दिया। मुल्ला ने उस पोटली को खोला और कई बार दीनार की गिनती किया। दीनार निन्यानवे ही थे।
मुल्ला ने उसे बांधकर अपने पास रख लिया। जमातियों को विश्वास था कि एक दीनार कम होने पर मुल्ला वह पोटली फेक देगा। इस तरह दीनार भी वापस मिल जाएगा और मुल्ला का चिल्लाना भी बंद हो जाएगा क्योंकि मुल्ला नसरुद्दीन ने कह रखा था कि अगर एक सौ दीनार से एक भी कम हुआ तो वह ऊपर वाले की बंदगी करना बंद कर देगा।
काफी देर तक इंतजार करने के बाद भी जब मुल्ला ने दीनार की पोटली नहीं फेका तो जमात के लोग सुबह-सुबह ही मुल्ला के घर तसरीफ ले आए और पूछने लगे, “निन्यानवे दीनार रहने पर तुमने उस पोटली को अपने पास क्यूं रख लिया ?”
तब मुल्ला ने तपाक से कहा, “कि तुम लोग किसी मजार पर पीर की खिदमत में कुछ पेश करते हो और कम रहने पर मौलवी कहता है कि पीर की खिदमत में पेश किया हुआ सामान पूरा नहीं है तो क्या मौलवी तुम लोगो को वह सामान वापस करता है। वह खुद अपने पास ही रख लेता है। कम सामान पीर कभी स्वीकार नहीं करता इस तरह यह दीनार भी कम था। सौ दीनार पूरा तो था नहीं जो ऊपर वाला स्वीकार करता इसलिए अब मैं उसे अपने पास ही रखूँगा और तुम लोगो को नहीं दूंगा।”
मुल्ला नसरुद्दीन की बात सुनकर सभी वहां से चले गए। मुल्ला ने चालाकी से सभी को वापस जाने पर मजबूर कर दिया।
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