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Ret Samadhi Book Pdf Hindi
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सिर्फ पढ़ने के लिये
प्रसन्नता पूर्वक क्रीड़ा में लगी हुई देवी सती ने उस समय रोहिणी के साथ दक्षयज्ञ में जाते हुए चन्द्रमा को देखा। देखकर वे अपनी हितकारिणी प्राणप्यारी श्रेष्ठ सखी विजया से बोली – मेरी सखियों में श्रेष्ठ प्राणप्रिये विजये! जल्दी जाकर पूछ तो आ ये चंद्रदेव रोहिणी के साथ कहां जा रहे है?
सती के इस प्रकार आज्ञा देने पर विजया तुरंत उनके पास गयी और उनसे यथोचित शिष्टाचार के साथ पूछा – चंद्रदेव! आप कहां जा रहे है? विजया का यह प्रश्न सुनकर चंद्रदेव ने अपनी यात्रा का उद्देश्य आदरपूर्वक बताया। दक्ष के यहां होने वाले यज्ञोत्सव आदि का सारा वृतांत कहा।
वह सब सुनकर विजया बड़ी उतावली के साथ देवी के पास आयी और चन्द्रमा ने जो कुछ कहा था वह सब उसने कह सुनाया। उसे सुनकर कालिका सती देवी को बड़ा विस्मय हुआ। अपने यहां सूचना न मिलने का है यह बहुत सोचने विचारने पर भी उनके समझ में नहीं आया।
तब उन्होंने पार्षदों से घिरे अपने स्वामी भगवान शिव के पास आकर पूछा – प्रभो! मैंने सुना है कि मेरे पिता जी के यहां बहुत बड़ा यज्ञ हो रहा है। उसमे बहुत बड़ा उत्सव होगा। उसमे सब देवर्षि एकत्रित हो रहे है। देवदेवेश्वर! पिता जी के उस महान यज्ञ में चलने में रुचि आपको क्यों नहीं हो रही है?
इस विषय में जो बात हो वह सब बताइये। महादेव! सुहृदो का यह धर्म है कि वे सुहृदो के साथ मिले-जुले। यह मिलन उनके महान प्रेम को बढ़ाने वाला होता है। अतः प्रभो! मेरे स्वामी! आप मेरी प्रार्थना मानकर सर्वथा प्रयत्न करके मेरे साथ पिता जी की यज्ञशाला में आज ही चलिए।
सती की यह बात सुनकर भगवान महेश्वरदेव जिनका हृदय दक्ष के वामबाणो से घायल हो चुका था मधुर वाणी में बोले – देवी! तुम्हारे पिता दक्ष मेरे विशेष द्रोही हो गए है। जो प्रमुख देवता और ऋषि अभिमानी, मूढ़ और ज्ञान शून्य है वे ही सब तुम्हारे पिता के यज्ञ में गए है।
जो लोग बिना बुलाये दूसरे के घर जाते है वे वहां अनादर पाते है जो मृत्यु से भी बढ़कर कष्टदायक है। अतः प्रिये! तुमको और मुझको तो विशेष रूप से दक्ष के यज्ञ में नहीं जाना चाहिए। यह मैंने सच्ची बात कही है। महात्मा महेश्वर कहने पर सती रोष पूर्वक बोली।
शंभो! आप सबके ईश्वर है। जिनके जाने से यज्ञ सफल होता है उन्ही आपको मेरे दुष्ट पिता ने इस समय आमंत्रित नहीं किया है। प्रभो! उस दुरात्मा का अभिप्राय क्या है वह सब मैं जानना चाहती हूँ। साथ ही वहां आये हुए सम्पूर्ण दुरात्मा देवर्षियों के मनोभाव का भी मैं पता लगाना चाहती हूँ।
अतः प्रभो! ममें आज ही पिता के यज्ञ में जाती हूँ। नाथ! महेश्वर! आप मुझे वहां जाने की आज्ञा दे दे। देवी सती के ऐसा कहने पर सर्वज्ञ, सर्वद्रष्टा, सृष्टिकर्ता एवं कल्याणस्वरूप साक्षात् भगवान रूद्र उनसे इस प्रकार बोले – उत्तम व्रत का पालन करने वाली देवी।
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