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Rahu Stotra Pdf / राहु स्तोत्र पीडीएफ
पुस्तक का नाम | राहु स्तोत्र Pdf |
पुस्तक के लेखक | गीता प्रेस |
पुस्तक की भाषा | संस्कृत, हिंदी |
श्रेणी | धार्मिक |
फॉर्मेट | |
कुल पृष्ठ | 5 |
साइज | 0.52 Mb |

चंद्र मंगल स्तोत्र Pdf Download
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राहु ग्रह के बारे में
विष्णु पुराण के अनुसार समुद्र मंथन के समय समुद्र के गर्भ से निकले 13 रत्नो को लेकर देवताओ और राक्षसों में आपसी सहमति बन गयी परन्तु 14वे रत्न अमृत को लेकर दोनों पक्षों में विवाद हो गया।
तब भगवान विष्णु मोहिनी रूप धारण कर दोनों पक्षों के बीच गए और फिर उन्होंने देवताओ को अमृत और असुरो को मद्यपान कराया। तब स्वरभानु नामक असुर ने उस चालाकी को भांप लिया और भेष बदलकर देवताओ के पक्ष में बैठ गया।
स्वरभानु ने अमृत पान कर लिया तब चन्द्रमा और सूर्य ने उसे पहचान लिया और मोहिनी रूप धारण किए भगवान विष्णु को इस बारे में बताया। तब विष्णु जी स्वरभानु को दो हिस्सों में कर दिया। उन्ही के सिर के हिस्से का नाम राहु और धड़ के हिस्से का नाम केतु पड़ा।
राहु दोष के प्रभाव
राहु दोष होने से मनुष्य को बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है। राहु दोष के कारण जातक को काल्पनिक डर, अपमान, भय, मानसिक समस्या, धनहानि के समस्याओ से जूझना पड़ता है। इससे मनुष्य बहुत परेशान होता है। राहु दोष से काल सर्प योग भी बनता है।
Rahu Stotra in Hindi
।। राहुस्तोत्रम् ।।
अथ राहुस्तोत्रप्रारम्भः ।
ॐ अस्य श्री राहुस्तोत्रमहामन्त्रस्य वामदेव ऋषिः ।
अनुष्टुप्च्छन्दः । राहुर्देवता ।
राहुप्रसादसिद्ध्यर्थे जपे विनियोगः ।
काश्यप उवाच ।
शृण्वन्तु मुनयः सर्वे राहुप्रीतिकरं स्तवम् ।
सर्वरोगप्रशमनं विषभीतिहरं परम् ॥ १॥
सर्वसम्पत्करं चैव गुह्यमेतदनुत्तमम् ।
आदरेण प्रवक्ष्यामि श्रूयतामवधानतः ॥ २॥
राहुः सूर्यरिपुश्चैव विषज्वाली भयाननः ।
सुधांशुवैरिः श्यामात्मा विष्णुचक्राहितो बली ॥ ३॥
भुजगेशस्तीक्ष्णदंष्ट्रः क्रूरकर्मा ग्रहाधिपः ।
द्वादशैतानि नामानि नित्यं यो नियतः पठेत् ॥ ४॥
जप्त्वा तु प्रतिमां रंयां सीसजां माषसुस्थिताम् ।
नीलैर्गन्धाक्षतैः पुष्पैः भक्त्या सम्पूज्य यत्नतः ॥ ५॥
विधिना वह्निमादाय दूर्वान्नाज्याहुतीः क्रमात्।
तन्मन्त्रेणैव जुहुयाद्यावदष्टोत्तरं शतम् ॥ ६॥
हुत्वैवं भक्तिमान् राहुं प्रार्थयेद्ग्रहनायकम् ।
सर्वापद्विनिवृत्यर्थं प्राञ्जलिः प्रणतो नरः ॥ ७
राहो कराळवदन रविचन्द्रभयङ्कर ।
तमोरूप नमस्तुभ्यं प्रसादं कुरु सर्वदा ॥ ८॥
सिम्हिकासुत सूर्यारे सिद्धगन्धर्वपूजित ।
सिंहवाह नमस्तुभ्यं सर्वान्रोगान् निवारय ॥ ९॥
कृपाणफलकाहस्त त्रिशूलिन् वरदायक ।
गरळातिगराळास्य गदान्मे नाशयाखिलान् ॥ १०॥
स्वर्भानो सर्पवदन सुधाकरविमर्दन ।
सुरासुरवरस्तुत्य सर्वदा त्वं प्रसीद मे ॥ ११॥
इति सम्प्रार्थितो राहुः दुष्टस्थानगतोऽपि वा ।
सुप्रीतो जायते तस्य सर्वान् रोगान् विनाशयेत् ॥ १२॥
विषान्न जायते भीतिः महारोगस्य का कथा ।
सर्वान् कामानवाप्नोति नष्टं राज्यमवाप्नुयात् ॥ १३॥
एवं पठेदनुदिनं स्तवराजमेतं मर्त्यः प्रसन्न हृदयो विजितेन्द्रियो यः ।
आरोग्यमायुरतुलं लभते सुपुत्रान्सर्वे ग्रहा विषमगाः सुरतिप्रसन्नाः ॥ १४॥
इति राहुस्तोत्रं सम्पूर्णम् ।
सिर्फ पढ़ने के लिए
ब्राह्मण का रूप धारण करके हनुमान जी ने उन्हें पुकारा, पुकार सुनकर विभीषण वहां आये प्रणाम करके कुशल पूछी और कहा कि हे ब्राह्मण देव! अपनी कथा समझाकर कहिए।
क्या आप हरि भक्त में से कोई है? क्योंकि आपको देखकर मेरा हृदय प्रफुल्लित हो रहा है और प्रेम उमड़ रहा है। अथवा आप दीन दुखी से प्रेम करने वाले स्वयं श्री राम जी है। जो मुझे बड़भागी और घर बैठे दर्शन देने आये है।
6- दोहा का अर्थ-
तब हनुमान जी ने श्री राम जी की सारी कथा कहकर अपना नाम बताया सुनते ही दोनों शरीर से पुलकित हो गए और श्री राम जी के गुणों का स्मरण करके दोनों के मन प्रेम और आनंद से भर गए।
चौपाई का अर्थ-
विभीषण ने कहा – हे पवन पुत्र! मेरी रहनी सुनो। मैं यहां उस प्रकार से ही रहता हूँ जैसे दांतो के बीच में जीभ विचारी रहती है। हे तात! मुझे अनाथ जानकर सूर्यकुल के नाथ श्री राम जी क्या कभी मुझ पर कृपा करेंगे?
मेरा राक्षसी शरीर होने से कुछ साधन करते नहीं बनता है और मन में भी नहीं श्री राम जी के चरण कमल में प्रेम है। परन्तु हे हनुमान! अब मुझे विश्वास हो गया कि श्री राम जी की मुझपर कृपा है क्योंकि हरि की कृपा के बिना संत नहीं मिलते है।
3- जब श्री रघुवीर जी ने कृपा की है तभी आपने हठ करके अपनी ओर से दर्शन दिया है। हनुमान जी ने कहा – हे विभीषण जी! सुनिए, प्रभु की यही रीति है कि वह सेवक पर सदा ही प्रेम किया करते है।
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