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Questions are the Answers Hindi PDF Download
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सिर्फ पढ़ने के लिये
यह विषय सुख की इच्छा से कामना रूपी कपट से युक्त धर्मवाले गृहस्थाश्रम में आसक्त रहकर कर्मकांड का तथा कर्मफल की प्रशंसा करने वाले सनातन वेदवाद का ही विस्तार करता रहे। इसका आनंददायी मुख नष्ट हो जाय। यह आत्मज्ञान को भूलकर पशु के समान हो जाय तथा दक्ष कर्मभ्रष्ट हो शीघ्र ही बकरे के मुख से युक्त हो जाय।
इस प्रकार कुपित हुए नंदी ने जब ब्राह्मणो को और दक्ष ने महादेव जी को शाप दिया तब वहां महान हाहाकार मच गया। नारद! मैं वेदो का प्रतिपादक होने के कारण शिव तत्व को जानता हूँ। इसलिए दक्ष का वह शाप सुनकर मैंने बारंबार उसकी तथा भृगु आदि ब्राह्मणो की निंदा भी की।
सदाशिव महादेव जी भी नंदी की वह बात सुनकर हँसते हुए से मधुर वाणी में बोले – वे नंदी को समझाने लगे। नन्दिन! मेरी बात सुनो। तुम तो परम ज्ञानी हो। तुम्हे क्रोध नहीं करना चाहिए। तुमने भ्रम से यह समझकर कि मुझे शाप दिया गया व्यर्थ ही ब्राह्मण कुल को शाप दे डाला।
वास्तव में मुझे किसी का शाप छू ही नहीं सकता अतः तुम्हे उत्तेजित नहीं होना चाहिए। वेद मन्त्राक्षरमय और सूक्तमय है। उसके प्रत्येक सूक्त में समस्त देहधारियों के आत्मा प्रतिष्ठित है। अतः उन मंत्रो के ज्ञाता नित्य आत्मवेत्ता है। इसलिए तुम रोषवश उन्हें शाप न दो।
किसी की बुद्धि कितनी ही दूषित क्यों न हो वह कभी वेदो को शाप नहीं दे सकता। इस समय मुझे शाप नहीं मिला है इस बात को तुम्हे ठीक-ठीक समझना चाहिए। महामते! तुम सनकादि सिद्धो को भी तत्व ज्ञान का उपदेश देने वाले हो। अतः शांत हो जाओ।
मैं ही यज्ञ हूँ मैं ही यज्ञ कर्म हूँ यज्ञो के अंगभूत समस्त उपकरण भी मैं ही हूँ। यज्ञ की आत्मा मैं हूँ। यज्ञ परायण यजमान भी मैं हूँ और यज्ञ से बहिष्कृत भी मैं ही हूँ। यह कौन तुम कौन और ये कौन? वास्तव में सब मैं ही हूँ। तुम अपनी बुद्धि से इस बात का विचार करो।
तुमने ब्राह्मणो को व्यर्थ ही शाप दिया है। महामते! नन्दिन! तुम तत्वज्ञान के द्वारा प्रपंच रचना का बाध करके आत्मनिष्ठ ज्ञानी एवं क्रोध आदि शून्य हो जाओ। ब्रह्मा जी कहते है – नारद! भगवान शंभु के इस प्रकार समझाने पर नंदिकेश्वर विवेक परायण हो क्रोध रहित एवं शांत हो गए।
भगवान शिव भी अपने प्राणप्रिय पार्षद नंदी को जल्द ही तत्व का बोध कराकर प्रमथगणो के साथ वहां से प्रसन्नता पूर्वक अपने स्थान को चल दिए। इधर रोशावेश से युक्त दक्ष भी ब्राह्मणो से घिरे हुए अपने स्थान को लौट गए। परन्तु उनका चित्त शव द्रोह में ही तत्पर था।
उस समय रूद्र को शाप दिए जाने की घटना का स्मरण करके दक्ष सदा महान रोष से भरे रहते थे। उनकी बुद्धि पर मूढ़ता छा गयी थी। वे शिव के प्रति श्रद्धा को त्यागकर शिव पूजको की निंदा करने लगे। तात नारद! इस प्रकार परमात्मा शंभु के साथ दुर्व्यवहार करके दक्ष ने अपनी जिस दुष्ट बुद्धि का परिचय दिया था वह मैंने तुम्हे बता दी।
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