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Purnima Vrat Katha Aur Pujan Vidhi Pdf
पुस्तक का नाम | पूर्णिमा व्रत कथा और पूजन विधि |
भाषा | हिंदी |
श्रेणी | धार्मिक |
फॉर्मेट | |
पृष्ठ | 4 |
साइज | 0.49 Mb |
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माघ पूर्णिमा का महत्व Purnima Vrat Katha Aur Pujan Vidhi Pdf Book
माघी पूर्णिमा पर गंगा तथा अन्य पवित्र नदियों तथा सरोवर के तट पर स्नान करके तिलांजलि देना चाहिए तथा पितृ तर्पण करना चाहिए। इस दिन दान दक्षिणा का बत्तीस गुना फल प्राप्त होता है। इसलिए इसे माघी पूर्णिमा के अलावा बत्तीसी पूर्णिमा भी कहते है।
माघी पूर्णिमा के दिन संगम पर माघ मेले में जाने और स्नान करने का विशेष फल प्राप्त होता है। पुराणों के अनुसार माघ-माह में पूर्णिमा के दिन भगवान विष्णु स्वयं गंगाजल में निवास करते है। इस गंगा स्नान करने से विष्णु की कृपा प्राप्त होती है तथा धन सम्पदा लक्ष्मी, यश सुख सौभाग्य तथा उत्तम संतान की प्राप्ति होती है।
पुराणों के अनुसार माघ-माह में पूर्णिमा के दिन देवता धरती पर आते है और गंगा में सना करते है। इस शुभ संयोग में दान-पुण्य करते हुए मंत्र द्वारा उन्हें प्रसन्न किया जाता है। दान करने से सभी तरह के संकट मिट जाते है और जातक को मोक्ष प्राप्त होता है।
इस दिन देवी लक्ष्मी जी को पीले तथा लाल रंग की सामाग्री अर्पित करने से वह प्रसन्न होती है। पूर्णिमा पर माता लक्ष्मी के मंत्रो का जाप करना चाहिए इससे घर में धन समृद्धि की बढ़ोत्तरी होती है।
माघ की पूर्णिमा का महत्व और उसकी कथा
पौराणिक मान्यता के अनुसार नर्मदा नदी के तट पर एक ब्राह्मण रहता था उसका नाम देवदत्त था। वह विद्वान था लालची था। उसका सारा जीवन धन कमाने में ही बीत गया। इसी क्रम में उसकी वृद्धावस्था आ गयी तथा कई प्रकार की बीमारी से ग्रसित हो गया।
देवदत्त सोचने लगा – मैंने कभी अपने जीवन में अच्छा कार्य नहीं किया। सारी जिंदगी धन प्राप्त करने में ही निकल गयी अब हमारा उद्धार कैसे होगा? देवदत्त विद्वान तो था ही उसे एक श्लोक याद आ गया जिसमे माघ मास में स्नान का वर्णन था।
फिर क्या था देवदत्त ने संकल्प लेकर नर्मदा नदी में स्नान किया। सात से नौ दिनों तक स्नान करने के कारण देवदत्त की तबियत खराब हो गयी। वह सोचने लगा कोई सत्कर्म तो किया नहीं अब नरकगामी होना पड़ेगा लेकिन सात से नौक दिन तक माघ मास में स्नान के कारण उसे मोक्ष प्राप्त हो गया। माघ पूर्णिमा का हिन्दू धर्म मे बहुत महत्व है।
इस दिन संगम तट पर स्नान करने से या फिर पवित्र सरोवर तथा नदियों में स्नान करने से बहुत पुण्य प्राप्त होता है तथा इस दिन दान और दक्षिणा देने से बत्तीस गुना फल की प्राप्ति होती है। माघ की पूर्णिमा पर स्नान के साथ ही माता लक्ष्मी के मंत्रो का जप करने से घर में धन धान्य का प्रवाह बना रहता है।
इस दिन लक्ष्मी माता को पीले तथा लाल रंग की सामग्री अर्पण करने से उनकी कृपा प्राप्त होती है। पुराणों में मान्यता के अनुसार माघ पूर्णिमा के दिन गंगाजल में भगवान विष्णु का वास रहता है तथा इस दिन गंगा स्नान करने से भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है।
पूर्णिमा व्रत कथा
कांतिका नगर में एक ब्राह्मण रहता था जो बहुत ही निर्धन था और भिक्षटन करके ही वह अपना तथा अपनी पत्नी का जीवन निर्वाह करता था। उसकी अपनी कोई संतान नहीं थी। ब्राह्मण जब एक बार कही भिक्षटन के लिए गया हुआ था तब किसी गांव में कई स्त्रियां पूर्णिमा व्रत रखे हुए उसकी कथा सुन रही थी।
ब्राह्मण ने एक वृद्ध माता से पूछा तब वृद्ध माता ने ब्राह्मण को पूर्णिमा व्रत और उसकी कथा बताया और कहा कि पूर्णिमा व्रत करने से जातक के सारे पाप नष्ट हो जाते है तथा उसके सुख सौभाग्य का अभ्युदय होता है। ब्राह्मण पूर्णिमा व्रत करने का विचार लेकर अपने घर लौट आया।
एक दिन उसकी पत्नी नगर में भिक्षा मांगने के लिए गयी लेकिन निःसंतान होने के कारण उसे कही से कोई भिक्षा देने वाला नहीं मिला परन्तु उसे निःसंतान होने के कारण लोग उसे बाँझ अवश्य कहने लगे। बाँझ शब्द से घायल होकर वह अपने घर उदास होकर लौट आयी तथा अपने पति को सारी व्यथा कह सुनाई।
सहसा ब्राह्मण को पूर्णिमा व्रत कथा का ध्यान आ गया। तीन दिन बाद ही दैवयोग से पूर्णिमा थी। किसी ने ब्राह्मण से कहा आप सोलह दिन तक मां काली का पूजन करो। ब्राह्मण दम्पति ने सोलह दिन तक मां काली की विधिवत पूजा किया तब मां काली ने प्रसन्न होकर उनको संतान प्राप्ति का वरदान दिया और कहा कि प्रत्येक पूर्णिमा को एक दीपक जलाओ और दीपक तब तक अवश्य जलाना जब तक उसकी संख्या 32 न हो जाय।
इसके बाद ब्राह्मण दम्पति हर पूर्णिमा को दीपक प्रज्वलित करते थे। एक बार पूजन करने के उद्देश्य से ब्राह्मण ने आम का कच्चा फल तोड़ दिया और उसकी पत्नी ने पूजा किया फलस्वरूप वह गर्भवती हो गयी तथा समयोपरांत एक पुत्र को जन्म दिया और उसका नाम देवदास रखा।
ब्राह्मण दम्पति अपने पुत्र को लेकर काशी आये हुए थे, जहां काशी में उनके कुछ रिश्तेदार रहते थे। उन लोगो ने जबरन देवदास का विवाह कर दिया। विवाह के पश्चात उन लोगो को ज्ञात हुआ कि देवदास अल्पायु है लेकिन अब कुछ नही हो सकता था।
कुछ समय के उपरांत देवदास का अंत समय आ गया। लेकिन ब्राह्मण दम्पति ने पूर्णिमा का व्रत किया हुआ था इसलिए उनके पुत्र की रक्षा हो गई। तब से ही कहा जाता है कि पूर्णिमा के दिन व्रत करने से संकट से मुक्ति प्राप्त होकर सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है।
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