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हे राम! आप वेद की मर्यादा के रक्षक जगदीश्वर है और जानकी जी आपकी स्वरुप भूता माया है, जो कृपा के भंडार आपका रुख पाकर इस जगत का पालन, शृजन और संहार करती है।
जो हजार मस्तक वाले सर्पो के स्वामी और पृथ्वी को अपने सिर पर धारण करते है, वही चराचर के स्वामी शेष जी लक्ष्मण है। देवताओ के कार्य के लिए आप राजा का शरीर धारण करके सेना का नाश करने के लिए आये है।
126- दोहा का अर्थ-
हे राम! आपका स्वरुप वाणी के अगोचर, बुद्धि से परे, अव्यक्त, अकथनीय और अपार है। वेद निरंतर उसका नेति-नेति कहकर वर्णन करते है।
हे राम! जगत दृश्य है, आप उसको देखने वाले है। आप ब्रह्मा, विष्णु और शंकर को भी नचाने वाले है। जब वह भी आपके मर्म को नहीं जान सकते तो और कोई कैसे जान सकता है?
2- वही आपको जान सकता है जिसे आप जना देते है और जानते ही वह आपका स्वरुप बन जाता है। हे भक्तो के हृदय को शीतल करने वाले चंदन आपकी कृपा से ही भक्त आपको जान पाते है।
3- यह आपकी देह चिदानंदमय है, यह प्रकृत जन्य पंच महाभूतों की बनी हुई कर्म बंधन युक्त, त्रिदेह विशिष्ट माया की नहीं है और यह उत्पत्ति-नाश, वृद्धि, क्षय आदि से सब विकारो से रहित है, इस रहस्य को अधिकारी पुरुष ही जानते है। आपने देवता और संतो के लिए दिव्य नर शरीर धारण किया है और प्राकृत निर्मित देह वाले साधारण राजाओ की तरह कहते और करते है।
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