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Psychology Book PDF in Hindi Free मनोविज्ञान बुक्स PDF Free Download
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Manovigyan Books in Hindi Pdf
मनोविज्ञान का उद्देश्य चेतनावस्था की प्रक्रिया के तत्वों का विश्लेषण करना है। जो प्राणियों के मानसिक क्रियाओ व व्यक्त और अव्यक्त व्यवहार का अध्ययन करके उनका विश्लेषण करता है।
मनोविज्ञान के माध्यम से प्राणियों के मनोभाव को परखा जाता है। उनके व्यवहार के परिवर्तन पर ही निष्कर्ष निकालने की कोशिस किया जाता है।
शिवम विज्ञान में मनुष्य के अंतर्निहित वेदनाओ को संग्रहित किया जाता है। मनोविज्ञान को कुछ मनोविज्ञानियों ने अपने अनुभव के अनुसार ही परिभाषित किया है।
1- स्किनर के अनुसार – मनोविज्ञान व्यवहार और अनुभव का विज्ञान है।
2- क्रो एंड क्रो के अनुसार – मनोविज्ञान मानव व्यवहार और मानव संबंधो का अध्ययन है।
3- वाटसन के अनुसार – मनोविज्ञान व्यवहार की निश्चितता व शुद्ध विज्ञान है।
4- वुडवर्ड के अनुसार – वातावरण के संपर्क में होने वाले मानव व्यवहारों को मनोविज्ञान कहा जाता है।
5- गैरिसन के अनुसार – मनोविज्ञान का संबंध प्रत्यक्ष मानव व्यवहार से ज्ञात होता है।
Motivational Kahani in Hindi
सिर्फ पढ़ने के लिए ——–जिस प्रकार सबके साथ रहने पर भी मानव अकेला रहता है और अकेलेपन में कुछ पल के लिए शांति ढूंढता है और वह शांति मिलती भी है।
लेकिन अपने स्वभाव के कारण मानव फिर से झुण्ड में जा मिलता है जिससे वह बिछड़ गया था। लेकिन उसे मिलता क्या है कोलाहल एक दूसरे को पीछे करने की चाहत।
जितने भी बड़े-बड़े मनीषी हुए है उनके जीवन में झांकिए तो आप को शांति जरूर मिलेगी चाहे वह कुछ पल के लिए ही क्यूं न हो। ध्यान देने वाली बात यह है कि शांति के बाद ही रचना का सृजन होता है।
पंकज को हमेशा ही कोई न कोई विचार उसे उद्विग्न किए रहता था। उसके सभी दोस्त हमेशा चिढ़ाया करते थे क्योंकि वह उन सभी के जैसा नहीं था। हर क्षण खा पीकर मस्त रहते थे, वह हमेशा विचारों में डूबा रहता था। एक समय कुछ लोग आपस में किसी बात पर बहस कर रहे थे।
पंकज भी वहां खड़ा हो गया, उन लोगों की बातें सुनी और आगे बढ़ गया। दूसरे दिन म. न. पा. ऑफिस में एक पत्र आया हुआ था। जिसमे लिखा हुआ था, ” अगर आप लोग सड़क की कठिनाइयों को दूर नहीं करेंगे तो जनता विद्रोह कर सकती है। ” उसके बाद सभी कठिनाइयों का निवारण हो गया क्योंकि यह प्रयास पंकज का ही था।
रोड लाइट की समस्या हो, पानी की समस्या हो, व्यापारियों की समस्या हो पंकज के अकेले के प्रयास से सबका निवारण हो जाता था।
भावार्थ – शांति से ऊर्जा मिलती है जिससे सभी कार्य हो जाते है।
मां बाप जाए तो जाए कहां
गोपाल बाबू पोस्ट मास्टर थे। उनकी जीवन संगिनी का नाम बसंती था। वह गोपाल बाबू के जीवन में सच में ही बसंत ऋतु की तरह खुशिया बिखेर दिया था।
जिस दिन से बसंती गोपाल बाबू के घर आई उनके जीवन में भी बसंत ऋतु की अंगड़ाई की तरह उन्नति का मार्ग प्रशस्त होता चला गया।
गोपाल बाबू का एक ही इकलौता लड़का था। उसका नाम रवीश था। गोपाल बाबू इस समय (जी. पी. ओ.) जनरल पोस्ट ऑफिस में पोस्ट मास्टर के पद पर विराजमान थे। वह अपने इकलौते लड़के की हर इच्छा पूरी करते थे।
उनका कहना कि मैं तो सिर्फ अपने लड़के के लिए ही कमाता हूँ कि उसे किसी तरह की तंगहाली महसूस नहीं होनी चाहिए। रवीश की इच्छा थी कि वह एक डाक्टर बने।
लेकिन मेडिकल कालेज की डोनेशन संस्कृत उसके आड़े आ रही थी। गोपाल बाबू को रवीश की इच्छा का पता चला तो उन्होंने शहर के सबसे अच्छे मेडिकल कालेज में डोनेशन देकर रवीश का नाम लिखवा दिया था।
कुछ समय में रवीश पढ़कर एक अच्छा सा डाक्टर बन गया था। समय के अंतराल में रवीश का विवाह एक शिक्षित लड़की से हो गया।
उस लड़की का नाम लता था। वह गोपाल बाबू के घर आते ही नारी सुलभ अदा के साथ ही रवीश को लता की भांति ही लपेटना शुरू कर दिया था।
बेचारा रवीश चाहते हुए भी लता के बंधन से मुक्त नहीं हो सका। लता उसे लपेटते हुए उस वृक्ष से ही अलग कर दिया जिसकी छत्र छाया में रवीश इतना लायक बन सका था कि अपने मां बाप का सहारा बन सके लेकिन तब तक देर हो चुकी थी।
गोपाल बाबू अब जिंदगी के उस पड़ाव पर थे। जहां मनुष्य चाहते हुए कुछ करने के योग्य नहीं रह जाता है। सो उन्होंने अपनी जीवन संगिनी की सहमति से अपने कार्य से एकदम अवकाश ले लिया था।
गोपाल बाबू के घर हर तरह से लक्ष्मी की कृपा बनी हुई थी। गोपाल बाबू को पेंशन भी मिलती थी। उनका लड़का डाक्टर हो गया था।
एक दिन रवीश ने लता से चाय बनाने के लिए कहा तब लता ने उलाहना देना शुरू कर दिया, “डब्बे में शक्कर नहीं है। चाय कैसे बनेगी ?”
रवीश बोला, “मैं जाकर शक्कर ले आता हूँ।”
तब लता ने कहा, “पिताजी जब बाहर जाते है तो क्या शक्कर नहीं ला सकते है ?”
तब रवीश ने कहा, “अब उनका आराम करने का समय है। उन्हें परेशान मत किया करो, मैं सब कुछ कर दिया करूँगा।”
लता अब आए दिन रवीश के कान भरने लगी। लता बोली, “तुम एक पुरानी कार लेकर प्रेक्टिस करने जाते हो क्या पिता जी तुम्हारे लिए एक नई कार भी नहीं खरीद सकते है ?”
यह बात लता ने रवीश से जोरदार स्वर में कहा था। जिससे गोपाल बाबू और बसंती को सुनाई पड़ सके। उसी दिन गोपाल बाबू ने रवीश के लिए एक नई कार की बुकिंग कर दिया था।
ड्राइवर नई कार लेकर आया तो रवीश देखकर भौचक रह गया। रवीश ने गोपाल बाबू से पूछा, “पिता जी आपने इतने पैसे कहां से लाए जो एक नई कार मंगवा लिया ?”
गोपाल बाबू ने कहा, “बेटा सारी जिंदगी सिर्फ तुम्हारे लिए ही कमाता था। उन्ही पैसो से यह कार खरीदी है। यह हमारी मेहनत के पैसे है कोई दो नंबर का पैसा नहीं लगा है इसमें।”
लता हर औरत की तरह अपने पति की कमाई पर अपना सिर्फ अपना ही अधिपत्य चाहती थी। वह यह भी भूल गई कि उसके पति के ऊपर उसकी सास ससुर का भी थोड़ा हक है। जिसे उन्होंने इस लायक बनाया कि वह कुछ करके दिखा सके।
एक दिन लता ने रवीश से कहा, “जिस तरह तुम्हारे मां बाप ने तुम्हारे लिए किया है उसी तरह तुम्हे भी करना चाहिए ?”
रवीश अनजान बनते हुए पूछा, “मतलब ?”
लता ने कहा, “तुम्हे भी अपने वाली पीढ़ी पर ध्यान देना चाहिए ?”
रवीश ने कहा, “साफ-साफ कहो पहेलियां मत बुझाओ ?”
तब लता ने स्पष्ट शब्दों में कहा, “तुम्हारी डाक्टरी की कमाई इतनी नहीं है कि हम दोनों का बोझ आराम से उठा सके ?”
“तो क्या मैं अपने मां बाप को अकेला छोड़ दूँ जिन्होंने हमारे लिए इतना सब किया।” रवीश ने कहा।
लता बोली, “तुम्हारे पिता के पास इतना पैसा तो है ही कि उनकी जिंदगी आराम से कट सके।”
रवीश बोला, “सिर्फ पैसा ही वृद्धावस्था में सब कुछ नहीं होता। उस समय एक सहारे की भी जरूरत पड़ती है।”
लता बोली, “तुम्हे ज्यादा श्रवण कुमार बनने की आवश्यकता नहीं है। मैं तो यह कह रही थी कि अगर हम लोग दूसरे शहर में जाएगे तो वहां तुम्हारी फ़ीस भी ज्यादा मिलेगी और मान सम्मान भी बढ़ेगा।”
रवीश लता की बात से सहमत हो गया। सुबह सारा सामान पैक करके रवीश गोपाल बाबू के पास गया और हिचकिचाते हुए बोला, “पिता जी हम लोग जा रहे है।”
गोपाल बाबू ने सोचा शायद कही घूमने के लिए जा रहा है तो बोले, “बेटा अगर दिल्ली जा रहा है तो वापसी में हमारे लिए एक मफलर अवश्य ही लेते आना क्योंकि यहां बहुत ठण्ड पड़ रही है ?”
“नहीं पिता जी हम लोग यहां से कनाडा जा रहे है।” रवीश ने कहा।
तभी बसंती बोल उठी, “हम लोगो ने बसंत ऋतु की तरह से तुम्हारी परवरिश किया कि एक दिन तुम हम लोगो की विरासत को सभालोगे। हर मां बाप की नजर में उसका लड़का छोटा बच्चा ही होता है। लेकिन एक लता वृक्ष से उसकी शाखा को दूर कर रही है। अब हम लोग कहां जायेंगे ?”
आप लोग कही नहीं जाएगे। आप लोगो को यही रहना है। इतना कहते हुए वृक्ष की शाखा लता के संग चल पड़ी। वृद्धावस्था में मां बाप जाए तो जाए कहां ?
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