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परिवर्तिनी एकादशी Pdf | Parivartini Ekadashi Katha Hindi PDF

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Parivartini Ekadashi Katha Hindi PDF

 

 

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Santan Saptami Vrat Katha Pdf
Santan Saptami Vrat Katha Pdf
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परिवर्तनी एकादशी के बारे में

 

 

 

पार्श्व अथवा परिवर्तनी एकादशी का व्रत करने से हजार अश्वमेध का फल मिलता है।

 

परिवर्तनी अथवा पार्श्व एकादशी के मुख्य देवता भगवान विष्णु की पूजा का विधान है।

 

इस एकादशी को जलझूलनी या डोल ग्यारस एकादशी के नाम से भी जानते है।

 

मान्यताओं के अनुसार पार्श्व एकादशी अथवा परिवर्तनी का व्रत करने से जातक के सभी पापो का शमन होता है।

 

पार्श्व एकादशी या परिवर्तनी एकादशी का व्रत करने और उसकी कथा का श्रवण करने से जातक की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है ऐसी मान्यता है।

 

 

 

शास्त्रों में वर्णन के अनुसार इस कथा को श्री कृष्ण ने महाराज युधिष्ठिर को सुनाया था। एक बार युधिष्ठिर ने श्री कृष्ण से पूछा – हे माधव! मुझे कोई ऐसी कथा सुनाये जिसके सुनने से मनुष्य के सारे पापो का अंत हो जाता है। तब भगवान गोविन्द ने कहा – हे राजन पाण्डु पुत्र युधिष्ठिर मैं तुम्हारे समक्ष एक ऐसी कथा का वर्णन करता हूँ जिसके श्रवण मात्र से मनुष्य के सारे पाप क्षण मात्र में नष्ट हो जाते है।

 

 

 

भगवान श्री कृष्ण द्वारा वर्णित कथा इस प्रकार है – त्रेता युग में बलि नामक दैत्य था। वह वेद रीति और नियम से भगवान श्री कृष्ण की पूजा किया करता था। वह भगवान श्री कृष्ण का उपासक और परम भक्त था। वह राजा बलि देवराज इंद्र से बैर रखता था तथा इंद्र को परास्त करके इंद्रलोक तथा सभी देवताओ को जीतकर उनके ऊपर अपना अधिकार कर लिया था।

 

 

 

दैत्यराज बलि सदैव ही यज्ञ आदि के साथ ब्राह्मणो का पूजन किया करता था। सभी देवता बलि की त्रास से दुखित होकर भगवान विष्णु के पास आये। देवगुरु बृहस्पति के साथ सभी देवताओ ने भगवान विष्णु की स्तुति किया। भगवान विष्णु ने पूछा – कहिए देवगण! यहां किस कारण से आना हुआ।

 

 

 

तब देवगुरु बृहस्पति के साथ सभी देवगण बोले – हे सर्वज्ञ, समर्थ भगवान, नारायण आप तो सबके मन की बात जानने वाले अन्तर्यामी है। हम सभी देवताओ को दैत्यराज बलि ने पराजित करके इंद्रलोक पर अधिकार कर लिया है। उसके त्रास के डर से हम लोग इधर-उधर भटकने पर मजबूर है अब केवल आप ही हमारी सहायता कर सकते है।

 

 

 

भगवान विष्णु ने कहा – हे देवगण! आप निराश न हो आपकी सहायता करने के लिए मैं ‘वामन‘ रूप धारण करूँगा। भगवान विष्णु से आश्वासन प्राप्त करने के बाद देवगुरु बृहस्पति के साथ सभी देवगण चले गए। भगवान विष्णु ने ऋषि कश्यप तथा देवमाता अदिति के यहां ‘वामन‘ रूप में अवतार लिया।

 

 

 

कुछ समय के बाद भिक्षाटन करते हुए वामन रूपधारी विष्णु दैत्यराज बलि के राज दरबार में आ गए। वामन के अद्भुत तेज को देखकर दैत्यराज बलि बहुत प्रभावित हुआ और बोला – हे विप्र! मैं आपके इस अद्भुत तेज के सामने नत मस्तक हूँ। आप कोई पुण्यात्मा प्रतीत होते है।

 

 

 

आपको जिस किसी वस्तु की आवश्यकता हो आप मुझसे निःसंकोच कह सकते है। विप्र वामन बोले – हे दैत्यराज बलि! पहले आपको वचन देना होगा कि हमे इच्छित वस्तु अवश्य ही प्रदान करेंगे। दैत्यराज बलि ने कहा – हे विप्र वामन! मैं वचन बद्ध होकर प्रतिज्ञा करता हूँ कि आपकी इच्छित वस्तु अवश्य ही दूंगा।

 

 

 

इतने में दैत्यगुरु शुक्राचार्य वहां आ गए उन्होंने अपनी तप विद्या से ज्ञात कर लिया कि यह विप्र वामन कोई और नहीं बल्कि भगवान विष्णु स्वयं है। अतः उन्होंने अपने शिष्य दैत्यराज बलि को सावधान करते हुए कहा कि तुम संकल्प मत करो अन्यथा तुम्हे हानि उठानी पड़ेगी।

 

 

 

दैत्यराज बलि ने कहा – गुरुदेव! अब हानि हो या लाभ मैंने इन विप्र वामन को इनकी इच्छित वस्तु देने का संकल्प कर लिया है। भगवान श्री कृष्ण ने कहा – मैंने संकल्प कराकर राजा बलि को जीत लिया फिर उससे तीन पग भूमि देने के लिए कहा।

 

 

 

विप्र वामन की तीन पग भूमि की मांग पूरी करने के लिए दैत्यराज बलि सहर्ष तैयार हो गया। तब वामन रूपधारी विष्णु ने अपने त्रिविक्रम रूप को बढ़ाते हुए एक पग में सारी पृथ्वी तथा दूसरे पग में स्वर्ग को नाप दिया फिर दैत्यराज बलि से कहा – हे राजन! तीसरा पग रखने के लिए कही जगह नहीं बची है मैं अपना तीसरा पग कहां रखूं।

 

 

 

तब दैत्यराज बलि ने कहा – आप हमारे सिर के ऊपर तीसरा पग रख दीजिए। वामन रूपधारी त्रिविक्रम भगवान विष्णु ने जैसे ही दैत्यराज बलि के सिर के ऊपर अपना पैर रखा वह तुरंत ही पाताल लोक में चला गया। भगवान विष्णु के त्रिविक्रम रूप को देखकर दैत्यराज बलि ने क्षमा मांगते हुए प्रार्थना किया फिर बोला आप सदैव ही मेरे साथ विराजिए। भगवान विष्णु ने दैत्यराज की भक्ति देखकर बोले – राजन! मैं सदैव तुम्हारे समक्ष ही रहूंगा।

 

 

 

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पुस्तक का नाम  Parivartini Ekadashi Katha Hindi PDF
पुस्तक के लेखक 
भाषा   हिंदी 
साइज  0.15 Mb 
पृष्ठ 
श्रेणी  व्रत कथा

 

 

 

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