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101 + पंचतंत्र की कहानी Pdf / Panchtantra ki Kahani in Hindi Pdf

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Panchtantra ki Kahani in Hindi Pdf Download

 

 

 

उस समय आपने ब्रह्मा जी के तथा दूसरे देवताओ के महान दुःख का निवारण किया था। तदनन्तर पिता से अनादर पाकर अपनी की हुई प्रतिज्ञा के अनुसार आपने शरीर को त्याग दिया और स्वधाम में पधार आयी। इससे भगवान हर को भी बड़ा दुःख हुआ।

 

 

 

महेश्वरी! आपके चले आने से देवताओ का कार्य पूरा नहीं हुआ। अतः हम देवता और मुनि व्याकुल होकर आपकी शरण में आये है। महेशानि! शिवे! आप देवताओ का मनोरथ पूर्ण करे जिससे  सनत्कुमार का वचन सफल हो।

 

 

 

देवी! आप भूतल पर अवतीर्ण हो पुनः रुद्रदेव की पत्नी होइए और यथायोग्य ऐसी लीला कीजिए जिससे देवताओ को सुख प्राप्त हो। देवी! इससे कैलास पर्वत पर निवास करने वाले रूद्र देव भी सुखी होंगे। आप ऐसी कृपा करे जिससे सब सुखी हो और सबका सारा दुःख नष्ट हो जाय।

 

 

 

ब्रह्मा जी कहते है – नारद! ऐसा कहकर विष्णु आदि सब देवता प्रेम में मग्न हो गए और भक्ति भाव से विनम्र होकर चुपचाप खड़े रहे। देवताओ की यह स्तुति सुनकर शिवा देवी को भी बड़ी प्रसन्नता हुई। उसके हेतु का विचार करके अपने प्रभु शिव का स्मरण करती हुए भक्त वत्सला दयामयी उमा देवी उस समय विष्णु आदि देवताओ को संबोधित करके हंसकर बोली।

 

 

 

हे हरे! हे विधे! और हे देवताओ तथा मुनियो! तुम सब लोग अपने मन से व्यथा को निकाल दो और मेरी बात सुनो। मैं तुम पर प्रसन्न हूँ इसमें संशय नहीं है। सब लोग अपने-अपने स्थान को जाओ और चिरकाल तक सुखी रहो। मैं अवतार ले मेना की पुत्री होकर उन्हें सुख दूंगी और रुद्रदेव की पत्नी हो जाउंगी।

 

 

 

यह मेरा अत्यंत गुप्त मत है। भगवान शिव की लीला अद्भुत है। वह ज्ञानियों को भी मोह में डालने वाली है। देवताओ! उस यज्ञ में जाकर पिता के द्वारा अपने स्वामी का अनादर देख जब से मैंने दक्ष जनित शरीर को त्याग दिया है तभी से वे मेरे स्वामी कालाग्नि रुद्रदेव तत्काल दिगंबर हो गए।

 

 

 

वे मेरी ही चिंता में डूबे रहते है। उनके मन में यह विचार उठा करता है कि धर्म की जानने वाली सती मेरा रोष देखकर पिता के यज्ञ में गयी और वहां मेरा अनादर देख मुझमे प्रेम होने के कारण उसने अपना शरीर त्याग दिया। यही सोचकर वे घर बार छोड़ अलौकिक वेश धारण करके योगी हो गए।

 

 

 

मेरी स्वरुपभूता सती के वियोग को वे महेश्वर सहन न कर सके। देवताओ! भगवान रूद्र की यह अत्यंत इच्छा है कि भूतल पर मेना और हिमाचल के घर में मेरा अवतार हो क्योंकि वे पुनः मेरा पाणिग्रहण करने की अधिक अभिलाषा रखते है।

 

 

 

अतः मैं रूद्र देव के संतोष के लिए अवतार लूंगी और लौकिक गति का आश्रय लेकर हिमालय पत्नी मेना की पुत्री होउंगी। ब्रह्मा जी कहते है – नारद! ऐसा कहकर जगदंबा शिवा उस समस्त देवताओ के देखते-देखते ही अदृश्य हो गयी और तुरंत अपने लोक में चली गयी।

 

 

 

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