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One Indian Girl Pdf Hindi Read Online



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श्री कृष्ण अर्जुन से कह रहे है – सतोगुणी व्यक्ति क्रमशः उच्च लोको को ऊपर जाते है। रजोगुणी व्यक्ति इसी प्रकार पृथ्वी लोक में ही रह जाते है और जो व्यक्ति अत्यंत गर्हित तमोगुण में स्थित होते है वह नीचे नरकलोक को जाते है।
उपरोक्त शब्दों का तात्पर्य – इस श्लोक में तीनो गुणों के कर्मो के फल को बताया गया है। यहां पर निम्नतम गुण तमोगुण को अत्यंत ही गर्हित (जघन्य) कहा गया है।
अज्ञानता तमोगुण विकसित करने का परिणाम भयावह होता है। यहां पर तामसाः शब्द अत्यंत सार्थक है। यह उनका सूचक है जो उच्चतर गुणों तक ऊपर न उठकर निरंतर तमगुण में ही बने रहते है।
ऐसे मनुष्यो का भविष्य अत्यंत ही अंधकार से पूर्ण रहता है। जीवो में जिस मात्रा में सतोगुण विकास होता है। उसी के अनुसार उसे विभिन्न स्वर्गलोक में भेज दिया जाता है।
ऊपर के लोको या स्वर्ग लोक में प्रत्येक व्यक्ति अत्यंत उन्नत होता है। सर्वोच्च लोक को सत्यलोक या ब्रह्मलोक कहा जाता है। जहां पर ब्रह्माण्ड के प्रधान व्यक्ति ब्रह्माजी का निवास स्थान है।
हम पहले ही देख चुके है कि ब्रह्म लोक में जिस प्रकार की जीवन की आश्चर्य जनक परिस्थित है उसका अनुमान करना कठिन है तो भी सतोगुण नामक जीवन की सर्वोच्च अवस्था हमे वहां तक पहुंचा सकती है।
इस पृथ्वी पर स्थित रजोगुणी व तमोगुणी लोग बल पूर्वक या किसी मशीन के द्वारा उच्चतर लोको में नहीं पहुंच सकते है। रजोगुण में स्थित होने पर यह संभावना बनी रहती है कि अगले जीवन में कोई भी प्रमत्त हो जाये।
रजोगुण का मिश्रित होता है। इसकी स्थिति सतोगुण तथा तमोगुण के मध्य की होती है। मनुष्य सदैव शुद्ध नहीं होता है। लेकिन यदि वह पूर्णतया रजोगुणी हो तो वह इस पृथ्वी पर केवल राजा या धनी व्यक्ति के रूप में रहता है लेकिन गुणों का मिश्रण होते रहने से वह नीचे भी आ सकता है।
तमोगुणी, रजोगुणी लोगो के लिए सतोगुणी बनने का सुअवसर है और यह अवसर कृष्ण भावनामृत की विधि से प्राप्त हो सकता है। लेकिन जो इस सुअवसर का लाभ उठाने में विफल रहता है। ऐसा व्यक्ति सदैव ही निम्नतर गुणों में बंधने के लिए विवश रहेगा।
वही नीति में निपुण है वही परम बुद्धिमान है उसने ही वेदो के सिद्धांत को भली प्रकार से जान लिया है। वही कवि, वही विद्वान, वही रणधीर है। वह देश धन्य है जहां श्री गंगा जी है। वह स्त्री धन्य है जो पतिव्रत धर्म का पालन करती है। वह राजा धन्य है जो न्याय करता है और वह ब्राह्मण धन्य है जो अपने धर्म से नहीं डिगता है।
वह धन धन्य है जो दान देने में व्यय होता है और जिसकी पहली गति होती है। धन की तीन गतियां होती है दान, भोग, नाश। दान उत्तम है, भोग मध्यम है और नाश नीच गति है। जो पुरुष न देता है न भोगता है उसके धन की तीसरी गति होती है। वही बुद्धि धन्य और परिपक़्व है जो पुण्य में लगी हुई है। वह समय धन्य है जब सत्संग हो और वही जन्म धन्य है जिसमे ब्राह्मण की अखंड भक्ति हो।
दोहा का अर्थ-
हे उमा! सुनो, वह कुल धन्य है संसार के लिए पूज्य है और परम पवित्र है जिसमे श्री रघुवीर परायण अनन्य रामभक्त विनम्र पुरुष उत्पन्न हो।
चौपाई का अर्थ-
मैंने अपनी बुद्धि के अनुसार ही यह कथा कही यद्यपि पहले इसको छिपाकर रखा था। जब तुम्हारे मन में प्रेम की अधिकता देखी तब मैंने श्री रघुनाथ जी की यह कथा तुमको सुनाई। यह कथा धूर्त, शठ लोगो से नहीं कहनी चाहिए। हथि स्वभाव वाले तथा जो श्री हरि की कथा को मन लगाकर नहीं सुनते हो।
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