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Most powerful Mantras pdf / शक्तिशाली मन्त्र पीडीऍफ़
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सिर्फ पढ़ने के लिए
3- ईश्वर की आज्ञा सबके ही सिर पर है, उत्पत्ति, स्थिति (पालन) और लय और अमृत और विष सब उसके अधीन है। हे देवी – मोह वश सोच करना व्यर्थ है। विधाता का प्रपंच ऐसी ही अचल और अनादि है।
4- महाराज के रहने और जाने की बात याद करके हृदय में जो चिंता करती है। वह तो हे सखी! वह तो अपने हित की हानि देखकर (स्वार्थ वश) करती है।
सीता जी की माता ने कहा – आपका कथन उत्तम और सत्य है। आप तो पुण्यात्माओं के सीमा रूप अवधपति महाराज दशरथ जी की ही रानी तो है फिर भला आप ऐसा क्यों न कहेंगी।
282- दोहा का अर्थ-
कौशल्या जी ने दुःख भरे हृदय से कहा – श्री राम, लक्ष्मण और सीता वन में जाए, इसका परिणाम तो अच्छा ही होगा बुरा नहीं। मुझे तो भरत की चिंता है।
चौपाई का अर्थ-
1- ईश्वर के अनुग्रह और आपके आशीर्वाद से मेरे चारो पुत्र और बहुए गंगा जी के जल के समान पवित्र है। हे सखी! मैंने कभी श्री राम जी की सौगंध नहीं की, परन्तु आज श्री राम जी की शपथ करके सत्य भाव से कहती हूँ।
2- भरत की शील, गुण, नम्रता, बड़प्पन, भक्ति, भरोसे और अच्छेपन का वर्णन करने में सरस्वती जी की बुद्धि भी हिचकती है। सीप से कही समुद्र उलीचे जा सकते है।
3- मैं भरत को सदा कुल का दीपक जानती हूँ। महाराज ने भी बार-बार मुझे यही कहा था। सोना को कसौटी पर कसने और रत्न पारखी (जौहरी) के मिलने पर ही पहचाना जा सकता है। वैसे ही पुरुष की परीक्षा उसके स्वभाव को देखकर समय आने पर हो जाती है।
4- किन्तु आज मेरा ऐसा कहना भी अनुचित है, शोक और स्नेह में विवेक कम हो जाता है। लोग कहेंगे कि मैं स्नेह वश ही भरत की बड़ाई कर रही हूँ। कौशल्या जी की गंगा के समान पवित्र वाणी सुनकर सब रानियां विकल हो उठी।
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