Manusmriti Pdf in Hindi जब भी हम Manusmriti in Hindi के बारे में सोचते है तो बार-बार मन होता है कि मनुस्मृति क्या है ? क्यों इसमें कुछ विवाद है, तो आइये जानते है मनुस्मृति के बारे में। आप Manusmriti Book नीचे की लिंक से फ्री डाउनलोड कर सकते हैं।
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मनुस्मृति क्या है?
मनुस्मृति के बारे में बहुत से लोगों ने सुना होगा, लेकिन उसे पढ़ने और समझने की किसी ने जरूरत नहीं समझी होगी। सिर्फ बनी – बनाई बातों को सुनकर, तमाम तरह की भ्रांतियों को सुनकर अपनी राय बना ली होगी।
जब तक आप किसी चीज को पढ़ेंगे नहीं, उसे समझेंगे नहीं, आप उसके बारे में क्या जान पाएंगे ? आप पहले मनुस्मृति को पढ़िए, फिर आप इसे जान पाएंगे।
मनुस्मृति के बारे में तमाम तरह की अफवाहे बनाई गयी हैं और अफवाहें उन्ही के खिलाफ बनाई जाती हैं, जिनका आप मुकाबला नहीं कर सकते हैं।
मनुस्मृति एक बहुत ही श्रेष्ठ ग्रन्थ है। आप इसे जरूर पढ़ें और Manusmriti Pdf Hindi को डाउनलोड कर उसके बारे में विस्तार से अवश्य ही जानिये, जिससे जरूरत के समय आप अपने विचार पूरी तरह से रख सके और सामने वाले के झूठ के पुलिंदे को ख़त्म कर सकें।
मनुस्मृति हिन्दू धर्म का एक बहुत ही प्राचीन धर्मशास्त्र है। इसे मनु संहिता के नाम से भी जाना जाता है। इस धर्म शास्त्र में मनु के वह उपदेश है जो उन्होंने ऋषिओं को दिए है। शंकराचार्य, शबरस्वामी जैसे बड़े दार्शनिक भी प्रमाण स्वरूप इस ग्रंथ का उल्लेख करते है।
हांलाकि यह माना जाता है कि यह मनुस्मृति स्वयंभुव मनु द्वारा रचित है, ना कि वैवस्वत मनु द्वारा। इसी तरह से भार्गवीया मनुस्मृति और नारदीया मनुस्मृति भी प्रचलित है। मनुस्मृति की मान्यता पूरे विश्व में है।
भारत के साथ ही विदेशों में भी इसके प्रमाणों के आधार पर निर्णय होते रहे है और आज भी होते है। मनुस्मृति के चारों वर्ण, चारो आश्रम, सोलह संस्कार, सृष्टि की उत्पत्ति, समाज संचालन की व्यवस्था पर परामर्श दिये गये है।

एक तरह से समाज के संचालन के लिये जो व्यवस्थायें दी गयी है, उन सबका संग्रह मनुस्मृति में है। आप मनुस्मृति को मानव समाज का प्रथम संविधान कह सकते है।
महर्षि मनु कहते है, ” धर्मो रक्षति रक्षितः ” अर्थात जो धर्म की रक्षा करता है। धर्म उसकी रक्षा करता है और इसे आज की भाषा में कहे तो जो कानून की रक्षा करता है कानून उसकी रक्षा करता है।
मनुस्मृति के बारे जरुरी प्रश्नो के उत्तर नीचे हैं——
मनुस्मृति में कितने अध्याय हैं ?
मनुस्मृति में 12 अध्याय हैं और इसमें 2684 श्लोक हैं, लेकिन कहीं - कहीं श्लोकों की संख्या 2964 है।
मनुस्मृति कब लिखी गयी ?
इस बारे में पूर्णतः जानकारी नहीं है, परन्तु इतिहासकारों के अनुसार मनुस्मृति लगभग 12,220 ईसा पूर्व लिखी गयी है।
मनुस्मृति के लेखक कौन हैं ?
मान्यता है कि मनुस्मृति के लेखक महर्षि भृगु हैं, क्योंकि प्रत्येक अध्याय के अंत में उनका नाम है, लेकिन नारद स्मृति में उल्लेख है कि मनुस्मृति के लेखक सुमति भार्गव हैं।
मनुस्मृति क्यों जलाई गयी ?
इतिहास गवाह है कि किसी भी किताब को जलाने का दो ही उद्देश्य होता है, पहला - वह किताब जिस विचारधारा से प्रभावित है उस विचारधारा को नष्ट किया जाए और दूसरा प्रतीकात्मक उस किताब या उसके किसी अंश के विरोध में।
मनु कितने थे?
कहा जाता है कि मनु कुल में आगे चलकर स्वयंभू मनु को लेकर कुल 14 मनु हुए।
मनु का जन्म कब हुआ था ?
हिन्दू धर्म के अनुसार राजा वैवस्वत मनु का जन्म 6382 विक्रम संवत अर्थात 6324 ईसा पूर्व हुआ था।
मनु के कितने पुत्र थे ?
मनु के दो पुत्र और तीन पुत्रियां थी।
मनुवाद की परिभाषा क्या है ?
मनुवाद में समाज के संचालन की जो व्यवस्था दी गयी है, उसे ही मनुवाद कहते हैं।
क्या मनु ब्राह्मण थे?
उस समय जाती व्यवस्था ना होकर वर्ण व्यवस्था थी और व्यक्ति अपनी योग्यता और सामाजिक रुझान की वजह से एक वर्ण से दूसरे वर्ण में गिना जाता था।
मनुस्मृति किताब कहां से खरीदें
मनुस्मृति ग्रंथ गीता प्रेस गोरखपुर या फिर गायत्री परिवार से ही खरीदे। अन्य कई प्रकाशनो में या अन्य जगहों पर शायद कुछ बदलाव करके मनुस्मृति का भ्रामक प्रचार किया जाता है। आप अन्य प्रतिष्ठित प्रकाशनो से भी मुनस्मृति खरीद सकते है।
मनुस्मृति के अनुसार यज्ञ के प्रकार और अर्थ Original Manusmriti in Hindi Pdf
यज्ञ का अर्थ कई अवसरों पर व्यापक रूप में मिलता है। सामान्यतः देवताओ की वैदिक मंत्रो के साथ की जाने वाली स्तुति होती है।
यज्ञ शब्द का अर्थ मनुष्य से अपेक्षित कर्मो को इंगित करता है। जिसे हवन कुंड में प्रज्वलित अग्नि आहुति देकर मंत्रोच्चार के द्वारा संपन्न किया जाता है।
हवन कुंड में आहुति देने वाली वस्तु को हवि या हव्य कहते है। हवि, घी, तिल, चंदन लकड़ी का चूरा इत्यादि को कहते है। मनुस्मृति के अनुसार मनुष्य अपने दैनिक जीवन में छोटे-मोटे पाप जाने अनजाने में अवश्य करता है। मनुस्मृति के अनुसार मनुष्य अपने जीवन यापन के आवश्यक कार्यो में प्रयुक्त होने के लिए मनुष्य से कई छोटे-छोटे पाप कर्म अवश्य हो जाते है और मनुष्य पाप का भागीदार बन जाता है।
मनुस्मृति में वर्णित है कि इन पापो की भरपाई मनुष्य अपने सत्कर्मो से कर सकता है। स्मृति कार ने इन सत्कर्मो को पंच महायज्ञ की संज्ञा प्रदान किया है। यहां पांच यज्ञो का उल्लेख किया गया है।
1) ब्रह्म यज्ञ – इस यज्ञ में लोगो को ज्ञान द्वारा शिक्षित करना मनुष्यो में उचित अनुचित का बोध कराना और आत्म चिंतन के लिए मनुष्य को प्रेरित करना मुख्य कार्य है।
2) पितृ यज्ञ – मनुस्मृति में कहा गया है कि तर्पण के द्वारा संपन्न कार्य को पितृ यज्ञ कहते है और तर्पण का आशय यह है कि जिस कार्य से कोई तृप्त हो जाय। जैसे : पितरो के निमित्त किया हुआ दान और प्रतिदिन पितरो का स्मरण करना और उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करना तर्पण की श्रेणी में आते है।
3) देव यज्ञ – मनुस्मृति में कहा गया है कि प्रज्वलित अग्नि में मंत्रोच्चार के साथ जो हवि या हव्य सौपी जाती है उसे देव यज्ञ कहते है। ऐसी मान्यता है कि हवन के द्वारा समर्पित सामग्री यज्ञ से संबंधित देवता को प्राप्त होती है।
4) भूत यज्ञ – भूत का अर्थ है भौतिक देह धारी प्राणी जो व्यक्ति अपने जीवन में किसी न किसी प्रकार से पशु, पक्षी, कुत्ते, बिल्ली जैसे अनेक प्राणियों को भोजन देने का किसी भी तरह प्रयास करता है उसे भूत यज्ञ कहते है। मनुष्य को चाहिए कि वह केवल अपने लिए ही भोजन की व्यवस्था न करे बल्कि उन मूक प्राणियों के लिए थोड़ी व्यवस्था करना मनुस्मृति के अनुसार अनिवार्य है। इस क्रिया को मनुस्मृति में ‘बलि’ कहा गया है।
5) नृयज्ञ (अतिथि सत्कार) – मनुस्मृति में ‘अतिथियों’ के सत्कार को ही अतिथि देवो भवः की संज्ञा प्रदान की गई है। इसे ही ‘नृयज्ञ’ कहा जाता है। लेकिन आज के इस समय में सभी लोग अपने स्वार्थ में और शंकालु होने के कारण एक दूसरे से स्वतः ही दूर हो जा रहे है। भूखे और रोग ग्रस्त व्यक्ति के घर के प्रवेश द्वार पर याचना करने पर उसकी सहायता करना अतिथि सत्कार (यज्ञ) माना जाता है। जिसे नृयज्ञ भी कहते है।
Manusmriti in Hindi मनुस्मृति हिंदी में
मनुस्मृति हिन्दू धर्म का एक प्राचीन धर्मशास्त्र है या यू कहे एक स्मृति है। मनुस्मृति को मनुसंहिता मानव धर्मशास्त्र के नाम से भी जाना जाता है। तमाम धर्मशास्त्रीय ग्रंथकारो के साथ ही शंकराचार्य और शबर स्वामी जैसे प्रख्यात दार्शनिक भी अपने लेखो में मनुस्मृति को कोट (उद्घृत) करते है।
वर्तमान में प्रचलित मनुस्मृति महर्षि भृगु द्वारा उपवर्धन किया गया है और इसे “भार्गवीया मनुस्मृति” कहा जाता है और इसी तरह से “नारदिया मनुस्मृति” भी प्रचलित है। भारत में वेदो के बाद सर्वाधिक प्रचलित “मनुस्मृति” ही है।
मनुस्मृति सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि विदेशो में भी विख्यात है और इसपर अनेको शोध हो चुके है। मनुस्मृति में चारो वर्ण, चारो आश्रम, सोलहो संस्कार, सृष्टि की उत्पत्ति, राजा के कर्तव्य, शासन व्यवस्था, सेना के प्रबंध, जीवन के तमाम विवादों का निवारण किया गया है।
मनुस्मृति भारत की संस्कृति का अभिन्न अंग है। इसकी गणना ऐसे ग्रंथो में की जाती है जिसमे मानव के आचरण और समाज की रचना की विस्तृत व्याख्या की गई है।
एंटानी रीड के अनुसार वर्मा (म्यांमार), थाईलैंड, कम्बोडिया और जावा बाली में मनुस्मृति का बहुत आदर था। वहां के लोग चाहते थे कि उनका राजा इसके अनुसार ही कार्य करे और इसके तमाम नियम को अनुवादित करके वहां के स्थानीय कानूनों में शामिल किया गया।
‘बाइबिल इन इंडिया’ के लेखक “लुईस जैकोलिऑट (Louis Jacolliot) लिखते है कि मिस्र, पार्सिया, ग्रेसियत और रोमन की क़ानूनी संहिताओं में मनुस्मृति की झलक देखी जा सकती है।
आखिर क्या है मनुस्मृति में ( विशुद्ध मनुस्मृति PDF )
मनुस्मृति में 12 अध्याय और लगभग 2500 श्लोक है। इसमें सृष्टि की उत्पत्ति से लेकर दैनिक क्रिया कलापो के नियम दिए गए है।
1. सृष्टि की उत्पत्ति
2. संस्कार विधि, व्रतचर्या, उपचार
3. स्नान, विवाह लक्षण, महायज्ञ, श्राद्ध कल्प
4. वृत्ति लक्षण, स्नातक व्रत
5. भक्ष्या भक्ष्य, शौच, अशुद्धि, स्त्री धर्म
6. गृहस्थाश्रम, वानप्रस्थ, मोक्ष, सन्यास
7. राजधर्म
8. कार्य विनिर्णय, साक्षि प्रश्नविधान
9. स्त्रीपुंसधर्म, विभाग धर्म, धूत, कंटकशोधन, वैश्यशुद्रोपचार
10. संकीर्ण जाति, आपधर्म
11. प्रायश्चित
12. संसारगति, कर्म, कर्मगुणादोष, देशजाति, कुलधर्म, निश्रेयस।
वेदो के बाद मनुस्मृति कितनी पुरानी है ?
अगर वेदो को कोई अच्छे से समझता या फिर समझाता है तो वह मनुस्मृति ही है। मनुस्मृति महाभारत और रामायण से भी पुरानी है। इतिहासकारो के अनुसार महाभारत का रचनाकाल आज से लगभग 5165 वर्ष पूर्व माना जाता है और आधुनिक शोध के अनुसार रामायण काल लगभग 7128 वर्ष पुरानी है और दोनों ही ग्रंथो में मनुस्मृति के बारे में उल्लेख मिलता है। लेकिन मनुस्मृति में इन ग्रंथो का उल्लेख नहीं है अर्थात मनुस्मृति इन ग्रंथो से पहले ही लिखी गई है।
मनुस्मृति किताब कहां से खरीदें
मनुस्मृति ग्रंथ गीता प्रेस गोरखपुर या फिर गायत्री परिवार से ही खरीदे। अन्य कई प्रकाशनो में या अन्य जगहों पर शायद कुछ बदलाव करके मनुस्मृति का भ्रामक प्रचार किया जाता है। आप अन्य प्रतिष्ठित प्रकाशनो से भी मुनस्मृति खरीद सकते है।
ऊपर दी गयी लिंक से भी आप मनुस्मृति खरीद सकते हैं या फिर Manusmriti Hindi PDF फ्री डाउनलोड कर सकते हैं।
मनुवाद और मनुस्मृति में क्या अंतर है ?
मनु कहते है – जन्मना जायते शुद्रः कर्मणा द्विज उच्यते अर्थात जन्म से सभी शुद्र होते है लेकिन अपने कर्मो से वे ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शुद्र बनते है। इस समय मनुवाद को नकारात्मक और द्वेष पूर्ण तरीके से लिया जा रहा है। असलियत तो यह है मनुवाद की रट लगाने वाले लोग ना तो मनु के बारे में जानते है और ना ही मनुस्मृति के बारे में।
मनुस्मृति को खासकर जाति व्यवस्था के लिए दोषी माना जाता है जबकि मनुस्मृति में जाति व्यवस्था है ही नहीं। मनुस्मृति वर्ण व्यवस्था को मानता है।
मनुवाद क्या है?
आप अक्सर मनुवाद का नाम सुनते है तो आपके मन में भी यह प्रश्न उठता होगा कि आखिर मनुवाद है क्या ? मनुस्मृति के अनुसार महर्षि मनु ही पृथ्वी पर पहले मानव हुए और आज के समय के मनुष्य उन्ही की संतान है। मनुस्मृति में समाज संचालन की जो व्यवस्थाए दी गई है उन्हें ही आम बोलचाल में मनुवाद कहा गया है।
क्या मनुस्मृति जाति व्यवस्था को बढ़ावा देती है ?
मनुस्मृति के समय जाति व्यवस्था नहीं बल्कि वर्ण व्यवस्था थी। उस समय अपने कर्मो के आधार पर और कार्य की रूचि के आधार पर लोग जिस कार्य को चुनते थे उन्हें उसी वर्ण का कहा जाता था।
मनुस्मृति के अनुसार ये चीजे मिले, ख़ुशी से करे स्वीकार
Manusmriti के अनुसार अगर यह 4 चीजे आपको मिल रही है तो सहजता से ख़ुशी-ख़ुशी स्वीकार कर लेनी चाहिए।
विद्या – मनुस्मृति के अनुसार ज्ञान आपको जहां से भी प्राप्त हो, जैसे भी प्राप्त हो, ले लेना चाहिए। मनुष्य को हमेशा कुछ ना कुछ सीखते रहन चाहिए। जो व्यक्ति हमेशा सीखता, हर चीज से सीखता है वह सदैव आगे बढ़ता है।
रत्न – रत्न बहुत शुभ होते है। यह ग्रह दोषो को दूर करते है और हीरा जैसे वेशकीमती रत्न कोयले की खान से निकलता है। इसीलिए मनुस्मृति के अनुसार रत्न जहां से भी मिले ले लेना चाहिए।
पवित्रता – पवित्रता मात्र शरीर से नहीं वरन आचार-विचार और व्यवहार और सोच भी पवित्र होनी चाहिए। इसीलिए मनुस्मृति में कहा गया है कि पवित्र विचार चाहे जहां से मिले ले लेना चाहिए।
उपदेश – यदि आप कही जा रहे हो और कोई संत महात्मा उपदेश दे रहे हो तो वहां जरूर रुकना चाहिए। संतो के उपदेश आपके जीवन में सहायक ही होते है। इसीलिए आपको उपदेश जहां से भी मिले ले लेना चाहिए।
आखिर मनुस्मृति को इतनी प्रसिद्धि कैसे मिली ?
पंजाब यूनिवर्सिटी में इतिहास पढ़ाने वाले राजीव लोचन बताते हैं कि जब ब्रिटिश लोग भारत आये और यहां अधिकार ज़माना शुरू किया तो उन्होंने देखा कि मुस्लिमों के पास कानून की किताब के रूप में शरिया है तो वहीँ हिन्दुओं के पास भी मनुस्मृति है।
अब अंग्रेजों ने इसे ही आधार बनाकर इसी के अनुसार गुनाहों का दंड देना शुरू कर दिया और इसके साथ ही काशी के पंडितों ने भी अंग्रेजों से कहा कि इसे हिन्दुओं के कानूनी किताब के रूप में प्रचारित – प्रसारित करें और तभी से यह धारणा बन गयी कि यह हिन्दुओं के प्रमुख ग्रंथों में से एक है और तभी से इसे लोकप्रियता हासिल हुई।
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