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Maithili Sharan Gupt Books Free Pdf
मैथिलि शरण गुप्त के बारे में
माता भारती के अमर सपूतो में एक नाम राष्ट्रकवि ‘मैथिलि शरण गुप्त’ का भी है। जिनकी रचनाओं से मनुष्य की निराशा दूर होकर आशा का संचार जगे वह राष्ट्रकवि ‘मैथिली शरण’ ही है। मैथिलि शरण गुप्त के ऊपर ‘मैथिली ‘ की कृपा अवश्य ही थी जो उन्हें राष्ट्रकवि के रूप में प्रतिष्ठित कर दिया। गुप्त जी के पांच नाटक मौलिक रूप से श्रीजीत किए गए है।
1- अनघ।
2- चन्द्रहास।
3- तिलोत्तमा।
4- निष्क्रिय।
5- प्रतिरोध और विसर्जन है।
इनका जन्म सन 1886 में 3 अगस्त को झाँसी ‘उत्तर प्रदेश’ में हुआ था। गुप्त जी खड़ी बोली में कविता लिखने वाले अग्रणी और महत्वपूर्ण कवि है। वरिष्ठ होने के कारण स्थानीय भाषा में ‘दद्दा’ कहकर सम्बोधित और सम्मान करते थे।
वर्तमान और भावी दुर्दशा से उबरने के लिए और स्वदेश प्रेम को दर्शाते हुए गुप्त जी के द्वारा रचित ‘भारत-भारती’ एक सफल प्रयोग कहना अतिशयोक्ति न होगी। गुप्त जी के लिखे हुए ‘काव्यात्मक कृति’ की प्रस्तुति को किसी भी शोध से कमतर नहीं आंका जा सकता है।
12 दिसंबर 1964 को भारतीय साहित्य का प्रदीप्त नक्षत्र सदा के लिए अस्त हो गया। लेकिन अपनी अमर लेखनी से भारतीय साहित्य के इतिहास में दीपक की तरह ही आलोकित होकर अपनी अमिट छाप साहित्य प्रेमियों के हृदय में छोड़ गया।
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सिर्फ पढ़ने के लिए
अर्जुन कहता है कि – आप परम भगवान, परम धाम, परम पवित्र, परम सत्य है। आप नित्य, दिव्य, आदि पुरुष, अजन्मा तथा महानतम है। नारद, देवल, असित, व्यास आदि ऋषि आपके इस सत्य की पुष्टि करते है और अब आप स्वयं मुझसे प्रकट कह रहे है।
उपरोक्त शब्दों का तात्पर्य – वेदो में परमेश्वर को परम पवित्र माना गया है। जो व्यक्ति कृष्ण को परम पवित्र मानता है वह समस्त पाप कर्मो से शुद्ध हो जाता है।
भगवान की शरण में गए बिना पाप कर्मो से छुटकारा संभव नहीं होता है और पाप के कर्मो से शुद्धि नहीं मिल पाती है। अर्जुन द्वारा कृष्ण को परम पवित्र मानना वेद सम्मत है।
इसकी पुष्टि नारद आदि ऋषियों के द्वारा भी हुई है। यहां पर अर्जुन कृष्ण की कृपा से ही अपने विचार व्यक्त करता है। यदि हम भगवद्गीता को समझना चाहते है तो हमे इन दोनों श्लोको के कथन को स्वीकार करना ही होगा।
यही परंपरा प्रणाली कहलाती है। अर्थात गुरु परंपरा को मानना। यह तथा कथित विद्यालयी शिक्षा के द्वारा संभव नहीं हो सकती है।
परंपरा प्रणाली के बिना भगवद्गीता को नहीं समझा जा सकता है। दुर्भाग्य वश जिन्हे अपनी उच्च शिक्षा का घमंड है। वह वैदिक साहित्य के इतने प्रमाणों के होते हुए भी अपने दुराग्रहों पर ही अड़े रहते है कि कृष्ण एक सामान्य व्यक्ति है।
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