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Mahabharat Ke Lekhak Kaun The ? महाभारत किसने लिखा था ?

मित्रों इस पोस्ट में बताया गया है कि Mahabharat Ke Lekhak Kaun The ? आपको यह पोस्ट बहुत ही पसंद आएगी। इसमें बहुत ही रोचक राजकारी दी गयी है।

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Mahabharat Ke Lekhak Kaun Hai? महाभारत के लेखक कौन थे ?

 

 

 

 

 

 

 

महाभारत के रचयिता वेदव्यास थे और लेखन भगवान श्री गणेश ने किया था। हिन्दू धर्म ग्रंथो को जानने वाला शायद ही कोई होगा जो वेद व्यास यानी कृष्ण द्वैपायन को न जानता हो। पुराण को विभक्त करके उसे चार खंड में विभाजित करने वाले वेद व्यास जी है।

 

 

 

 

उन्होंने वेद को चार खंडो में इसलिए विभक्त किया था कि उस समय के मानव को वेद पढ़ने में कठिनाइयों का सामना नहीं करना पड़े। वेद व्यास ने ही महाभारत काव्य (ग्रंथ) की रचना भी की है।

 

 

 

 

यह ‘महाभारत’ सच में इतना बड़ा था कि उसके लेखन कार्य के लिए वेद व्यास जी को श्री गणेश जी से महाभारत के लेखन के लिए सहायता लेनी पड़ी थी और अद्भुत बात यह है कि ‘महाभारत’ होने के पहले ही महाभारत की लेखनी सम्पूर्ण हो गई थी और जैसा लिखा गया था ‘महाभारत ग्रंथ’ में वैसा-वैसा ही घटित होता चला गया था।

 

 

 

 

वेद व्यास के जन्म की कहानी भी बड़ी विचित्र है। एक बार पराशर ऋषि इस उद्देश्य से तपस्या करने चले गए कि तपस्या के बाद उनके ओज से जिस पुत्र का जन्म होगा वह बहुत प्रतापी राजा होगा या तो बहुत बड़ा तपस्वी।

 

 

 

 

तपस्या के कुछ समय के बाद उन्हें मदन देव ने उन्मत कर दिया। मदन के द्वारा व्यथित होने पर उन्होंने अपने ओज को निकालकर एक पत्ते में रखकर एक कौवे को दे दिया और कह दिया कि इस ‘ओज’ को उनकी पत्नी के पास हस्तांतरित कर दे।

 

 

 

 

कौवा ‘ओज’ को लेकर उड़ा लेकिन नदी पार करते समय उसके चोंच से ‘ओज’ नदी में गिर गया। उस ओज को एक मछली ने खाद्य समझकर निगल लिया था।

 

 

 

 

तब उस मछली को एक मल्लाह ने अपने जाल में फंसाया और उसकी पेट से ही सत्यवती का जन्म हुआ था। मल्लाह ने सत्यवती को अपने पास रखकर उसका पालन पोषण करना शुरू किया।

 

 

 

 

उधर पराशर ऋषि अपनी तपस्या पूर्ण करके अपनी भार्या से मिलने के लिए आतुर हो उठे थे। वह जैसे नदी पार करने के लिए आए तो मल्लाह उस समय भोजन कर रहा था।

 

 

 

 

उसने अपनी उस कन्या को जो मछली के उदर से प्राप्त होने के कारण मत्स्यगंधा कहलाती थी उसे भेज दिया कि जाकर ऋषि को नदी पार करा दे।

 

 

 

 

सत्यवती जब नाव लेकर ऋषि को नदी पार करा रही थी जैसे ही नाव यमुना के बीच धार में गई पराशर ऋषि को ‘मदन’ ने अति व्यथित कर दिया और ऋषि ने मदन के आवेग के आगे हार मानकर उस मल्लाह की पुत्री से प्रणय निवेदन कर दिया।

 

 

 

 

तब मत्स्यगंधा ने कहा, “ऋषिवर आप कुलीन वंश के है मैं आपके योग्य नहीं हूँ और हमारे शरीर से मछली की गंध आ रही है।”

 

 

 

 

मदन आवेग से ग्रस्त। पराशर ऋषि कहां हार मानने वाले थे। उन्होंने अपने तप के बल से मत्स्यगंधा के शरीर से मछली के गंध को हमेशा के लिए ही खत्म कर दिया था।

 

 

 

 

फिर सत्यवती ने खुद को सुरक्षित रखने की गरज से कहा, “ऋषिवर, यहां खुले आकाश से हर कोई दृष्टि गोचर होगा।”

 

 

 

 

तब पराशर ऋषि कुहरे की धुंध चादर अपने तप से उपस्थित कर दिया। तब सत्यवती ने खुद को बचाने की आखिरी कोशिश में एक प्रयास और किया।

 

 

 

 

सत्यवती ने कहा, “ऋषिवर, आप मदन के द्वारा अपने आवेश की पूर्ति करके चले जाएंगे लेकिन हमे समाज क्या कहेगा ?”

 

 

 

 

तब पराशर जी ने कहा, “तुम इसकी चिंता मत करो, तुम्हारा सतीत्व भंग नहीं होगा और तुम सदैव की तरह पवित्र रहोगी।”

 

 

 

 

फिर अपने तप के बल से पराशर जी ने ‘मदन’ की पूर्ति किया जिसके फलस्वरूप वेद व्यास का जन्म हुआ। यमुना नदी का स्थल होने के कारण एक नाम उनका कृष्ण द्वैपायन भी था। इस तरह यह सत्यवती और पराशर ऋषि के पुत्र थे। यह भगवान विष्णु के सत्रहवें कला के अवतार थे।

 

 

 

 

 

विचित्र वीर्य नाम के एक राजा थे। कहा जाता है कि वह भी सत्यवती के पुत्र थे। उस समय विचत्र वीर्य ही हस्तिनापुर के महाराज थे। उनकी दो रानियां थी।

 

 

 

 

 

लेकिन उन्हें कोई संतान नहीं थी और राजा विचित्र वीर्य का निधन हो गया। अब बड़ी विकट समस्या यह थी कि राजवंश कैसे चलेगा।

 

 

 

 

 

तब सत्यवती जो वेद व्यास की माता थी। उसने वेद व्यास से राजवंश के लिए सहायता की याचना की वेद व्यास त्रिकाल दर्शी थे। वह अपने तप बल से हर कार्य को संभव कर सकते थे।

 

 

 

 

उन्होंने अपनी माता से कहा, “जाकर दोनों रानियों को हमारे सामने बिना आवरण के ही उपस्थित करो। मैं अपनी दृष्टि पात से ही राजवंश प्रदान करूँगा।”

 

 

 

 

एक रानी ने अपनी आंख पर पट्टी बांधकर वेद व्यास के सामने उपस्थित हुई थी। उसके ऊपर वेद व्यास ने दृष्टि पात किया कालांतर में उसे एक पुत्र की प्राप्ति हुई जो रानी के आंख पर पट्टी बांधने के कारण ही जन्मांध था।

 

 

 

 

दूसरी रानी ने अपने पूरे बदन पर पीली मिट्टी का आवरण बना रखा था। वेद व्यास ने उसके ऊपर भी दृष्टि पात किया। कालांतर में उसे भी एक पुत्र हुआ जो पीले रंग का अर्थात पाण्ड रोग से ग्रसित था और एक दासी जो उस समय पुत्र की कामना से वेद व्यास के सम्मुख बिना आवरण के उपस्थित हुई थी।

 

 

 

 

 

 

उसे भी एक पुत्र हुआ और वह पुत्र महाभारत में महात्मा विदुर के नाम से जाना गया और उन्ही की बनाई हुई नीति को लोग बिदुर नीति से जानते है।

 

 

 

 

 

जैसे एक या दो पीढ़ियों के बाद मनुष्य के वंश में अवश्य ही बदलाव आता है जो कोई अपने परदादा की याद को जीवित रखता है।

 

 

 

 

उसकी वही पहचान होती है और जो कोई अपने पिता की परम्परा को कायम रखता है उसकी भी वही पहचान होती है। इस कुरु वंश से कौरव जो अपने परदादा की पहचान कायम रखे हुए थे।

 

 

 

 

वह कौरव हुए और जो पाण्ड के पुत्र अपनी पिता की विरासत को आगे ले आए वह पांडव हुए। संजय जो धृतराष्ट्र के साथ रहता था उसे दिव्य दृष्टि वेद व्यास के द्वारा ही प्रदान की गई थी। जिससे वह धृतराष्ट्र को महाभारत की हर बातो से अवगत कराता रहता था।

 

 

 

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