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Lingashtakam Pdf in Hindi Download


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सिर्फ पढ़ने के लिये
दीप, सुंदर ताम्बूल, धूप, नैवेद्य और सुरम्य आरती द्वारा यथोक्त विधि से पूजा करके स्तोत्रों तथा अन्य नाना प्रकार के मंत्रो द्वारा उन्हें नमस्कार करे। फिर अर्घ्य देकर भगवान के चरणों में फूल बिखेरे और साष्टांग प्रणाम करके देवेश्वर शिव की आराधना करे।
फिर हाथ में फूल लेकर खड़ा हो जाय और दोनों हाथ जोड़कर नामांकित मंत्र से सर्वेश्वर शंकर की पुनः प्रार्थना करे। कल्याणकारी शिव! मैं अनजान में अथवा जान बूझकर जो जप पूजा आदि सत्कर्म किये हो वे आपकी कृपा से सफल हो। इस प्रकार पढ़कर भगवान शंकर के ऊपर प्रसन्नता पूर्वक फूल चढ़ाये।
स्वस्तिवाचन करके नाना प्रकार की आशीः प्रर्थना करे। फिर शिव के ऊपर मार्जन करना चाहिए। मार्जन के बाद नमस्कार करके अपराध के लिए क्षमा प्रार्थना करते हुए पुनरागमन के लिए विसर्जन करना चाहिए। इसके बाद अद्या से शुरू होने वाले मंत्र का उच्चारण करके नमस्कार करे।
फिर सम्पूर्ण भाव विभोर हो इस प्रकार प्रार्थना करे। प्रत्येक जन्म में मेरी शिव में भक्ति हो, शिव में भक्ति हो, शिव में भक्ति हो। शिव के सिवा दूसरा कोई मुझे शरण देने वाला नहीं। महादेव! आप ही मेरे लिए शरणदाता है। इस प्रकार प्रार्थना करके सम्पूर्ण सिद्धियों के दाता देवेश्वर शिव का पराभक्ति के द्वारा पूजन करे।
विशेषतः गले की आवाज से भगवान को संतुष्ट करे। फिर सपरिवार नमस्कार करके अनुपम प्रसन्नता का अनुभव करते हुए समस्त लौकिक कार्य सुख पूर्वक करता रहे। जो इस प्रकार शिव भक्तिपरायण हो हर रोज पूजन करता है। उसे अवश्य ही पग-पग पर सब प्रकार की सिद्धि प्राप्त होती है।
वह उत्तम वक्ता होता है तथा उसे मनोवांछित फल की निश्चय ही प्राप्ति होती है। दुःख, रोग, दूसरों के निमित्त होने वाला उद्वेग, विष और कुटिलता आदि के रूप में जो-जो कष्ट उपस्थित होता है। उसे कल्याणकारी परम शिव अवश्य नष्ट कर देते है।
उस उपासक का कल्याण होता है। शंकर भगवान की पूजा से उसमे अवश्य सद्गुणों की वृद्धि होती है। ठीक उसी तरह जैसे शुक्लपक्ष में चन्द्रमा बढ़ते है। मुनिश्रेष्ठ नारद! इस प्रकार मैंने शिव की पूजा का विधान बताया। अब तुम क्या सुनना चाहते हो? कौन सा प्रश्न पूछने वाले हो?
नारद जी बोले – ब्रह्मन! प्रजापते! आप धन्य है, क्योंकि आपकी बुद्धि भगवान शिव में लगी हुई है। विधे! आप पुनः इसी विषय का सम्यक प्रकार से विस्तार पूर्वक वर्णन कीजिए। ब्रह्मा जी ने कहा – तात! एक समय की बात है मैं सब ओर से ऋषियों तथा देवताओ को बुलाकर उन सबको क्षीर सागर के किनारे ले गया।
जहां सबका हित साधन करने वाले विष्णु भगवान निवास करते है। वहां देवताओ के पूछने पर विष्णु भगवान ने सबके लिए शिवपूजन की ही श्रेष्ठता बतलाकर यह कहा कि एक मुहूर्त या एक क्षण भी जो शिव का पूजन नहीं किया जाता वही हानि है।
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