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प्रचंड क्रोध की ज्वाला से जलती हुई कैकेयी इस प्रकार से दिखाई पड़ी मानो क्रोध रूपी दावानल में राजा को भस्म कर देना चाहती है। कुबुद्धि रूपी क्रोध को निष्ठुरता रूपी ज्वाला से कुबड़ी रूपी लकड़ी के ईंधन से तीव्र की हुई आग है।
2- राजा ने देखा यह आग बड़ी भयानक है क्या यह सत्य ही मेरा जीवन लेगी? राजा अपनी छाती कड़ी करके बहुत ही नम्रता के साथ कैकेयी को प्रिय लगने वाली वाणी बोले।
3- हे प्रिये! हे भीरु! विश्वास और प्रेम को नष्ट करके ऐसे बुरे वचन किस तरह कह रही हो। मैं शंकर जी को साक्षी देकर कहता हूँ कि राम और भरत तो हमारी दोनों आंखो के समान है।
4- मैं अवश्य सबेरे दूत भेजूंगा। दोनों भाई भरत शत्रुघ्न सुनते ही तुरंत आ जायेंगे। अच्छा दिन और शुभ मुहूर्त देखकर सब तैयारी के साथ ही डंका बजाकर मैं भरत को राज्य दे दूंगा।
31- दोहा का अर्थ-
राम को राज्य का लोभ नहीं है और भरत पर उनका बड़ा प्रेम है। मैं ही अपने मन में बड़े छोटे का विचार करके राजनीती का पालन कर रहा था अर्थात बड़े राजतिलक देने जा रहा था।
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