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Koka shastra Sachitra Varnan pdf
पुस्तक का नाम | Koka shastra Sachitra Varnan pdf |
पुस्तक के लेखक | आचार्य गौतम |
फॉर्मेट | |
भाषा | हिंदी |
साइज | 101 Mb |
पृष्ठ | 440 |
श्रेणी | स्वास्थ्य |
कोक शास्त्र सचित्र वर्णन Pdf Download
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सिर्फ पढ़ने के लिये
केवल मैं ही अपने पति के बिना दुःख में डूबी हुई हूँ। देव! शंकर! प्रसन्न होईये और मुझे सनाथ कीजिए। दीनबन्धो! परम प्रभो! अपनी कही हुई बात को सत्य कीजिए। चराचर प्राणियों सहित तीनो लोको में आपके सिवा दूसरा कौन है जो मेरे दुःख का नाश करने में समर्थ हो?
ऐसा जानकर आप मुझपर दया कीजिए। दीनों पर दया करने वाले नाथ! सबको आनंद प्रदान करने वाले अपने इस विवाहोत्सव में मुझे भी उत्सव सम्पन्न बनाइये। मेरे प्राणनाथ के जीवित होने पर ही अपनी प्रिया पार्वती के साथ आपका सुंदर विहार परिपूर्ण होगा।
इसमें संशय नहीं है। सर्वेश्वर! आप सब कुछ करने में समर्थ है क्योंकि आप ही परमेश्वर है। यहां अधिक कहने से क्या लाभ? सर्वेश्वर! आप शीघ्र मेरे पति को जीवित कीजिए। ऐसा कहकर रति ने गांठ में बंधा हुआ कामदेव के शरीर का भस्म शंभु को दे दिया और उनके सामने हा नाथ! हा नाथ! कहकर विलाप करने लगी।
रति का रोदन सुनकर सरस्वती आदि सभी देवियां रोने लगी और अत्यंत दीन वाणी में बोली – प्रभो! आपका नाम भक्तवत्सल है। आप दीनबंधु और दया के सागर है। अतः काम को जीवनदान दीजिए और रति को उत्साहित कीजिए। आपको नमस्कार है।
ब्रह्मा जी कहते है – नारद! उन सबकी यह बात सुनकर महेश्वर प्रसन्न हो गए। उन करुणासागर प्रभु ने तत्काल ही रति पर कृपा की। भगवान शूलपाणि की अमृतमयी दृष्टि पड़ते ही पहले जैसे रूप, वेश और चिन्ह से युक्त अद्भुत मूर्तिधारी सुंदर कामदेव उस भस्म से प्रकट हो गया।
अपने पति को वैसे ही रूप, आकृति, मंद मुस्कान से युक्त देख रति ने महेश्वर को प्रणाम किया। वह कृतार्थ हो गयी। उसने प्राणनाथ की प्राप्ति कराने वाले भगवान शिव का अपने जीवित पति के साथ हाथ जोड़कर बारंबार स्तवन किया। पत्नी सहित काम की की हुई स्तुति को सुनकर दयार्द्रहृदय भगवान शंकर अत्यंत प्रसन्न हुए और इस प्रकार बोले।
मनोभव! पत्नी सहित तुमने जो स्तुति की है उससे मैं बहुत प्रसन्न हूँ। स्वयं प्रकट होने वाले काम! तुम वर मांगो। मैं तुम्हे मनोवांछित वस्तु दूंगा। शंभु का यह वचन सुनकर कामदेव महान आनंद में निमग्न हो गया और हाथ जोड़ मस्तक झुकाकर गदगद वाणी में बोला।
देवदेव महादेव! करुणासागर प्रभो! यदि आप मुझपर प्रसन्न है तो मेरे लिए आनंददायक होइए। प्रभो! पूर्वकाल में मैंने जो अपराध किया था उसे क्षमा कीजिए। स्वजनों के प्रति परम प्रेम और अपने चरणों की भक्ति दीजिए। कामदेव का यह कथन सुनकर परमेश्वर शिव प्रसन्न हो बोले।
बहुत अच्छा! इसके बाद उन करुनानिधान से हंसकर कहा – महामते कामदेव! मैं तुम पर प्रसन्न हूँ। तुम अपने मन से डर को निकाल दो। भगवान विष्णु के पास जाओ और इस घर से बाहर ही रहो। तदनन्तर काम शिव जी को प्रणाम करके बाहर आ गया।
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