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Kautilya Arthashastra PDF Hindi



इसमें राज्य व्यवस्था, कृषि, न्याय, परिवार आदि के बारे में विस्तृत जानकारी दी गयी है। Kautilya ArthaShastra Indian Politics का प्रसिद्ध ग्रंथ है।
इस ग्रंथ की महत्ता को देखते हुए कालांतर में कई प्रसिद्ध विद्वानों ने इसके भाषा, व्याख्या पर बहुमूल्य कार्य किया है। इनमे भारतीय विद्वान शाम शास्त्री और गणपति शास्त्री , प्रथम नाथ बनर्जी का नाम प्रमुख है और यूरोपीय विद्वानों में डॉक्टर जॉली, प्रो. ए. बी. की यह प्रमुख है।
कहा जाता है कि 1905 में Sauth India के तज्जोर Dis. के एक ब्राम्हण ने मैसूर गवर्नमेंट प्राच्य पुस्तकालय में कौटिल्य अर्थ शास्त्र की एक हस्त लिखित पुस्तक भेंट की।
उस समय के तत्कालीन अध्यक्ष श्री शाम शास्त्री ने उस पुस्तक सूक्ष्म अध्ययन करने के बाद 1909 में हिंदी में प्रकाशित किया और 1915 में भट्ट स्वामी की आंशिक टीका के आधार पर इसे English में प्रकाशित किया गया।
इस पुस्तक के प्रकाशित होते ही देश-विदेश में तहलका मच गया, क्योंकि इस पुस्तक में शासन विज्ञान के बारे में ऐसी जानकारियां लिखी हुई थी, जिनके संदर्भ में Indians को हमेशा अनभिज्ञ समझा जाता है।
कौटिल्य अर्थ शास्त्र राज्य के शासन का ब्लू प्रिंट था। उसमे वह सभी बातें लिखी हुई है जो राज्य की शासन व्यवस्था के लिए आवश्यक है। एक राजा को अपनी कार्य प्रणाली कैसी रखनी चाहिए ? राज्य की सुरक्षा व्यवस्था, राजा-प्रजा के बीच के संबंध अदि सभी का वर्णन इसमें किया गया है।
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Kautilya Arthashastra in Hindi ( कौटिल्य अर्थशात्र के बारे में )
कौटिल्य के अर्थशास्त्र के बारे में लोगो के मन में एक जिज्ञासा होती है कि आखिर चाणक्य ने इस पुस्तक का नाम अर्थशास्त्र ही क्यों रखा ? आखिर इसके पीछे क्या कारण था ? आइए इसके बारे में जानते है…..
प्राचीन समय में अर्थशास्त्र का बहुत ही अधिक प्रयोग होता था। अर्थशास्त्र के अंतर्गत ही राजनीति शास्त्र, धर्म शास्त्र, कानून आदि आते थे।
उस समय अर्थशास्त्र को राजनीति और प्रशासन का माना जाता है और “कौटिल्य अर्थशास्त्र” में शासन चलाने की और गृहस्थ जीवन चलाने की पूरी व्यवस्था दी गई है इसलिए ‘अर्थशास्त्र’ कहा गया।
“कोटिल्य अर्थशास्त्र” के पहले भी कई सारे अर्थशास्त्रो की रचनाए की गई परन्तु उनकी पांडुलिपियां उपलब्ध नहीं है। लेकिन तमाम ग्रंथो में इस बारे में बताया गया है और आचार्य कौटिल्य ने इस बात को स्वीकार किया है और “अर्थशास्त्र” में कई संदर्भो और उदाहरणों में उन्होंने आचार्य वृहस्पति, शुक्राचार्य, भरद्वाज, परासर, पिशुन आदि आचार्यो का उल्लेख किया है। कौटिल्य अर्थशास्त्र के पहले जो भी अर्थशास्त्र लिखे गए उन्हें “नीतिशास्त्र के नाम से जाना गया।
कौटिल्य अर्थशास्त्र के रचनाकार को लेकर विरोधाभास
अब यहां यह जानना आवश्यक हो जाता है कि “कौटिल्य अर्थशास्त्र” के रचयिता कौन है ?अमूमन “कौटिल्य अर्थशास्त्र” के बारे में कहा जाता है कि इसके रचयिता आचार्य कौटिल्य (चाणक्य) है।
लेकिन स्टेन, कीथ और विन्टरनीज जैसे विचारको का मानना है कि कौटिल्य “अर्थशास्त्र” के रचयिता नहीं थे और भारतीय विद्वान आर. जी. भण्डारकर भी इससे सहमत है।
भण्डारकर का तर्क है कि “पतंजली” ने महाभाष्य में कौटिल्य का कही भी उल्लेख नहीं किया है। इसके अतिरिक्त कुछ और तथ्यों का उल्लेख विद्वान करते है।
1. “अर्थशास्त्र” में मौर्य साम्राज्य और पाटलिपुत्र का कही भी उल्लेख नहीं है। जबकि कौटिल्य चन्द्रगुप्त के मंत्री थे तो उसमे उल्लेख अवश्य होना चाहिए।
2. विचारक विन्टरनीज के अनुसार मेगास्थनीज जो कि लम्बे वक्त तक चन्द्रगुप्त के दरबार में रहा लेकिन उसने अपनी पुस्तक “इंडिका” में ना तो कौटिल्य की और ना ही “अर्थशास्त्र” के बारे में जिक्र किया है।
3. डा. बेनी प्रसाद के अनुसार “अर्थशास्त्र” में जिन स्वरूप के राज्य का उल्लेख किया गया है। वह किसी भी तरह से मौर्य, कलिंग या आंध्र प्रदेश से मेल नहीं खाता है।
अर्थशास्त्र के रचयिता कौटिल्य को मानने के पीछे के तर्क
1. नीतिसार के कर्ता कामंदक ने लिखा है कि इंद्र के समान शक्तिशाली आचार्य विष्णुगुप्त (कौटिल्य, चाणक्य) अकेले ही मनुष्यो में चंद्र के समान है। चन्द्रगुप्त के माध्यम से पर्वत तुल्य महाराज नंद का विनाश कर दिया।
ऐसा ही कई सारे ग्रंथो में उल्लेख मिलता है कि विष्णुगुप्त और कौटिल्य एक ही थे।
सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि मगध के सम्राट चन्द्रगुप्त के मंत्री के रूप में चाणक्य के होने की बात कही जाती है और इन्ही चाणक्य को विष्णुगुप्त और कौटिल्य भी कहा गया है और उन्हें चाणक्य नीति का रचयिता कहा गया है।
लेकिन चाणक्य को “अर्थशास्त्र” के रचयिता के रूप में मानने में बहुत ही विरोधाभास है। तमाम विदेशी विद्वानों, रचनाकारों, विचारको के साथ ही कई सारे भारतीय विचारक लेखक और विद्वान भी इसपर सवाल उठाए है।
इन सबसे इतर अर्थशास्त्र के पन्द्रहवे अधिकरण (अर्थशास्त्र 15 /180 /1 ) में यह स्पष्ट हो जाता है कि विष्णुगुप्त ने ही अर्थशास्त्र और इनके भाष्य की रचना की है।
लेकिन अब उससे बड़ा सवाल यह उठता है कि क्या विष्णुगुप्त ही चाणक्य थे। इसी तरह से “अष्टाध्यायी” पर लिखे “महाभाष्य” में मौर्य और चन्द्रगुप्त की सभा का तो उल्लेख है पर कौटिल्य का कोई उल्लेख नहीं है।
इसके साथ ही “इंडिका बुक” के लेखक और लम्बे समय तक मौर्य दरबार में रहे यूनानी राजदूत मेगास्थनीज ने अपनी पुस्तक में भी कौटिल्य का कही जिक्र नहीं किया है।
लेकिन नीतिसार के कर्ता कामंदक ने लिखा है कि इंद्र के समान शक्तिशाली आचार्य विष्णुगुप्त (कौटिल्य, चाणक्य) अकेले ही मनुष्यो में चंद्र के समान है। चन्द्रगुप्त के माध्यम से पर्वत तुल्य महाराज नंद का विनाश कर दिया।
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