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सिर्फ पढ़ने के लिये
समस्त ज्ञान में श्रेष्ठ (श्रेष्ठ ज्ञान से मुनियो को सिद्धि प्राप्त) – भगवान अर्जुन से कह रहे है – अब मैं तुमसे समस्त ज्ञानो में सर्वश्रेष्ठ इस परम ज्ञान को पुनः कहूंगा, जिसे जान लेने पर समस्त मुनियो ने परम सिद्धि प्राप्त की है।
उपरोक्त शब्दों का तात्पर्य – सातवे अध्याय से लेकर बारहवे अध्याय तक श्री कृष्ण परम सत्य भगवान के बारे में विस्तार से बताते है।
अब भगवान इस अध्याय में स्वयं बताते है कि वह प्रकृति के गुण कौन-कौन से है और किस प्रकार क्रिया करते है और किस प्रकार बांधते है और किस प्रकार से मोक्ष प्रदान करते है।
अब भगवान स्वयं अर्जुन को और आगे ज्ञान दे रहे है। यदि कोई इस अध्याय को दार्शनिक चिंतन द्वारा समझ ले तो उसे भक्ति का ज्ञान हो जाएगा।
तेरहवे अध्याय में यह स्पष्ट बताया जा चुका है कि विनय पूर्वक ज्ञान का विकास करते हुए इस भवबंधन से छूटा जा सकता है। यह भी बताया जा चुका है कि प्रकृति के गुणों की संगति के फलस्वरूप ही जीव इस भौतक जगत में बद्ध है।
इस अध्याय में जिस ज्ञान का प्रकाश किया गया है। उसे पूर्ववर्ती अध्याय में दिए गए ज्ञान से श्रेष्ठ बताया गया है। यह ज्ञान अभी तक बताये सभी ज्ञान योग से कही अधिक श्रेष्ठ है और इसे जान लेने पर अनेक लोगो को सिद्धि प्राप्त हुई है।
अब भगवान उसी ज्ञान को और अच्छे ढंग से बताने जा रहे है। इस ज्ञान को प्राप्त करके अनेक मुनियो ने सिद्धि प्राप्त की और बैकुंठ लोक के भागी हुए। अतः यह आशा की जाती है कि जो भी इस अध्याय को समझेगा उसे सिद्धि प्राप्त होगी।
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