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इस बुक में काशीनाथ सिंह गहरे अनुभव -सन्देश के साथ निखर कर बाहर आये हैं। उनकी लेखन की भाषा को लेकर कई तरह की आलोचनाएं हुईं और होती रहती हैं, लेकिन यही भाषा उन्हें लोकप्रिय बनाती है।
उनकी कोई भी बुक मार्केट में आती है और हाथो हाथ बिक जाती है। सचमुच एक जादू है काशीनाथ सिंह की लेखनी में। घर का जोगी जोगड़ा उन्ही में से एक बेहतरीन कृति है। आप नीचे की लिंक से इसे खरीद सकते हैं और जरूर खरीदें और पढ़ें घर का जोगी जोगड़ा।
Ghar Ka Jogi Jogda घर का जोगी जोगड़ा
लोग बिस्तरों पर एक मार्मिक कहानी
काशीनाथ सिंह एकदम खांटी – माटी के कथाकार हैं। उनकी रचना विश्वसनीय और विलक्षण होती है, इसीलिए पाठकों का बड़ा समूह उनसे जुड़ा हुआ है।
” लोग बिस्तरों पर ” एक बेहद मार्मिक कहानी है, जोकि समाज को झकझोरती है। निश्चित ही यह एक कहानी नहीं, बल्कि एक दस्तावेज है। इस कहानी को और भी नजदीक से समझने, जानने के लिए इस कहानी को नीचे की लिंक से खरीद सकते हैं।
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काशीनाथ सिंह के बारे में
काशीनाथ सिंह हिंदी साहित्य के एक जाने-माने कवि व उपन्यासकार है। इनका जन्म कवियों और लेखकों की स्थली उत्तर प्रदेश में हुआ था। उत्तर प्रदेश के चंदौली जनपद में जीवनपुर गांव में एक किसान नागर सिंह के घर काशीनाथ का जन्म 1 जनवरी 1937 को हुआ था। इनके पिता प्राथमिक विद्यालय में अध्यापक थे।
अध्यापन के साथ ही इनके पिता अपना पैतृक कार्य कृषि भी करते थे। इनकी प्रारंभिक शिक्षा इनके गांव में ही प्राप्त हुई थी। इनका हिंदी साहित्य से बहुत लगाव था। इसलिए ही इनकी लेखनी कला उत्तरोत्तर प्रगति करती गई। इन्होने स्नातक, परास्नातक के साथ ही पी.एच.डी. की उपाधि काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से प्राप्त किया था।
काशीनाथ सिंह को अपने विद्यार्थी जीवन में ही जिंदगी की सच्चाइयो से सामना करना पड़ा था और उनके श्री मुख से निकल पड़ा – अपने दुखो के बदले दूसरे के दुख को देखो तब आपको लगेगा कि दूसरो के दुख के सामने आपका दुख कुछ भी नहीं है।
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में शोध के दौरान इनके गुरु आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी थे जो किन्ही कारणों से निकाल दिए गए। बहुत प्रयास करने के बाद भी कोई अध्यापक इनके शोध को अपने निर्देशन में पूर्ण कराने का साहस नहीं जुटा पाया। तब उन्होंने उस समय के कम लोकप्रिय अध्यापक करुणा पति त्रिपाठी के निर्देशन में अपने शोध को पूर्ण किया था।
दिव्यज्ञान सिर्फ पढ़ने के लिए
कृष्ण भावना भावित कर्म और आध्यात्मिक लक्ष प्राप्ति – श्री कृष्ण कहते है जो पूर्ण रूप से भावनामृत में लीन रहता है उसे अपने आध्यात्मिक कर्मो के योगदान के कारण ही भगवद्धाम की प्राप्ति होती है क्योंकि उसमे हवन भी आध्यात्मिक होता है और हवि (हवन सामाग्री) भी आध्यात्मिक होती है।
उपरोक्त शब्दों का तत्पार्य – यहां इसका वर्णन किया गया है कि किस प्रकार कृष्ण भावना भावित कर्म करते हुए अंततोगत्वा, आध्यात्मिक लक्ष्य प्राप्त होता है। कृष्ण भावनामृत विषयक विविध कर्म होते है। जिन्हे आगे बताया गया है लेकिन यहां पर तो केवल कृष्ण भावनामृत का सिद्धांत वर्णित है।
भगवान आध्यात्मिक है और उनके दिव्य शरीर की किरणे ब्रह्मज्योति कहलाती है और यही उनका आध्यात्मिक तेज है और प्रत्येक वस्तु इसी ब्रह्मज्योति में स्थित रहती है। किन्तु जब यह ज्योति माया अथवा इन्द्रिय तृप्ति से आच्छादित होती है तो यह भौतिक ज्योति कहलाती है। यह भौतिक आवरण कृष्ण भावनामृत के द्वारा तुरंत ही हटाया जा सकता है।
भौतिक कल्मष से बद्ध जीव को भौतिक वातावरण में ही कार्य करना पड़ता है। किन्तु फिर भी उसे ऐसे वातावरण से निकलना ही होगा। जिस विधि से वह ऐसे वातावरण से बाहर निकल सकता है वह कृष्ण भावनामृत है। उदाहरण स्वरूप – यदि कोई रोगी दूध की बनी वस्तुओ के अधिक सेवन से पेट की गड़बड़ी से ग्रस्त हो जाता है तब उसे दही दिया जाता है जो दूध से ही बनी अन्य वस्तु है। भौतिकता से बद्ध जीव का उपचार कृष्ण भावनामृत से ही संभव है जो गीता में वर्णित है।
अतएव कृष्ण भावनामृत के लिए अर्पित हवि, हवन, ग्रहण कर्ता तथा फल यह सब मिलाकर ब्रह्म का परम् सत्य है। माया द्वारा आच्छादित परम् सत्य पदार्थ कहलाता है। जब यही पदार्थ परम् सत्य के निमित्त प्रयुक्त होता है तो पुनः इसमें आध्यात्मिक गुणों का समावेश हो जाता है। यह विधि यज्ञ या विष्णु या कृष्ण को प्रसन्न करने के लिए किए गए कार्य कहलाती है।
भौतिक जगत के जितने ही अधिक कार्य कृष्ण भावनामृत में या केवल विष्णु के लिए किए जाते है। पूर्ण तल्लीनता से वातावरण उतना ही आध्यात्मिक बनता जाता है। ब्रह्म शब्द का अर्थ है आध्यात्मिक। कृष्ण भावनामृत मोह जनित चेतना को ब्रह्म या परमेश्वरोन्मुख करने की विधि है। जब मन कृष्ण भावनामृत में पूरी तरह निमग्न रहता है तो उसे समाधि कहते है। ऐसी दिव्य चेतना में संपन्न कोई भी कार्य यज्ञ स्वरुप होता है या फिर यज्ञ कहलाता है।
आध्यात्मिक चेतना की ऐसी स्थित में होता, हवन, अग्नि, यज्ञ, कर्ता तथा अंतिम फल यह सब परम् ब्रह्म में एकाकार हो जाता है यही कृष्ण भावनामृत की विधि है।
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