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1- कथा, कथांतर और और कथोपरांत काशी का अस्सी ( लेखक प्रफुल्ल कोलख्यान )
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सिर्फ पढ़ने के लिए
एक बहुत ही प्रसिद्ध साधू थे. उनके प्रवचन में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती थी. एक दिन उन्होंने देखा कि प्रवचन के समाप्ति के बाद भी एक मनुष्य बड़े ही निराश मन से वहाँ बैठा हुआ था.
जब साधू ने उसका कारण पुछा तो उस युवक ने कहा कि विचारों का प्रवाह उसे बहुत परेशान कर रहा है. तब साधू ने उसे एक अन्य साधू के पास भेजा और कहा कि जाओ और उनकी दिनचर्या देखो. उससे ही तुम्हारी समस्या का निदान हो जाएगा.
जब वह युवक उन साधू के पास गया तो देखा वह एक सराय की रखवाली करते थे. उस युवक ने वहाँ रहकर कुछ दिन तक उनकी दिनचर्या को देखा लेकिन उसे कुछ खास नहीं दिखा .
वह साधू एकदम शांत और साधारण थे. उनमें कोई ज्ञान के लक्षण भी नहीं दिखाई पड़ते थे. हाँ, उनका व्यवहार शिशु जैसा निर्दोष और निर्मल था ….इसके अतिरिक्त उनकी दिनचर्या में कुछ और खास नहीं था.
उस युवक ने उन साधू की पूरी दिनचर्या देखि लेकिन रात्री में सोने से पहले और सुबह जागने के बाद वह साधू क्या करते थे , वह उसे ज्ञात नहीं था.
तब उसने उन साधू से इस बारे में विचार किया तो उन साधू ने कहा कि कुछ नहीं, रात्री को मैं सारे बर्तन माजता हूँ और चूँकि रात्री भर में थोड़ी बहुत धूल पुनः जम जाती है, इसलिए सुबह उन्हें पुनः धो देता हूँ. बर्तन गंदे व धूल भरे ना हों इसका ध्यान रखना अतिआवश्यक है. मैं इस सराय का रखवाला जो हूँ.
वह युवक इस साधू के पास से अत्यंत ही निराश होकर दुसरे साधू के पास लौटा और सारे बातचीत और घटनाक्रम को विस्तार से बताया. इस पर उन साधू ने कहा कि जो जानने योग्य था उसे तुम जान और सुनकर आये , लेकिन समझ नहीं सके. उनका कहने का अर्थ था कि रात्री तुम भी अपने मन को मांजो और सुबह फिर से धो लो.
धीरे – धीरे चित्त निर्मल हो जाएगा. प्रत्येक मनुष्य एक दर्पण है . सुबह से सांझ तक इस दर्पण पर धूल जमती है, जो मनुष्य इस धूल को ज़मने देते हैं , वे दर्पण नहीं रह पाते हैं और जैसा स्वयं का दर्पण होता है वैसा ही स्वाभाव होता है, वैसा ही ज्ञान होता है . अतः अगर दर्पण अगर स्वच्छ होगा तभी विचार भी शुद्ध होंगे. अब युवक को सारी बात समझ में आ गयी थी.
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